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मेरा नंबर है। अच्छी बात है। लेकिन एक ही मैसेज एक हज़ार छात्र भेजें यह अच्छी बात नहीं है। दो तीन लोग चार पांच बार भेज कर वही बात पहुंचा सकते हैं जो एक हज़ार या दो हज़ार। तो मैं इसे अभद्रता मानता हूं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
मैंने कहा है और फिर कह रहा हूं कि मैं सांप्रदायिक और जातिवादी नौजवानों के बीच लोकप्रिय नहीं होना चाहता। मैं ज़ीरो ठीक हूं। मुझसे संपर्क करते समय एक बार सोचा कीजिए कि बंदा पूछेगा। संभव है कि नौजवान झूठ बोल दें। लेकिन मैं तो उनसे बोल सकता हूं। मैं यह पूरी तरह समझता हूं कि हर छात्र सांप्रदायिक नहीं होता है। लेकिन मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं कि कोई सांप्रदायिक नहीं हैं। तो छात्रों को अपना स्टैंड खुद से क्लियर करना होगा न कि मुझसे। यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि जो छात्र मैसेज कर रहे हैं उनके बीच के छह छात्र सत्याग्रह पर बैठे हैं। तो मेरा आग्रह है कि जो भी सांप्रदायिक सोच के हैं वो इस सत्याग्रह का समर्थन न करें। सत्याग्रह आपके स्वार्थ की पूर्ति का ज़रिया नहीं है। ये नहीं हो सकता है कि आप इंजीनियरिंग की पढ़ाई पढ़ते वक्त सत्याग्रह करें, और शादी करते वक्त दहेज लें। या दहेज लेकर होने वाली शादी में जाकर डांस करें। दोस्ती के नाम पर।
अब पत्र का मजमून पोस्ट कर रहा हूं। तीन हज़ार छात्रों की ज़िंदगी का सवाल है। कायदे से सरकार को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। पढ़ाई लिखाई के मामले में बिहार के नौजवानों के साथ बड़ा धोखा हो रहा है। लेकिन इस सवाल पर बिहार का नौजवान एक नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि कोई लड़ नहीं रहा है। बहुत से नौजवान इस सवाल को लेकर लड़ रहे हैं मगर नौजवानों का बहुमत अपनी अपनी जाति और धर्म के आधार पर रास्ता अपना लेगा। इस प्रश्न पर उन्हें विचारना होगा कि उनकी राजनीतिक सोच उनका कितना भला कर रही है।
छात्रों ने अच्छे तरीके से पत्र लिखे हैं। मैं उनकी शैली से खुश हूं। इससे साफ है कि वह देख पा रहे हैं कि उनकी ज़िंदगी किस तरह कुचल दी गई है। भले ही उनके मां बाप हिन्दू मुसलमान में व्यस्त होंगे लेकिन वे भी अपने बच्चों को इस राजनीति से अच्छी ज़िंदगी नहीं दे पा रहे हैं। जो दल हिन्दू मुस्लिम नहीं करने का दावा करते हैं, उनके यहां भी यही हालत है। इसलिए युवाओं को नागरिक बनना होगा। कांग्रेस के पास भी कोई प्लान नहीं है। कोई ठोस वादा नहीं है। बाकी दलों का भी यही हाल है।
आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के दमनकारी छात्र विरोधी नीतियों के वजह से बिहार के 3000+ बीटेक छात्रों का भविष्य अधर में है। 14 फरवरी से छात्र बापू जी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर अनिश्चितकालीन आमरण सत्याग्रह 2.0 पर है लेकिन अभी तक विश्वविद्यालय प्रशासन सुध लेने को तैयार नही है। और न ही अनशनकारियों के लिए मेडिकल टीम की व्यवस्था की जा रही है।
सत्याग्रह पर बैठे अब तक 6 छात्रो की हालत अत्यंत खराब हो जाने के वजह से छात्र नवीन कुमार सुपौल इंजीनियरिंग कॉलेज, नवीन कुमार सीतामढ़ी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, को रविवार को पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया तथा सोमवार शाम छात्र श्रवण कुमार और गुरुचरण को पटना मेडिकल कॉलेज में तथा दो छात्र नीतीश, राहुल को गर्दनीबाग अस्पताल में भर्ती कर इलाज कराया गया लेकिन प्रशासन ने कोई सुध नही ली।
क्या है मामला
आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के अंतर्गत सुपौल इंजीनियरिंग कॉलेज, सीतामढ़ी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पूर्णिया इंजीनियरिंग कॉलेज, के बहिष्कृत तथा गया इंजीनियरिंग कॉलेज, बुद्धा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी गया के रद्द परीक्षा की तिथि घोषित करने, विश्वविद्यालय में पुनः मूल्यांकन नियम को लागू करने, परीक्षा केंद्र पर छात्राओं के लिए सुरक्षा मुहैया, आवगमन की सुगम व्यवस्था, सुरक्षित एवं सुगम परीक्षा केंद्र बनाये जाने की मांग को लेकर बापू जी के सत्य और अहिँसा के मार्ग पर अनिश्चितकालीन आमरण सत्याग्रह 2.0 पर है।
छात्रों की मांग वीसी करे अनशनकारियों से वार्ता
सत्याग्रह में शामिल छात्रों का कहना है कि पिछले 14 फरवरी से हमलोग सत्य और अहिंसा के मार्ग पर सत्याग्रह 2.0 पर है लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक अनशनकारियों से वार्ता नही करने आयी है। जो बहुत ही दुःखद है छात्रों की मांग है कि विश्वविद्यालय के कुलपति और परीक्षा नियंत्रक अनशनकारियों से वार्ता करें।
छात्रों ने कहा कि वीसी और परीक्षा नियंत्रक ने क्रूरता का परिचय देने का काम किया है जो बहुत ही ज्यादा निंदनीय है उनको छात्रों के जान की कोई परवाह नहीं है। अपनी जिम्मेदारी तय करे अनशनकारियों से वार्ता कर परीक्षा की तिथि घोषित करें।
इसके जवाब में मुझे विश्व विद्यालय से एक ईमेल मिला है जिसमें लिखा है कि-
दोबारा परीक्षा नहीं होगी। कदाचार मुक्त परीक्षा कराई जा रही थी जिसके कारण मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति नहीं थी। छात्रों ने परिक्षा का बहिष्कार किया है। प्रो वीसी करीम का कहना है कि दोबारा परीक्षा नहीं होगी क्योंकि छात्रों ने अपनी मर्ज़ी से बहिष्कार किया। छात्र इससे इंकार करते हैं। उनका कहना है कि वाइस चांसलर तथ्यों को छिपा रहे हैं। परीक्षा केंद्रों पर छात्राओं के साथ छेड़खानी हुई थी जिसका विरोध किया गया था।
जो भी है वाइस चांसलर को अहं का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। उन्हें समाधान निकालना चाहिए ताकि किसी छात्र के जीवन पर असर न पड़े। उन्हें आगे नौकरी पर जाना है। इस तरह की लड़ाई से वीसी को कोई फायदा नहीं है। छात्रों को नुकसान ज़्यादा है।
रवीश कुमार
रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।