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ये पब्लिक है सब जानती है: चुनाव परिणाम से जहां एनडीए हतप्रभ है तो राजद उत्साहित
यो तो देश के दो राज्यो महाराष्ट्र और हरियाणा विधान सभा के चुनाव परिणाम ने एन डी ए गठबंधन को जीत का जश्न मनाने से परहेज किया है तो बिहार विधान सभा के उप चुनाव परिणाम ने तो दीपावली की खुशियो पर ही वज्रपात कर दिया है. बिहार की पांच विधान सभा सीटो पर हुए चुनाव परिणाम से जहां एनडीए हतप्रभ है तो राजद उत्साहित.हालाकि समस्तीपुर लोकसभा के उप चुनाव परिणाम से एन डी ए नेताओं ने राहत की सांस ली है.
गौर तलब है कि बिहार की 5 विधान सभा सीटो मे दरौदा , बेलहर , नाथ नगर और सिमरी बख्तियारपुर के जद यू विधायको के सांसद बन जाने के कारण यह सीट खाली हुई थी. लेकिन इन चारो सीटो पर जद यू को निराशा हाथ लगी है. हालाकि काफी जद्दोजहद के बाद नाथ नगर की सीट को बचाने में वह कामयाब रही लेकिन उसके लिये काफी पसीना बहाना पड़ा. लेकिन सूबे के राजनीतिक पंडितो की माने तो दरौदा और बेलहर में पहले से ही तय था कि वहां जद यू प्रत्याशियो की हार तय है. इसकी वजह साफ थी .
एक तो दरौदा में अजय सिहं को टिकट देकर जद यू बीजेपी के अलावे अपने कार्यकर्ताओं को निराश किया था तो विरोधियो को एक बड़ा मुद्दा हाथ में दे दिया था. इन पंडितो की माने तो नीतीश कुमार अपराध और परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं. लेकिन दरौदा में ये दोनो दिखा. जिस वजह से पिछले लोकसभा चुनाव में कविता सिंह की कमान थामने वाले कर्णजीत उर्फ व्यास जी ने अजय सिह और अपनी पार्टी बीजेपी के खिलाफ विद्रोह किया और उन्हे सफलता भी मिली.
यही हाल बेलहर का रहा . गिरीधारी यादव के भाई लालधारी को टिकट मिलने से बीजेपी के साथ ही जद यू के कार्यकर्ता भी उदास थे जिस वजह से इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. लेकिन सबसे चौंकाने वाला परिणाम सिमरी बख्तियारपुर का रहा. हालाकि यहा भी सासंद दिनेश चंद्र यादव की दादागिरी का नुकसान जद यू को उठाना पड़ा. गौर तलब है कि श्री यादव जब सांसद होते है तो अरूण यादव को एंम एल का टिकट दिलाते रहे हैं और जब लोकसभा का चुनाव हारते है तो फिर खुद एम एल ए बनते है. इस बार वहां की जनता ने उनके कठपतली उम्मीदवार को जमीन सूंघा दिया है.
हालांकि इसकी एक मुख्य वजह वी आई पी के उम्मीदवार दिनेश निषाद ने 25 हजार से ज्यादा वोट लाकर जद यू का खेल बिगाड़ दिया है.यानि बिहार की जनता ने उन नेताओं को साफ संदेश दिया है कि अब परिवार वाद और भाई भतीजावाद नही चलेगा. लेकिन दूसरी तरफ बेलहर और सिमरी बख्तियापुर में राजद की जीत ने लालू प्रसाद और तेजस्वी को संजीवनी दिया है तो किशन गंज में औवैसी के उम्मीदवार की जीत ने रंग में भंग डाल दिया है.
यानि अब अल्प संख्यको का कांग्रेस और राजद के मठाधीशो से मोह भंग हो गया है उन्होने ं अपना नया ठौर ढूंढ लिया है. जिसका असर आने वाले दिनो में दिखेगा और राजद का माई समीकरण जहां दरकेगा वही इसका लाभ बीजेपी को मिलेगा. इस तरह इस चुनाव परिणाम से साफ है कि ये पब्लिक है सब जानती है अंदर क्या है बाहर क्या ये सबको पहचानती है. शायद यही वजह है कि उप चुनाव में हार के बावजूद एन डी में मातम तो है लेकिन इसका इजहार होने नही दे रही तो राजद जीत के बावजूद जश्न मनाने से परहेज कर रहा है.