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मुजफ्फरपुर: पत्रकारो का शीत युद्ध और सुप्रीम कोर्ट की मानिटरिंग!
मुजफ्परपुर कांड की चर्चा आज यत्र तत्र सर्वत्र सभी की जुवां पर है. भला हो भी क्यो नही. इस घटना ने पूरे बिहार को शर्मशार किया है.आप राजधानी पटना के जिस किसी राजनीतिक दलो के कार्यालय में जायं या फिर सरकारी कार्यालय या फिर अधिकांश चौक चौराहों पर आपको समाज के तथाकथित बुद्दिजीवि इस मुद्दे पर चर्चा करते मिल जायेगें . अगर आप पत्रकार है तो लोग अपडेट भी सुनना चाहते हैं. जितने लोग उतनी कहानी. यही हाल विभिन्न चैनलो अखबारो का भी है.
लेकिन सबसे दिलचस्प तो सोशल मीडिया पर विद्वतजनो की जंग देखने को मिल रहा है. एक से एक गाशिप रूपी ब्रहमास्त्र छोड़े जा रहे है. खास कर उन लोगो के द्वारा जो ना खुद मुजफ्फरपुर गये या उनकी टीम गयी. लेकिन ज्ञान ऐसे बाट रहे है जैसै संजय महाभारत के युद्ध मैदान की घटना बता रहे है और सामने वाला धृतराष्ट की तरह अंधा होकर सब कुछ सुन रहा है. मुझे पूरी तरह से याद है जब पहली बार इस खबर को संतोष जी ने कशिश न्यूज पर ब्रेक किया और हमलोगो की आपस में बातचीत हुई तो लगा कि इस खबर को मीडिया हाथो - हाथ लेगा. लेकिन यह क्या करीब एक सप्ताह तक हम लोग आंख फाड़कर देखते थे कि किसी अखबार चैनल या शोशल मीडिया इसे प्रमुखता दे रहा है या नही . टी वी चैनलो और अखबारो की तो बात ही छोड दे सोशल मीडिया के धुरंधरो के पास भी ना कोई शब्द था ना कुछ लिखने की फुर्सत. इस बारे में बार - बार संतोष जी ने मीडिया , स्वयं सेवी संस्थानो को सोशल मीडिया के सहारे ललकारा भी था लेकिन वही ढाक के तीन पात.
राजनीतिक दलो के नेताओं के पास हमारी टीम बाइट के लिये जाती थी तो उनके लिये यह कोई बड़ी खबर नही होती थी. कई बार कशिश की टीम मंजू वर्मा के पास गयी लेकिन उनकी नपी तुली प्रतिक्रिया कि सरकार ने जांच करायी है कार्रवायी हो रही है. लेकिन कहते है ना सत्य की जीत होती.और कहावत है दीन उजाडे तीन गये रावण कौरव कंस. आज वही बात चरितार्थ हो रही है.समय का फेर देखिये . जिस खबर को कोई नोटिस नही ले रहा था वह भाया सीबीआई होते हुए भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था के पास पहुंच गयी और सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर खुद मानिटरिग करने का एलान किया है और अर्पणा भट्ट ऐमिकस क्यूरी बनायी गयी है जो कोर्ट को सहयोग करेगी. यानि यह मामला पूरी तरह से सही दिशा और सही मुकाम पर पहुंच गया है. निश्चित रूप से इस मुकाम तक पहुंचाने में लोकतंत्र के सभी अंगो का महत्वपूर्ण योगदान है.
लेकिन पते की बात यह है कि पत्रकार होने के नाते ब्रजेश ठाकुर के साथ संबंधो को लेकर एक दूसरे पर छींटा कशी की जा रही है और एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन मेरे जैसे लोगों का मानना है कि ब्रजेश ठाकुर को पत्रकारिता विरासत में मिली थी धनोर्पाजन करने के लिये जिसमें उसका कोई योगदान नही था. पत्रकार के रूप में उसके अखबार या खुद ब्रजेश ठाकुर की कभी कोई वैसी उपलब्धि नही जो उसे पत्रकार के रूप में स्थापित कर सके. फिर वैसे लोगो के लिये यह चिल्ल पौ क्यो. हम मानते है कि देश में जो भी भ्रष्टाचार की घटनाये हुयी है उसे उजागर पत्रकार ने किया तो उसमे आरोपी भी एक आध नाम चीन पत्रकार ही रहे है, लेकिन पूरी पत्रकारिता बिरादरी उजागर करने वाले के साथ रही है आरोपी के साथ नही. ऐसे में अब भी समय गवायें इस घटना को अंजाम तक पहुंचाने के लिये हम सबो को एक साथ चलने की जरूरत है ताकि पत्रकारिता की चादर ओढे दूसरा ब्रजेश पैदा ना हो जो हमारे बेटियो के अस्मत के साथ खेल सके.