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अडानी ने खींचे पाँव बाबा रामदेव ने खोली झोली, क्या 2019 से पहले एक और फजीहत हो ली
गिरीश मालवीय
देश के जाने माने उधोगपति अडानी की हालत ठीक नही चल रही है. 2019 में मोदीजी मुश्किल में आ सकते हैं. कुछ महीनों पहले कर्ज में डूबी हुई रुचि सोया के अधिग्रहण के लिए बाबा रामदेव ने 5700 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी, लेकिन अडानी ने उसे पीछे छोड़ते हुए 6000 करोड़ की बोली लगा दी थी. लेकिन अब पता चल रहा है कि अडानी विलमार ने खरीद प्रक्रिया में देरी होने का हवाला देते हुए अपना ऑफर वापस लेने का फैसला किया है। ओर इधर दूसरी सबसे बड़ी बोली लगाने वाली पतंजलि ने अब रुचि सोया के ऋणदाताओं को जानकारी दी है वह अभी भी सौदा पूरा करने की इच्छुक है. पतंजलि ने कहा कि अगर अनुमति दी गई तो वह अडानी जितनी रकम भी चुका सकती है.
वैसे रुचि सोया के देशभर में करीब 13 से 14 रिफाइनिंग संयंत्र हैं. जिनमें से 5 बंदरगाहों पर हैं. रुचि सोया की सालाना रिफाइनिंग क्षमता 33 लाख टन है. खाद्य तेल उद्योग के एक अधिकारी बताते हैं कि बंदरगाहों पर संयंत्र होना बहुत अहम होता है. बंदरगाहों पर रिफाइनिंग संयंत्र होने से कंपनियों के लिए आयातित खाद्य तेल को रिफाइन करना आसान हो जाता है. देश में 70 फीसदी खाद्य तेल का आयात होता है. इसलिए अगर बंदरगाहों पर पहले से चालू इकाइयां मौजूद हैं तो अन्य कंपनियां इसे अधिग्रहीत करने की कोशिश करेंगी. यानी इस लिहाज से भी यह सौदा अडानी के फायदे का ही है.
लेकिन इसके बावजूद अडानी पीछे हट रहा है. तो इसका मतलब साफ है कि उसकी वित्तीय स्थिति डांवाडोल हो रही है और ऐसा इसलिए भी है. क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में करमाइल कोल खदान में किया गया उसका बड़े पैमाने पर किया गया. इन्वेस्टमेंट खतरे मे पड़ गया है अनेक पर्यावरण समूहों के विरोध के कारण अधिकांश बैंकों ने ऑस्ट्रेलिया की इस परियोजना को वित्तपोषित करने से से इंकार कर दिया है.
अब खबर आई है कि कुछ वैश्विक बीमा कंपनियों ने ऑस्ट्रेलिया में अडानी माइनिंग की कारमाइकल परियोजना को कवर प्रदान करने का विरोध किया है. अडानी एंटरप्राइजेज ने 29 नवंबर को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है जिसमें कहा गया कि यह परियोजना को खुद वित्त पोषित करेगा. अडानी माइनिंग के सीईओ लुकास डॉव ने कहा "अडानी माइनिंग की कारमाइकल माइन और रेल परियोजना को 100 फीसदी खुद वित्त पोषित करेंगे'' वैसे अडानी की मूल योजना हर साल 40 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करने की थी लेकिन अब उसे प्रति वर्ष लगभग 10 मिलियन टन का उत्पादन होने की उम्मीद है.
लेखक गिरीश मालवीय आर्थिक मामलों के जानकार है