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सत्ता जाते ही महारथियों के बोल क्यों बदल जाते है: तिलक तराजू तलवार अब बोद्ध धर्म!
राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए आप किसी भी सीमा तक और कहीं तक भी आवागमन कर सकते हैं। हर बात जायज है। बस सत्ता मिलनी चाहिये उसके लिए बेशक कुछ भी करना पड़े।
चार दशक पहले तक जिनका प्रिय नारा हुआ करता था तिलक तराजू और तलवार इनको जूते मारो चार लेकिन उसी तिलक तराजू और तलवार के सहारे कई बार सत्ता का स्वाद भी चखा । बहुत सारे तिलक तराजू और तलवार को अपने चरण चुंबन के लिये पाले रखा उनकी पत्नियों से पैर इस तरह से दबाने का सुख प्राप्त किया हो जैसे ग्रामीण भारत मे महिलाये अपनी सास के घुटनो तक पैरों को कई बार दबा दबा कर चरणस्पर्श करती हैं।
ऐसे महारथी सत्ता विहीन होते ही अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाये रखने खातिर इस बात की धमकी देते हुए ब्लैकमेलिंग शुरू कर रहे हैं कि वह बौद्ध धर्म अपनाने के लिए मजबूर होंगी । पिछले 40 सालों में ऐसा किसी को याद आता हो जरूर बताएं कि इन्होंने जिस समाज को ढाल बनाकर राजनीति की और सत्ता पायी हैं उस समाज के उत्थान के लिए कितने बड़े बड़े काम जमीन पर किये। सिवाये अपने और अपने भाई के नाम अकूत सम्पति जिनमे होटल से लेकर अस्पताल तक खड़े करने के अलावा कुछ नही किया गया।
40 साल राजनीति के शिखर पर रहते हुए जो नेतृत्व कुछ ना कर पाया हो सिवाय दूसरों पर अपनी नाकामियों के ठीकरी फोड़ने के अलावा वो आज बौद्ध धर्म अपनाने की गीदड़ भभकी देने के अलावा और कुछ कर भी नही सकता क्योंकि यही एक आखरी ब्रह्मास्त्र उसके पास बचा हुआ था।