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भैय्यू जी महाराज पर टीका-टिप्पणी

भैय्यू जी महाराज पर टीका-टिप्पणी
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अवधेश कुमार
जब भैय्यू जी महाराज द्वारा स्वयं को गोली मारने का समाचार आया मैंने तुरत एक ट्वीट किया जो फेसबुक पर भी शेयर हुआ। उसके बाद मैंने उस पर कुछ लिखना नहीं चाहा। किंतु एक व्यक्ति, जिसने मौत को गले लगा लिया उसकी जिस तरह की निंदा मित्रगण कर रहे हैं, अलग-अलग प्रकार से चरित्रहनन की कोशिश हो रही है, उन्हें पाखंडी और न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है, उनसे जुड़े पत्रकारों बुद्धिजीवियों, नेताओं को भी कुछ लोग दलाल से लेकर कई प्रकार की गालियां दे रहे हैं वह सब देखकर मैं वाकई व्याकुल हो गया हूं। मनुष्यता के नाते भी थोड़ी-बहुत तो संवेदनशीलता दिखाओ।

मैं भैय्यू जी से कभी नहीं मिला। उनके किसी कार्यकम में भी नहीं रहा। एकाध बार किसी मित्र ने उनकी चर्चा की तो इच्छा जरुर हुई कि कभी साथ चलकर मुलाकात की जाए। ऐसा हुआ नहीं। हां, जहां तक मुझे याद है किसी प्रसंग में एक या दो टेलीविजन डिबेट में वो इंदौर से जुड़े थे और मैं दिल्ली से था। बावजूद उनकी गतिविधियों की थोड़ी बहुत जानकारी थी। उनको जानने वाले किसी व्यक्ति ने कभी यह नहीं कहा कि वो दोहरे चरित्र के हैं। हां, उनके बीमार रहने की बात अवश्य सुनता था।

मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि किसी का गृहस्थ होना यानी शादीशुदा होना उसके साधुत्व या संतत्व को कम नहीं करता। भारत में हम जितने ऋषि मुनियों के नाम सुनते हैं उनमें से अनेक शादीशुदा शुद्ध गृहस्थ जीवन जीते थे। भैय्यू जी को आप संत मानिए या नहीं यह आपपर है, लेकिन वे पहले से शादीशुदा थे और पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की इसलिए संत नहीं हुए यह धारणा बिल्कुल गलत है और अज्ञानता पर आधारित है। सद्गुरु परमार्थिक ट्रस्ट के माध्यम से वे समाज सेवा के अनेक काम कर रहे थे। राजनेताओं और नौकरशाहों से संबंध रखना कोई पाप थोड़े ही है। जो स्वयं नेताओं और नौकरशाहों से ज्यादा से ज्यादा संबंध रखने को लालायित रहते हैं वे दूसरे के संबंधों की आलोचना करते हैं। उनके क्रियाकलापों को देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि वो एक अति संवेदनशील, भावुक इंसान थे। उनमें मानवीय श्रेष्ठता भी थी। किंतु अध्यात्म से जितनी आत्मशक्ति उनके अंदर होनी चाहिए उसमें कुछ कमी थी, अन्यथा वे आत्महत्या नहीं करते। अध्यात्म सुख-दुख, तनाव-हर्ष सबमें समभाव से जीने की अंतःशक्ति प्रदान करता है। आत्महत्या उनकी गलती है। किंतु इससे उनको पाखंडी कह देना उचित नहीं।

आखिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था। कई साधुओं ने उसे स्वीकार लिया लेकिन भैय्यू जी ने विनम्रता से उसे अस्वीकार कर दिया। ऐसे कई प्रसंग हैं उनके जीवन के। उनसे लंबे समय से संपर्क रखने वाले अच्छे-अच्छे लोग उनका सम्मान करते थे। उनमें ईमानदार एवं नैतिक रुप से समुन्नत लोग हैं।

इंदौर पुलिस उनके मोबाइल के रिकॉर्ड के आधार पर कुछ पत्रकारों को आफ रिकॉर्ड उनके चरित्र को लेकर संदेह की बातें बता रहीं हैं। यानी वो जो दिखते थे उससे अलग भी उनका रुप था। पता नही ंसच क्या है। लेकिन ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के देहावसान के बाद दूसरी शादी क्यों करेगा? भैय्यू जी का प्रभाव इतना व्यापक था कि उनको भोग के लिए शादी की आवश्यकता नहीं थी। जाहिर है, एक गृहस्थ होते हुए उन्होने गृहस्थी का उचित रास्ता चुना। उनकी दूसरी पत्नी डॉ. आयुशी ने भी कभी उनके चरित्र पर उंगली नहीं उठाई। वो कह रहीं हैं कि मैं गुरुजी के साथ अच्छे से रह रही थी। उन दोनों की एक बच्ची भी हुई।

मीडिया में आत्महत्या का कारण केवल उनकी दूसरी पत्नी और बेटी के बीच के अनबन को बताया जा रहा है। उनके बीच संबंध अच्छे नहीं थे यह सच है। किंतु इतने से वे आत्महत्या कर लेंगे इस पर विश्वास करना जरा कठिन है। हालांकि यह कहावत सही है कि आप दुनिया के शेर से लड़ सकते हैं किंतु घर की बिल्ली से पार पाना मुश्किल है। परिवार में कलह हो जाए तो बड़े से बड़े ज्ञानियों का हौंसला पस्त हो जाता है। साधु-संत-समाज सुधारक-समाज सेवी भी अंततः मनुष्य ही है।

मेरा मानना है कि हमारे देश से लाखों लोगों को अच्छा मनुष्य, समाज के लिए सेवाभावी मनुष्य की प्रेरणा देने वाला एक व्यक्ति असमय चल गया यह दुख की घटना है। इसे इसी रुप में लेना चाहिए।
मुझे इस बात पर भी घोर आश्चर्य हुआ कि जिस मुख्यमंत्री ने उनको राज्य मंत्री का दर्जा दिया वो उनके अंतिम संस्कार में न स्वयं आए न अपना प्रतिनिधि भेजा। निजी स्तर पर कुछ नेता आए। कहा जा रहा है कि पुलिस ने उनको न आने की सलाह दी। यह ठीक व्यवहार नहीं।
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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