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" बेटी बचाओ " का नारा देने वालों से ही बेटियां असुरक्षित कैसे हो गईं?

 बेटी बचाओ  का नारा देने वालों से ही बेटियां असुरक्षित कैसे हो गईं?
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हम महिला सशक्तिकरण की तमाम बातें तो करते हैं लेकिन महिलाओं पर लगातार हो रहे अपराध , हमारे समाज को आइना दिखाने का काम कर रहे हैं। हम यहां बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश उन्नाव के भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर सोलह वर्षीय लड़की द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोप पर। लड़की के पिता ने बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की तो 8 अप्रैल 2018 को उसे पुलिस हिरासत में ले लिया गया , जहां 9 अप्रैल को उसकी मौत हो जाती है। लड़की ने कहा " देखो मेरे पापा को खत्म कर दिया"। लड़की ने कहा कि विधायक के इशारे पर उसके पापा को मार दिया गया। ये हालात हैं सुशासन का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की।

उन्नाव के माँखी गांव की रहने वाली लड़की ने आरोप लगाया कि 6 जून 2017 को गांव की एक महिला नौकरी का झांसा देकर विधायक के पास ले गयी जहां पर कुलदीप सेंगर और उनके साथियों द्वारा बलात्कार किया गया। विरोध करने पर उसके परिवार को मरवा के फिकवाने की बात कही। 11 जून 2017 को उसको अगवा कर लिया गया बाद में पुलिस ने उसे छुड़वाया।

सत्ताधारी दल भाजपा के विधयक होने कारण पुलिस व प्रशासन ने लड़की की कोई सुनवाई नहीं की। 8 अप्रैल 2018 को लड़की ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ आवास के बाहर आत्मदाह का प्रयास किया उसी दिन उसके पिता को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया जहां अगले दिन उसकी मौत हो जाती है। लड़की का आरोप है कि 3 अप्रैल 2018 को केस वापस लेने के लिए विधायक के गुर्गों ने घर में घुसकर उसके पिता की बंदूकों के बट से बेरहमी से पिटाई की थी जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

लड़की के पिता की मौत के बाद शासन प्रसाशन जागता है। मुख्यमंत्री जांच के आदेश देते हैं और एसओ सहित 6 पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया जाता है। अब मुख्यमंत्री जी कहते हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा ,अब प्रश्न ये उठता है कि जब एक बेटी इंसाफ के लिए दर दर भटक रही थी तब आप और आपके अधिकारी कहाँ सो रहे थे ?। क्या इसलिए कार्यवाही नहीं हुई मुख्यमंत्री जी कि कुलदीप सेंगर आपकी पार्टी का विधायक था ?।
" बेटी बचाओ " का नारा देने वालों से ही बेटियां असुरक्षित कैसे हो गईं। पीड़ित लड़की की फरियाद कहीं नहीं सुनी गई तब जाकर कोर्ट की शरण में उसे जान पड़ा। जिस भाजपा सरकार को बेटियों का कवच होना चाहिए था वह अपने बलात्कारी विधायक का कवच बन गयी। क्या हमारा सिस्टम इतना खराब हो गया जहां एक पीड़ित बेटी की आवाज को नहीं सुना गया। यह सुनकर हमारा खून नहीं खौलता ?। क्या ऐसे जनप्रतिनिधि हैं हमारे ?। मुख्यमंत्री जी को ऐसे विधायक पर तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए ,ऐसा लगता है कि नैतिकता नाम की अब चीज ही नहीं बची है।
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता " जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है। जहां नवरात्रि में कन्या पूजन किया जाता है। ऐसी अवधारणा वाले देश में लगातार महिला अपराध बढ़ रहे हैं जो समाज के लिए चिंतनीय विषय है। किसी बेटी की सरेराह जब इज्जत नीलम होती है तो यही समाज के ठेकेदार चुप रहना ही बेहतर समझते है। ऐसे दरिंदों से निपटने के लिए समाज को आगे आना पड़ेगा। पुलिस प्रशासन को भी सत्ता की बेड़ियों को तोड़कर बेटियों की रक्षा सुरक्षा के लिए आगे आना पड़ेगा साथ ही राजनैतिक लोगों को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर दुराचारियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करना होगा। नहीं तो ये बेटियां और इतिहास हमे हमारी कायरता के लिए कभी माफ नहीं करेगा।
" मिटा सकें जो दर्द तेरा, वो शब्द कहाँ से लाऊं ।
चुका सकूं अहसान तेरा,वो प्राण कहाँ से लाऊं।।
देखो जो हालत ये तेरी, छलनी हुआ कालेज मेरा।
रोक सके जो अश्क मेरे, वो नैन कहाँ से लाऊं।।
खामोशी है इतनी क्यों ,क्या गूंगे बहरे हो गए हैं सारे।
सुना सकूं जो हालत तेरी, वो जुबान कहाँ से लाऊं।

लेखक राघवेंद्र दुबे समाजवादी नॉएडा महानगर के पूर्व महासचिव है.
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