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अब दिल्ली में जिग्नेश मेवानी, देश में संविधान चलेगा या मनुस्मृति?

अब दिल्ली में जिग्नेश मेवानी, देश में संविधान चलेगा या मनुस्मृति?
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अवधेश कुमार
जिग्नेश मेवानी अब राजधानी दिल्ली पहुंच चुके हैं। दिल्ली वे पहले भी आते रहे हैं, लेकिन उनका मुख्य केन्द्र जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय होता था। इस बार उन्होंने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया से पत्रकारों को संबोधित किया। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने आए हैं। 9 तारीख को दिल्ली में एक रैली करेंगे तथा प्रधानमंत्री कार्यालय तक जाने की कोशिश। वे यह सब क्यों कर रहे हैं? इसका उनका अपना उत्तर है।

वे प्रधानमंत्री से पूछना चाहते हैं कि देश में संविधान चलेगा या मनुस्मृति। मैं मनुस्मृति पर यहां कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। लेकिन देश में मनुस्मृति कहां लागू है यह तो उनसे और उनके समर्थकों से पूछा ही जाना चाहिए।

वे कह रहे हैं कि उनको 2019 में चुनौती देंगे। तो साफ बताइए न कि निशाना 2019 में भाजपा है। कोई रैली करे, मार्च करे, चुनाव में किसी पार्टी, नेता को चुनौती दे इसमें कोई समस्या नहीं। लोकतंत्र मंें किसी को ऐसा करने का अधिकार है। आपका किसी पार्टी और नेता से विरोध हो सकता है और उसे प्रकट करने में भी कोई समस्या नहीं है। किंतु इसे दलितों के उद्धार के नाम पर करना पाखंड है। दलितों का उद्धार इस तरीके से नहीं हो सकता।

आपका लक्ष्य तो दलितों और मुसलमानों को एकत्रित कर राजनीति करना है। कई बुद्विजीवी ऐसा मानते रहे हैं कि भाजपा को पराजित करना है तो इस तरह का गठजोड़ बनना चाहिए और यह तभी हो सकेगा जब साबित किया जा सके कि भाजपा दलित विरोधी है। इसके लिए देश में खासकर जहां-जहां भाजपा का राज है वहां दलितों के नाम पर भड़काउ भाषणों और कर्मों से दूसरे वर्ग को उत्तेजित करो तथा वे प्रतिक्रिया दें तो उसका राजनीतिक लाभ उठाओ।

भाजपा को हराने के लिए आप काम करिए न। किंतु सीधे तरीके से और साफ-सुथरी राजनीति से। इसकी जगह जो कुछ दिख रहा है एक खतरनाक सोच है। इससे सतर्क रहने की आवश्यकता है। देश को किसी तरह जातीय तनाव और संघर्ष में नहीं फंसने देना है। दलितों के प्रति सवर्ण अपनी सोच और व्यवहार में परिवर्तन लाएं ताकि इनकी खतरनाक योजना को परास्त किया जा सके।

दोनों की जनसंख्या देखते हुए बहुत लोगों के मुंह में पानी भी आ रहा होगा कि इससे वे आसानी से सत्ता तक पहुुंच जाएंगे। जिग्नेश मेवानी भी उसमें शामिल हो सकते हैं और दूसरे भी। हालांकि यह इतना ही आसान नहीं है। इस देश का दलित समाज अब कहीं ज्यादा जागरुक और सतर्क होगा। वह अपना भला-बुरा समझ सकता है।

उनकी भाषा शैली देखिए। पांच दिनों पहले पुणे के भाषण में उन्होंने कहा था कि 56 ईंच का सीना फाड़ देंगे। यह कैसी राजनीति है। उनकी दूसरी पंक्तियां भी इसी तरह की थीं। अगर किसी को फिर भी नहीं लग रहा है कि ये सब अराजक तत्व हैं जिनसे देश और समाज को केवल क्षति हो सकती है तो उनके लिए कुछ कहने की आवश्यकता नहीं।
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