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ताली बजाने वाले भी आज बन गए है पत्रकार!

महेश झालानी
23 Feb 2018 7:50 AM GMT
ताली बजाने वाले भी आज बन गए है पत्रकार!
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किसी भी इमारत या ढांचे को खड़ा करने के लिए चार स्तंभों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार लोकतंत्र रूपी इमारत में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ माना जाता है जिनमें चौथे स्तम्भ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया है । किसी देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया उतनी ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ। इस प्रकार पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ होता है जिसपर मीडिया का पूरा का पूरा ढांचा खड़ा होता है । यदि उसी को भ्रष्टाचार व असत्य रूपी घुन लग जाए तो लोकतंत्र रूपी इमारत को गिरने से बचाने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है और पड़ भी रहा है।
एक समय था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त थी कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द देश की राजधानी में बैठे नेता, राजनेता, व अधिकारियों की कुर्सी को हिला देता था। पत्रकारिता ने हमारे देश की आज़ादी में अहम् भूमिका निभाई, देश जब गुलाम था तब अंग्रेजी हुकूमत के पाँव उखाड़ने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से अनेक समाचार पत्र, पत्रिकाओं का सम्पादन शुरू किया गया । इन्ही पत्र/पत्रिकाओं ने देश को बाँधने व एकजुट करने में महती भूमिका निभाई थी।
अपने शुरुआत के दिनों में पत्रकारिता एक मिशन के रूप में जन्मी थी जिसका उद्देश्य सामाजिक चेतना को और अधिक जागरूक करना था । लेकिन आज पत्रकारों की एक नई फसल पैदा हो चुकी है जिसे गोदी मीडिया कहा जाता है । राजनेताओ और पूंजीपतियों के इशारे पर ही इनकी कलम चलती है । नैतिकता को इन्होंने सरे बाजार नीलाम कर पत्रकारिता को कलंकित कर दिया है ।
नई फसल से उत्पादित आज कुछ तथाकथित पत्रकारों ने मीडिया को ग्लैमर की दुनिया और कमाई का साधन बना रखा है । अपनी धाक जमाने व गाड़ी पर प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता । क्यूंकि सिर्फ प्रेस लिखना ही काफी है । गाड़ी पर नम्बर की ज़रूरत नहीं, किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं, हेलमेट की ज़रूरत नहीं । मानो सारे नियम व क़ानून इनके लिए शून्य हो क्यूंकि सभी इनसे डरते जो हैं । चाहे नेता हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, पुलिस हो, अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक रहती है । इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भरना इनका एकमात्र बुनियादी उद्देश्य है । खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, और भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा समाज के सामने पीटते हैं । मानो यही सच्चे पत्रकार हो । सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते हैं । कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि सच्चे, ईमानदार और अपने कार्य के लिए समर्पित रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सुकून से उनका काम भी नहीं करने देते । ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।
आज हद तो यह है कि आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति अपने कारोबार को संरक्षण देने के लिए पत्रकारिता में प्रवेश कर रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार, अन्याय, अत्याचार को बढ़ावा मिल रहा है और हमारा लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन खोखला हो रहा है । जो आज नहीं तो कल हमारे लिए घातक सिद्ध होगा। पत्रकारिता समाज का आईना होती है जो समाज की अच्छाई व बुराई को समाज के सामने लाती है। अब यदि पत्रकार और बुराई के बीच में सेटिंग हो जाती है तो न अच्छाई समाज के सामने आयेगी और न ही बुराई।
सवाल यह उत्पन्न होता है कि इस गन्दगी को दूर करेगा कौन ? जवाब होगा-खुद पत्रकार । सही रास्ते पर चलने वाले पत्रकारों ने पंक्चर छाप पत्रकारों को खदेड़ा नही तो ये काबिज होकर असली पत्रकारों को ही बेदखल कर देंगे । ढोल-ताशे बजाने वाले, कपड़ो पर प्रेस करने वाले, ट्रकों के खलासी तक आज पत्रकार बनकर पत्रकार संगठनों का संचालन कर रहे है । पत्रकारों की गरिमा और प्रतिष्ठा का मलीदा तो निकल ही चुका है । तभी तो राजस्थान सरकार ने 11 संगठनों के बैनर तले 32 दिन तक धरना देने वाले पत्रकारों की सुध तक नही ली । पत्रकारिता का इतना बड़ा ह्यास इससे पहले कभी नही हुआ होगा । प्रेस क्लब जो पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करता है, यहां भी माफिया काबिज होते जा रहे है। साधारण सदस्यता ऐसे बांटी जा रही है जैसे जूतों में दाल। क्लब आज सबसे संक्रमण काल के दौर से गुजर रहा है । कर्मचारी क्लब का संचालन और पदाधिकारी अपनी अपनी दुकानों का। पूरी तरह से क्लब में पोपाबाई का राज कायम है। क्लब नही हुआ, राज्य सरकार होगया है।
आवश्यकता आज पूपाड़ी बजाने या सरकार की खिदमत करने की नही, उन तत्वों को कुचलने की है जो पत्रकारिता के पवित्र पेशे के सीने में भाला भोप रहे है। सवाल फिर वहीं उतपन्न होता है कि जब अधिकांश लोग पूपाड़ी बजा रहे है तो इन्हें बेदखल करेगा कौन ? क्योकि आज हमारी पूरी जमात आंशिक या पूर्ण रूप से भ्रस्ट और निकृष्ट हो चुकी है जिसमे मैं खुद को भी शरीक मानता हूँ। जब सारा वातावरण सड़ांध मार रहा हो तो मैं इससे अछूता रह सकता हूँ। बहरहाल हमे खुद ही आत्ममंथन कर कोड ऑफ कंडक्ट बनाना होगा। संगठनों के बैनर तले मंत्रियों को बुलाकर इसकी आड़ में चंदा बटोरना तो इसका कतई हल नही है।
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