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परमा से बातचीत के बाद पता लगा कि उसके तीन बेटी है। फूली, संती और सत्ती। पत्नी दमा और टीबी के कारण कई महीनों से खाट पर पड़ी है।
महेश झालानी
इसी सप्ताह की बात है। चौखटी पर जब मैं साफ सफाई के लिए मजदूर लेने गुर्जर की थड़ी पहुँचा। हमेशा मजदूरों की चहल-पहल से आबाद रहने वाली चौखटी वीरान सी पड़ी थी। जहां सैकड़ो की तादाद में मजदूर हुआ करते थे, आज बमुश्किल दस-बीस होंगे। मेरी गाड़ी को देखते ही मजदूर मेरी ओर टूट पड़े। कई लोग तो कार का गेट खोलकर जबरन ही अंदर घुस गए थे । उनको बाहर निकालने में मुझे खूब मशक्कत करनी पड़ी।
अधिकांश लोग चार सौ रुपये की दिहाड़ी मांग रहे थे। फिर 350 और बाद में 300 पर आ गये। पता नही क्या सोचकर मैंने करीब 55-60 के व्यक्ति को बुलाकर पूछा-तुम क्या लोगे ? उसका जवाब था कि जो आप राजी-खुशी दोगे, ले लूंगा। मैंने कहाकि मैं तो सौ रुपये दूंगा, चलोगे ? उसने तत्काल हामी भर दी। मैे उसे कार में बैठाकर साथ ले आया।
मैं उससे कोई करवाता, उसने बीड़ी सुलगाई। मिसेज नहाने गई थी, इसलिए काम कैसे और करवाऊ, समझ नही पा रहा था। मैं भी उसके पास सीढियो पर बैठ गया। उसके चेहरे पर एक अजीब सा तनाव और दर्द की लकीरें साफ झलक रही थी। मैंने वैसे ही पूछ लिया कि तुम्हारा नाम- परमा। गांव का नाम पूछने पर दौसा रुट पर अरनिया के पास एक ढाणी बताई।
मैंने परमा से कहा कि तुमने कहा था कि जो मैं दूंगा, वह स्वीकार होगा। जी...। मैं तुम्हे केवल सौ रुपये ही दूंगा। जैसी था कि मर्जी। गहरी श्वास लेकर बोला परमा। पता नही क्यूं मुझे उसकी जिंदगी में झांकने की ललक पैदा होगई। इतने पैसो में क्या कर लोगे, मैंने सवाल किया। अब क्या बताऊँ साहब आपको। कल से केवल दो चाय पी है। अन्न को दानो भी ना गया है पेट मे। इन पैसों से सत्ती को इलाज तो हो जायेगो। सत्ती कौन है ? मेरे तीसरे नम्बर की बेटी। बुखार, खाँसी से तड़प रही है बेचारी कई दिनों से। सोचा था एक आध दिन मजूरी करके कुछ पैसे घर ले जाऊंगा। तीन दिन से बोहनी तक नही हुई है। आज आप मिल गए तो हामी भर ली।
उसके बारे में और जानने की जिज्ञासा बढ़ गई। मैं उसके हर जख्म को कुरेदना नही, महसूस करना चाहता था। मेरी पत्नी ने मजदूर के साथ बतियाते देखा तो वह परमा के लिए चाय और मेरे लिए कॉफी (मैं चाय नही पीता हूँ) और साथ मे तिल के लड्डू, गजक वगैरहा भी ले आई। यह बड़प्पन की बात नही, मेरे घर की परिपाटी है। चाय तो परमा ने पी ली, लेकिन लड़डू और गजक के हाथ नही लगाया। मैं चुपचाप देखता रहा। मैंने चाय समाप्ति के बाद पूछा-लड्डू क्यो नही खाये। उसने कोई जवाब नही दिया। मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई। मैंने दबाव देकर पूछा- क्या तुम्हें लड्डू पसन्द नही है ?
जी। खूब पसंद है। और इतना कहकर वह फूट फूट कर रोने लगा। उसकी रुलाई देखकर मेरा मन खट्टा होगया। अपने आप पर पछतावा होने लगा कि मुझे किसी के जख्म कुरेदने का हक किसने दिया है। फिर झिझकते हुए परमा बोला- साहब आप इजाजत दे तो मैं दो तीन लड्डू ले लू ? मैंने इसका कारण जानना चाहा तो परमा बोला-बीच वाली संती को तिल्ली के लड्डू बहुत पसंद है। तीन-चार बार याद दिलाया कि जयपुर से आओ तो लड़डू जरूर लाना तिल के।
उसके निश्चल भाव और उसकी वेदना जानकर ऐसा लगा मानो किसी ने दिल मे कील ठोक दी हो। जो लड़डू कई दिनों तक यू ही पड़े रहते है, क्या वे किसी आरजू भी हो सकते है क्या ? मैंने प्लेट में रखे सारे लड़डू उसे थमा दिए। परमा ने गमछे में गांठ बांधकर रख लिए। पता नही मुझे अचानक क्या हुआ, मैं अंदर गया और थाल में जो भी लड़डू थे, सब एक थैले में डाले। मेरी पत्नी यह सारा नजारा देख रही थी। जब उसको हकीकत बताई तो उसने बेसन के लड्डू, फैनी, नमकीन, नमक पारे, गाजर का हलवा एक थैली में पैक कर दिया। और वह थैली उसे थमा दी। परमा मेरे और मेरी पत्नी के पांव गिरकर रोने भी लगा और आशीष भी दी।
परमा से बातचीत के बाद पता लगा कि उसके तीन बेटी है। फूली, संती और सत्ती। पत्नी दमा और टीबी के कारण कई महीनों से खाट पर पड़ी है। बेटा कोई है नही। परमा ही एकमात्र कमाने वाला है। पहले वह दस-बारह हजार रुपये कमा लेता था। लेकिन आज परिवार क्या, खुद की रोटी के भी लाले पड़ रहे है। रियल एस्टेट में मंदी, बजरी पर रोक के कारण हजारो-परमा दो जून क्या, एक जून की रोटी के लिए मशक्कत कर रहे है।
दिल इतना बोझिल होगया कि परमा से काम कराने का मन ही नही हुआ। काम भी ऐसा नही था जिसे कराना अनिवार्य हो। बस मेरी एक ललक थी कि यह पंख लगाकर उड़ जाए और मिले अपनी फूली, संती और संती से। ढांढस बंधाए उस लाचार औरत को जो चारपाई पर कराह रही है। मैंने परमा को 500 रुपये देकर कहा कि जब वह फ्री हो, तब आ जाये। मित्रो, मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि क्या परमा वापिस लौटा या फिर कभी लौट कर आएगा ? क्या मैंने उसे बिना काम कराए कोई गुनाह किया। आप सब बुद्धिमान हो, इस सवाल का जवाब आपसे अपेक्षित है।
शिव कुमार मिश्र
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