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आदित्य पुरी देश के सबसे सफल बैंकर या एक कामयाब शौहर ?

Shiv Kumar Mishra
10 Jan 2021 3:12 AM GMT
आदित्य पुरी देश के सबसे सफल बैंकर या एक कामयाब शौहर ?
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दीपक शर्मा

लाल मिर्च का भरवां अचार, सरसों के तेल में डूबा हुआ... जिसमे राई, कलौंजी और मोटी सौंफ की लार टपकाने वाली महक उठ रही हो। साथ में देसी घी के गरम परांठे और ताज़ी दही हो तो फिर कहने ही क्या ! अपने फुरसत के लम्हों की ये सबसे बड़ी ख्वाहिश उस शख्स की है जिसने देश में 16 लाख करोड़ रुपये का सबसे शानदार, सबसे मुनाफे वाला बैंक स्थापित किया है। जब बाकी बैंकों के मुखिया, माल्या, नीरव या ललित मोदी जैसों के साथ सोने के बिस्कुट निगल रहे थे तब HDFC के सिरमौर आदित्य पुरी, संडे के दिन अपनी पत्नी के हाथों बने आलू के परांठे खा रहे थे।

प्रेम के परांठे और रिश्वत के इन स्वर्ण बिस्कुटों में एक समूची सोच, समूचे संसार का अंतर है। इस अंतर को हमने आज नहीं जाना तो जान लीजिये कल आपके बच्चों का भविष्य कतई सुनेहरा नहीं रह सकता है। ये आपको डराने की बात नहीं, डर से पहले का अलार्म है ।

देश के वरिष्ठ बिज़नेस पत्रकार संजय पुगलिया ने जब आदित्य पुरी से पूछा कि जिस दौर में पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक, IDBI या कारपोरेशन बैंक का बाजा बज गया हो, तब इसी दौर में आपने HDFC जैसे नए बैंक को देश का सबसे मुनाफे वाला बैंक कैसे बना दिया ? जो बैंकिंग सेक्टर देश की अर्थ व्यवस्था को डूबाने में उतारू हो उसी सेक्टर की दलदल में आपने मोती कैसे चुन लिए ?

इस पर पुरी बोले, " मैं 26 साल तक HDFC का प्रबंध निदेशक (MD एवं CEO ) रहा। मैंने ही सभी मैनेजर्स को नौकरी पर रखा। मैंने ही एक- एक कर देश में HDFC की साढ़े पांच हज़ार से ज्यादा शाखाएं खुलवाई....लेकिन इन 26 बरसों में मैंने कभी भी, किसी भी ब्रांच मैनेजर को फोन करके ये नहीं कहा कि इस बन्दे को या उस बन्दे को लोन दे दो। एक करोड़ तो बड़ी बात है, मैंने एक लाख रुपए के लोन देने के लिए अपने मातहत से कभी सिफारिश नहीं की।हमारे यहाँ सिफारिश का कल्चर ही नहीं है, हमारा मैनेजर किसी के फ़ोन पर लोन नहीं देता है। " इशारों इशारों में पुरी ने सरकारी बैंकों की कलई खोलकर रख दी जहाँ फ़ोन पर ही करोड़ों-अरबों के लोन, सत्ता के करीबी लोगों को लुटा दिए गए।

आंकड़े गवाह है कि HDFC ने 21,078 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित कर, देश में बैंकिंग व्यवस्था की परिभाषा ही बदल दी। ऐसे वक़्त में जब IDBI जैसे बड़े सरकारी बैंक 15,116 करोड़, पीएनबी 9,975 करोड़ या इलाहाबाद बैंक 8,333 करोड़ के घाटे में डूब गए हों ...तब उसी वक़्त में, उसी देश में और उसी सरकारी व्यवस्था की छतरी के नीचे आदित्य पुरी ने बैंक जगत में अद्वितीय इतिहास रच दिया। कुछ महीने पहले बैंक के सबसे ऊँचे ओहदे से रिटायर हुए आदित्य पुरी, देश में बैंकिंग सेवा के पहले प्रशासक रहे जिन्होंने बैंकिंग प्रणाली को सौ फीसदी पारदर्शी करने के लिए उसे कंप्यूटर से जोड़ा था। नेट बैंकिंग का कॉन्सेप्ट लाने वाले वो पहले CEO रहे जिन्होंने हर ब्रांच को मोबाइल फोन से कनेक्ट करके समूची बैंकिंग सेवा को ग्राहक की हथेली पर उतार दिया। उनका कहना है कि कागज़ी खाते और फाइल ही घपले की जड़ है...क्योंकि जबान से हर कोई ईमानदार नहीं होता, पर टेक्नोलॉजी की मदद से पारदर्शिता लायी जा सकती है.... और पारदर्शिता से ही कुछ हद तक व्यवस्था में ईमानदारी आती है।

जब सरकारी बैंकों के बही खातों में उलटफेर की जा रही थी, जब पीएनबी या इलाहाबाद जैसे दिग्गज बैंक में क़र्ज़ के नाम पर खरबों का खेल चल रहा तब FinTech यानी फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके पुरी साहब ने HDFC की हर शाखा, हर खाते को एक सूत्र में पिरोकर, भ्रष्टाचार के दीमक को अपने संस्थान से दूर करने का संकल्प किया। " अगर बैंक की साख नहीं, प्रबंधन ईमानदार नहीं तो ग्राहक हम पर कभी भरोसा नहीं कर सकता है। जिसका पैसा हमारे हवाले हो उसे भरोसा तो देना ही पड़ेगा ," बेहद यकीन के साथ पुरी इस मंत्र को अपने अफसरों के गले में तावीज़ की तरह पहनाते आये हैं।

दरअसल आदित्य पुरी बैंकिंग सेक्टर के कोई फ़रिश्ते नहीं है। वे बेहद सहज, सरल और पारिवारिक व्यक्ति हैं जिन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे बैंक से ज्यादा अपनी बीवी को चाहते हैं। और अपने घर में बीवी के हाथ का खाना उनका सबसे पसंदीदा शगल है।

तो आदित्य पुरी को हम आखिर क्या माने ?

देश के सबसे सफल बैंकर या एक कामयाब शौहर ?

वो दोनों हो सकते हैं लेकिन उनकी शख्सियत की सबसे बड़ी खूबी उनकी 24 कैरट वाली सत्यनिष्ठा है। वो सत्यनिष्ठा जो सरकारी और प्राइवेट बैंक की शाखाओं से लेकर सत्ता के गलियारे तक कहीं अधूरी है या संदेह के घेरे में है।फरवरी 2018 में जब पंजाब नेशनल बैंक में नीरव मोदी के दस हज़ार करोड़ रूपए का घोटाला सामने आया था तो जांच में ये भी पता चला था कि बैंक के कई उच्च अधिकारीयों को जालसाजी की भनक बहुत पहले से थी। पर मामला फाइलों में उलझा रहा। फिर वित्तीय वर्ष के अंत में घोटाले को स्वीकार करने के अलावा जब बैंक के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो ये स्कैम देश के सामने आया ।ऐसे ही घपले सरकार के IDBI यानि Industrial Development Bank of India में भी खूब हुए। दरअसल IDBI में उद्योग के नाम पर रेवड़ी की तरह लोन बांटे गए और बैंक का घाटा बढ़ते बढ़ते 15 हज़ार करोड़ रुपए का हो गया।

ऐसा नहीं कि पंजाब नेशनल या IDBI बैंक के अध्यक्ष बैंकिंग नहीं जानते थे, या उनमे अनुभव का आभाव था। या उनमे और आदित्य पुरी के बैंकिंग कॉन्सेप्ट में ज़मीन आसमान का अंतर था। लेकिन एक बात तो साफ़ है कि इन दोनों सरकारी बैंकों में HDFC जैसी पारदर्शिता कभी नहीं थी। सच तो ये है कि सरकार के जिन डेढ़ दर्जन सरकारी बैंकों में कई सौ ख़रब रुपए के घोटाले हुए, उन बैंकों के प्रबंध निदेशकों में आदित्य पुरी जैसी अद्वितीय निष्ठा की कमी थी।किसी की रीढ़ कमज़ोर थी या फिर कोई लोन लुटा कर कमीशन की बंदरबांट में शरीक था।

ताज़ा आकड़ों के मुताबिक, भारत में सरकारी बैंकों के Non Performing Assets (NPA) यानि वो लोन जो चुकाये नहीं जा रहे, 7 लाख करोड़ रूपए से ज्यादा हैं। NPA एक तरह से घाटा ही माना जाता है और इस घाटे के सौदे में फिलहाल स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया सबसे ऊपर है जिसपर 1.84 लाख करोड़ के bad loans का बोझ है। उधर NPA के मामले में देश का सबसे अच्छा हिसाब किताब HDFC का रहा है। जाहिर तौर पर इसकी एक वजह आदित्य पुरी की साफगोई और पिछले 26 वर्षों से HDFC में लोन देने की पारदर्शी प्रक्रिया है।

ये कहना अब लाज़मी है कि भारत के सरकारी बैंक जिस तरह हमारी अर्थ व्यवस्था को एक खतरनाक मोड़ पर ले जा रहे हैं वहां देश को आज आदित्य पुरी जैसे ईमानदार मैनेजर की ज़रुरत है। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि आज 135 करोड़ के इस देश में आदित्य पुरी जैसे लोग शिखर पर बहुत कम है। या यूँ कहें की शिखर पर भ्रष्टाचार की ऐसी मोटी परत ज़मी है जिसे पिघलाने वाले कम रह गये हैं। लेकिन जिस दिन भी हमारी राष्ट्रीय संस्थाओं के शिखर पर दस प्रतिशत भी आदित्य पुरी, विराज गए उसी दिन से ये देश एक लम्बी छलांग लगाकर दुनिया को स्तब्ध कर देगा।

जैसे HDFC की शानदार बैलेंस शीट, रात के अंधेरे से घिरे बैंकिंग सेक्टर में एक ध्रुव तारे के सामान राह दिखा रही है। एक ऐसी राह, जिस पर बढ़कर हम बैंकिंग सेक्टर की कुछ दुश्वारियां, कुछ कांटे ज़रूर कम कर सकते हैं।

तो सवाल अब चाह का है, राह तो सामने है !

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