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2008 में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार और 2019 मुद्रा भंडार में जमीन आसमान का अंतर क्यों?
बार बार मोदी सरकार में बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार का ढोल पीटा जाता है हर हफ्ते दो हफ्ते यह खबर फैलाई जाती है कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार नयी ऊंचाइयों को छू रहा है लेकिन इस मिथ्या प्रचार की पोल भी आज खुल गयी है.
इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क पर पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान द्वारा बीते माह एक रिपोर्ट पेश की गई है उस रिपोर्ट का जब विस्तृत रूप से अध्ययन किया गया तब यह पता लगा कि आज के विदेशी मुद्रा भंडार से बाहरी देनदारियां कही ज्यादा है. जबकि साल 2008 में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार हमारे बाहरी कर्जों के मुकाबले ज्यादा था, लेकिन अब साल 2019 में स्थिति पूरी तरह से बदल गई है।
बिमल जालान कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मौजूदा वक्त में, विदेशी मुद्रा भंडार (जो कि 400 बिलियन डॉलर से ज्यादा है), देश पर बाहरी देनदारियों (करीब 1 ट्रिलियन डॉलर), यहां तक कि बाहरी कर्ज (500 बिलियन डॉलर), से भी कम है.
यह स्थिति बता रही है कि बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार की असलियत क्या है ? आर्थिक मंदी जब देश के दरवाजे के अंदर प्रवेश कर चुकी है तब इस तथ्य को जानना ओर भी ज्यादा भयावह अनुभव है!.
आरबीआई की एक अंतरिम कमेटी फिलहाल एक ऐसी प्रक्रिया बनाने पर विचार कर रही है, जिसकी मदद से आकलन किया जा सकेगा कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है या नहीं. इसके लिए आरबीआई का पैनल अर्थव्यवस्था के विभिन्न खतरों का अध्ययन करेगा। इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क पर पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान द्वारा बीते माह एक रिपोर्ट पेश की गई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2008 में विदेशी मुद्रा भंडार हमारे बाहरी कर्जों के मुकाबले ज्यादा था, लेकिन अब साल 2019 में स्थिति पूरी तरह से बदल गई है.
बिमल जालान कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मौजूदा वक्त में, विदेशी मुद्रा भंडार (जो कि 400 बिलियन डॉलर से ज्यादा है), देश पर बाहरी देनदारियों (करीब 1 ट्रिलियन डॉलर), यहां तक कि बाहरी कर्ज (500 बिलियन डॉलर), से भी कम है. रिपोर्ट के अनुसार, देश के बाहरी खतरों का आकलन कर इस बात पर ध्यान दिए जाने की जरुरत है. संभव है कि आरबीआई को अपनी बैलेंस शीट, रिस्क और वांछित आर्थिक पूंजी के बदलावों से निपटने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोत्तरी करने की जरुरत होगी.