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महाराष्ट्र के शोलापुर में 15 सितंबर को सामान्य पेट्रोल का भाव 83 रुपये 37 पैसे प्रति लीटर था। यहां हाई स्पीड पेट्रोल का दाम 86 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो गया। परभणी में भी पेट्रोल का रेट 81 रुपये 20 पैसे प्रति लीटर हो गया। 11 सिंतबर को महाराष्ट्र के 12 शहरों में पेट्रोल का रेट 80 रुपये प्रति लीटर से अधिक था। जबकि हम सब मुंबई के 79 रुपये 48 पैसे प्रति लीटर के रेट को ही अधिकतम मान रहे थे।
इंडियन आयल कारपोरेशन, एचपीसीएल, भारत पेट्रोलियम की वेबसाइट पर महानगरों और राजधानियों का रेट तो है मगर सारे पंपों, सारे ज़िलों और कस्बों का रेट नहीं है। इस कारण जब मीडिया में पेट्रोल के रेट की चर्चा हुई तो लगा कि सिर्फ महानगरों की समस्या है। जबकि ऐसा नहीं है। अखिल भारतीय पेट्रोल पंप संघ के अजय बंसल ने बताया कि देश भर में डीज़ल की बिक्री में दस प्रतिशत और पेट्रोल की बिक्री में 4 प्रतिशत की कमी आ गई है। दिल्ली में पेट्रोली की बिक्री में दस प्रतिशत की कमी आई है। दिल्ली के सीएनजी स्टेशनों में भीड़ अचानक सी बढ़ गई है।
पुलिस केस, आयकर विभाग और सीबीआई के डर से कांग्रेस के नेताओं से नहीं हो रहा है तो क्या बीजेपी से ही गुज़ारिश की जा सकती है कि वे 2013 की तरह पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर प्रदर्शन करें। हम उन्हें ही विपक्ष समझ कर सिनेमा देख लेंगे। मार्च 2013 में पेट्रोल का भाव 70 रुपये प्रति लीटर चला गया था। 1 सितंबर 2013 को दिल्ली में पेट्रोल का भाव 74 रुपये 10 पैसे प्रति लीटर चला गया था। उस समय कोलकाता में 81 रुपये 57 पैसे प्रति लीटर के भाव से पेट्रोल बिका था।
अगस्त 2013 में कच्चे तेल का दाम 108.45 डॉलर प्रति बैरल था। इस कारण पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे थे। इस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल का दाम 54.56 डॉलर प्रति बैरल है। उस वक्त के हिसाब से आधे से भी कम है लेकिन पेट्रोल के दाम सितंबर से भी ज़्यादा। इस अर्थशास्त्र को नहीं समझाने वाले कोई है जो इधर उधर का बात बता कर जनता को कंफ्यूज़ कर सके। तलाश है फिर से ऐसे योग्य अर्थशास्त्री की।
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