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नीतीश कुमार ने सुशांत सुसाइड केस में सीबीआई जाँच की सिफारिश की, तो क्या अगली खबर अब ये आएगी...
राजेंद्र चतुर्वेदी
खबर आ चुकी है-नीतीश कुमार सरकार ने सुशांत सुसाइड केस में सीबीआई जाँच की सिफारिश कर दी है.
अब अगली खबर क्या आएगी...
उद्धव ठाकरे सरकार ने बदला नियम. अब सीबीआई राज्य सरकार की इजाजत के बिना महाराष्ट्र में जाँच नहीं कर पाएगी. उद्धव ठाकरे का यह संघर्ष देश में भाजपा और नीतीश कुमार द्वारा अराजकता फैलाने की जो बुनियाद रखी जा रही है, उसे रोकने में मील का पत्थर बनेगा. हम उद्धव के साथ हैं.
हरिबोल
अगर नीतीश की चुनावी हरकत कामयाब हो गई, तो एक राज्य का नागरिक किसी दूसरे राज्य की पुलिस पर भरोसा ही नहीं करेगा. देश में भयानक अराजकता फ़ैल सकती है.
क्या होगा, इसे एक दो उदाहरणों से समझते हैं.
मान लो, पुडुचेरी का एक आदमी असम में रहता है. असम में उस आदमी के साथ कोई वारदात हो गई. वो मर गया, तो उसके परिजन पुडुचेरी में केस दर्ज कराएँगे, फिर पुडुचेरी की पुलिस असम में जाँच करने जाएगी, तब क्या नजारा होगा.
तफ्तीश में भाषा की दिक्कत आएगी. राज्य के नागरिकों का दूसरे राज्य की पुलिस को सहयोग नहीं मिलेगा. और भी बहुत कुछ...
ये जो नजारा होगा, वह तो बहुत छोटा होगा. नजारा उससे आगे का भी होगा.
एक केस में पुडुचेरी की पुलिस असम जाती है, जाँच कर लेती है. कुछ ही दिन बाद क्या होता है कि असम में पुडुचेरी का दूसरा आदमी भी तो रहता है न, उसके साथ कोई वारदात हो जाती है. अब वो असम के थाने में रपट करने जाता है. असम की पुलिस उससे कह देती है, भाई पुडुचेरी चले जाओ, वहीं कराना रपट.
इसे थोड़ा और सरलता से समझें...
मान लो, सुशांत केस में पटना पुलिस को जाँच की इजाजत मिल जाती है. वो जाँच का तीर मार देती है. अपराधी को गिरफ्तार कर लेती है, सजा दिला देती है.
लेकिन महाराष्ट्र में केवल एक ही बिहारी थोड़े ही रहता था, जिसका नाम सुशांत था. वहां तो हजारों बिहारी रहते हैं. एक बिहारी के साथ मुंबई में फिर कुछ होता है.
अब मुंबई पुलिस उस बिहारी की रपट लिखने से मना कर देती है. उससे कह देती है कि भाई अपने घर फोन कर दो, ताकि घर का कोई आदमी वहीं रपट करा दे.
अब वो आदमी सुशांत सिंह तो है नहीं कि नीतीश उसके साथ खड़े हो जाएंगे. वो तो एक मजदूर है, जो मुंबई में रह रहा है. न उसकी रपट बिहार में हो पाएगी और मुंबई पुलिस से आप किस मुंह से कहेंगे कि उस बिहारी को न्याय दिलाओ.
मुझे लगता है कि अब आपकी समझ में आ गया होगा कि प्रार्थी क्या कहना चाहता है.
नीतीश कुमार नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं. वे नहीं समझ पा रहे हैं कि राजपूत वोटों के लिए राजनीति के श्मशान में जो शव साधना वे कर रहे हैं, आगे चलकर वह महाराष्ट्र में रहने वाले बिहारियों पर ही भारी नहीं पड़ेगी, बल्कि हर उस नागरिक पर भारी पड़ेगी, जो अपना राज्य छोड़कर किसी दूसरे राज्य में रह रहा है.
सत्ता के नशे में धुत नीतीश में सद्बुद्धि आएगी, इसमें मुझे संदेह है, लेकिन रामलला उन लोगों को सद्बुद्धि दें, जो दूर तक नहीं देख पा रहे हैं और नीतीश की हाँ में हाँ मिला रहे हैं.
रामलला उद्धव ठाकरे के मनोबल को मज़बूत करें, क्योंकि इस अराजकता को रोकने का जिम्मा केवल उन्हीं पर है.
एक बार फिर से #हरिबोल