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पेट्रोल और डीजल फिर हुआ महंगा, इस वजह से आसमान पर पहुंच रहे दाम

Ekta singh
6 Nov 2017 7:34 AM GMT
पेट्रोल और डीजल फिर हुआ महंगा, इस वजह से आसमान पर पहुंच रहे दाम
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हाल ही में सरकार ने घरेलू गैस के दाम बढ़ाए थे. इससे साफ हैं कि लोगों को एक बार फिर महंगाई का झटका झेलना पड़ सकता हैं.

नई दिल्ली: सोमवार को मुंबई में एक लीटर पेट्रोल 76 रुपये पर पहुंच गया है. वहीं, डीजल 60.78 रुपये पर है. फिलहाल पेट्रोल और डीजल की कीमतों में राहत मिलने के आसार नहीं दिख रहे.

दरअसल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अपने 2 साल के उच्चतम स्तर पर है. 2015 के बाद पहली बार कच्चा तेल 62 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया है. दरअसल, उस वक्त कच्चा तेल 55 डॉलर प्रति बैरल था, जो जून में लुढ़कर 44 डॉलर तक आ गया था.

लेकिन, पिछले एक महीने में कच्चे तेल की कीमतों में 10 फीसदी की तेजी आई है. अगर, जून 2017 के बाद की बात करें तो कच्चे तेल की कीमत में 36 फीसदी का इजाफा हुआ है.

डब्ल्यूटीआई क्रूड (यूएस वैस्ट टैक्सास इंटरमीडिएट) की कीमत भी इन दिनों 54.94 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है. जून के बाद से डब्ल्यूटीआई क्रूड 30 फीसदी महंगा हुआ है.

हाल ही में सरकार ने घरेलू गैस के दाम बढ़ाए थे. इससे साफ है कि लोगों को एक बार फिर महंगाई का झटका झेलना पड़ सकता है.

कच्चे तेल की कीमतों में लगातार हो रही इस बढ़ोत्तरी का असर आम लोगों पर पड़ सकता है. जिस तेजी से कच्‍चे तेल की कीमतों में इजाफा हो रहा है. इससे तेल कंपनियों की लागत बढ़ी है. तेल कंपनियों पर बढ़ रहे इस भार को कंपनियां आम आदमी पर डाल सकती हैं और इससे पेट्रोल व डीजल की कीमतों में इजाफा हो सकता है.

सीनियर एनालिस्ट अजय केडिया के मुताबिक, 2 साल में कच्चे तेल की कीमतें लगातार उतार-चढ़ाव रहा है. अब क्रूड 2 साल की ऊंचाई पर है तो इसका सीधा असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा. हालांकि, डॉलर इंडेक्स में मजबूती से कीमतों को थोड़ा सहारा मिल सकता है, लेकिन डॉलर इंडेक्स में उतनी तेजी से उतार-चढ़ाव नहीं है.

जीएसटी:

कीमतें बढ़ने से एकबार फिर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने की मांग उठ सकती है. पिछले दिनों ऑयल मिनिस्‍टर धर्मेंद्र प्रधान समेत महाराष्‍ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस भी पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने की मांग कर चुके हैं.

अगर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के तहत आ जाएंगे, तो उनकी कीमत मौजूदा कीमतों से सीधे आधी हो जाएंगी. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में बदलाव होने पर भी आम आदमी की जेब पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ेगा.

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