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- आरक्षण आंदोलन और...
कल बुधवार को भाजपा के एक समर्पित युवा नेता से बात हो रही थी. वह आज के भारत बंद को लेकर काफी चिंतित और मायूस था.पूछने पर कहा कि दलितो को खुश करने के लिये बीजेपी ने दलित को राष्ट्रपति बनाया . फिर बिहार में विधान सभा चुनाव में पराजित पूर्व दलित विधायक को राज्यपाल बनाया फिर भी दलित नाराज है. भला राष्ट्रपति और राज्यपाल से भी बड़ा कोई पद होता हैक्या. दलितो के सम्मान देने से सवर्णभी नाराज है. अब भला पार्टी करे तो क्या करे. भाजपा के इस युवा नेता की यह चिंता जायज है. भला हो भी क्यो नही .
याद कीजिये 1990 का वह मंजर जब मंडल कमीशन की सिफारिश को तात्कालीन बी पी सिंह की सरकार ने लागू किया था और उसके विरोध में दिल्ली में एक छात्र नेता ने देह में आग लगाकर आत्म हत्या कर ली थी. बिहार समेत पूरे देश में आरक्षण के विरोध में युवा सडक पर उतरे. नेप्थ्य से कई राजनीतिक दलो ने हवा भी दी लेकिन हुआ क्या. इस आग को बुझाने के लिये बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिये रथ यात्रा निकाली और वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी उस रथ यात्रा के सारथि बने. अय़ोध्या का बाबरी मस्जिद ढहा आरक्षण विरोधियो को लगा कि भाजपा उनके साथ है.
फिर कामेश्वर चौपाल जैसे दलित नेता से राममंदिर का शिलान्यास कराया गया यानि भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह दलितो की भी हितैषी भी है. इसका भाजपा को फल भी मिला. उत्तर प्रदेश समेत अनेक हिंदी राज्यो में उसकी सरकार भी बनी और देश के तख्त पर भी वह काबिज हुई. समय बदला केन्द्र में यू पी ए की सरकार आयी मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने . ग्लोबलाइजेशन के दौर में देश में आर्थिक बूम आया. नौजवानो के लिये रोजगार के अवसर बढ़े और धीरे - धीरे आरक्षण की चिंगारी मद्दिम हुई. लेकिन मनमोहन सरकार में हुए घोटाले ने जनता के बीच उसकी छवि इस तरह बदनाम हुईकि देश के युवाओं ने मनमोहनसरकार को विदा किया और मोदी को गद्दी पर आसीन कराया .
लेकिन यह क्या पिछले दिनो एस सी एस टी कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जिस तरह से दलित संगठनो का आक्रोश सड़को पर दिखा उसी समय लग गया था कि देश में एक बार फिर आरक्षण की आग लगने वाली है. दलित आंदोलन के तुंरत बाद केन्द्र सरकार ने जो फैसले लिये उसका असर आज सड़को पर दिख गया और अब एस सी एस टी एक्ट के विरोध के बहाने आज एक बार फिर आरक्षण की आग पूरी तरह भड़क गयी है. इस आग में राजनीति की रोटी सेकने वाले भाजपा विरोधियो की भी बांछे खिलनी स्वाभाविक भी है. लेकिन दोनो तरफ से नुकसान भाजपा को दिख रहा है. यानि उसका बैस वोट बेंक दरकने की संभावना है. यानि आगे कुंआ और पीछे खाई.अब देखना है कि भाजपा का नेतृत्व इस संकट से कैसे निजात पाता है.