- होम
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- राष्ट्रीय+
- आर्थिक+
- मनोरंजन+
- खेलकूद
- स्वास्थ्य
- राजनीति
- नौकरी
- शिक्षा
Archived
खूनी शतरंज के खिलाड़ी...गोरखपुर की शह...अपना बादशाह बचाइये हुजूर !
अश्वनी कुमार श्रीवास्तव
14 Aug 2017 3:45 AM GMT
x
अश्वनी कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार
63 बच्चे मरे... तो उनकी लाशें ही बिछाकर उस पर ही तुरंत भाजपा समर्थकों और भाजपा विरोधियों में आरोप और बचाव की राजनीतिक शतरंज चालू हो गई। पहले तो भाजपा सरकार और समर्थक तर्क देने लगे कि इतने बच्चे तो मरे ही नहीं... फिर मजबूरी में माना भी कि 63 बच्चे मर गए तो भी यह मानने को तैयार नहीं हुए कि ऑक्सीजन की कमी से मरे। कहने लगे कि इनके मरने का कारण जापानी बुखार है। यानी भाजपा सरकार और उसके समर्थकों की नजर में इन बच्चों की मौत के पीछे न तो किसी तरह की लापरवाही है, न भ्रष्टाचार है और न ही किसी तरह की साजिश है...उनको जापानी बुखार हुआ, जो कि इस मौसम में होता ही है...इसलिए मर गए। वैसे भी अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं...अभी भी तो मर ही रहे हैं।
उनके कहने का मतलब है कि मीडिया, सोशल मीडिया और जनता इन मौतों पर मजमा लगाकर जो हाय तौबा मचा रही है, वह अब अपने बाकी काम काज पर ध्यान दे और बच्चों को शांति से मरने दे....क्योंकि यह बच्चों के मरने का सीजन ही है। और जनता को ही बाकायदा सीख दी जा रही है कि आप लोग स्वच्छ रहिये, झोला छाप डॉक्टर के पास मत जाइए...मानों स्वच्छ रहेंगे तो कोई महामारी का शिकार ही नहीं बनेंगे क्योंकि स्वच्छ इंसान को तो मच्छर भी नहीं काटते।
और बुखार होते ही मेडिकल कॉलेज चले जायें, जैसे कि मेडिकल कॉलेज वाले सर्दी-जुखाम बुखार होते ही भर्ती कर लेते हैं, वह भी बिना किसी सोर्स सिफारिश या डॉक्टर/हस्पताल की रिकमंडेशन के...क्योंकि वहां तो सबके लिए बेड हैं हीं, लाल कालीन भी बिछा रखा है सरकार ने...जो-जो आता जाएगा, वो-वो वहाँ बेहतरीन स्वागत सत्कार के साथ बेड और इलाज पाता जाएगा।
यह तो थी भाजपा और भाजपा समर्थकों की दलीलें, जो न सिर्फ पूरी भाजपा सरकार, अफसर और समर्थक दे रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया पर भी इस तरह की अजब गजब दलीलों वाली पोस्ट एक के बाद एक पढ़ने को मिल रही हैं।
अब आइये भाजपा के विरोधियों की हाय तौबा पर। वे बेचारे इस नरसंहार के बाद से ही बस एक ही मांग पर अड़े हैं कि स्वास्थ्य मंत्री को हटाओ, मुख्यमंत्री इस्तीफा दो, राज्यपाल इस सरकार को बर्खास्त करें, मोदी इस पर ट्वीट करें और हो सके तो मोदी भी लगे हाथ इस्तीफा दे ही दें।
मानों ऐसा होते ही न सिर्फ उन 63 बच्चों के कातिल जेल में पहुंच जाएंगे बल्कि और बच्चों की हत्या होने से भी बच जाएगी....साथ ही, यूपी के सारे सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा भी इससे एकदम चाक चौबंद और भ्रष्टाचार रहित हो जाएगी। और ये मांग वे लोग कर रहे हैं, जो पिछले 27 साल से या तो यूपी की सत्ता बारी बारी से हथियाते रहे हैं या फिर केंद्र में आजादी के बाद से ही काबिज रहे हैं। यानी कि सपा, बसपा और कांग्रेस....मतलब सूप बोले तो बोले लेकिन चलनी भी बोल रही है, जिसमें बहत्तर छेद हैं।
स्वास्थ्य सेवा, सरकारी अस्पताल में सुधार और बच्चों की जान अगर भाजपा को हटाकर इनको बिठाने भर से बच जाती तो फिर कहना ही क्या था। क्या स्वास्थ्य सेवा और सरकारी अस्पताल योगी के चंद महीनों के शासनकाल में बदहाल हुए हैं? यह तो इन्हीं मरदूदों की कारस्तानी है, जो यूपी आज भी जंगल प्रदेश बना हुआ है। फिर भी इनके समर्थक सोशल मीडिया पर आग लगाए हुए हैं और बच्चों की मौत की आड़ में अजब गजब दलीलों के साथ पोस्ट डाल कर भाजपा, मोदी और योगी के खिलाफ अपनी राजनीतिक लड़ाई को तेज करने में लग गए हैं ताकि 2019 में मोदी को हटाकर इनके इष्टदेवों को सत्ता की मलाई चाटने का मौका मिल सके।
जो बच्चे मरे, वे इन दोनों पक्षों के लिए इनकी राजनीतिक बिसात की एक चाल भर हैं....ऐसी चाल, जिसमें कोई भी किसी को मात दे सकता है। अगर यह चाल पिट गई तो फिर ये दोनों ही पक्ष अगली चाल का इंतजार करेंगे। जाहिर है, अगली चाल में भी मोहरे इंसानी लाशों के ही होने हैं।
लाशों पर राजनीतिक शतरंज खेलने का यह खूनी शौक सोशल मीडिया के चलते अब देश के हर इंसान को लगता जा रहा है। उसे इस बात का भी जरा सा भी डर नहीं रहा कि किसी दिन इसी राजनीतिक बिसात पर खुद उसकी या उसके किसी परिजन की भी लाश मोहरा बनकर कोई मजेदार राजनीतिक चाल में तब्दील हो सकती है।
वे बच्चे मार दिए गए...जिस सिस्टम को उन्हें बचाने के लिए बनाया गया था, उसी सिस्टम ने उनकी हत्या कर दी। वह सिस्टम अब अगले शिकार की तलाश में है। कल गोरखपुर इसका शिकार था, आज या आने वाले कल में आपका शहर भी इसका शिकार बनेगा ही बनेगा। क्योंकि यही सिस्टम पूरे देश में है...कब तक हम-आप और हमारे परिजन इसके खूनी पंजों से बचेंगे...आखिर इसके मुंह में खून लगाकर इसे आदमखोर भी तो हमीं ने बनाया है...
ऐसा हो, तब तक आइये इस खूनी राजनीतिक शतरंज का मजा ही ले लेते हैं...पहले तो अपना-अपना पाला चुन लीजिये...आप भाजपा समर्थक हों या विरोधी, अपने-अपने खेमे में ही बैठिए...अब खेल शुरू हो गया है...अभी गोरखपुर के 63 बच्चों की लाश की चाल है और यही शह भी है...अब आप तो अपना बादशाह बचाइए हुजूर...वरना मात हो जाएगी...
अश्वनी कुमार श्रीवास्तव
Next Story