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राइट टू प्राइवेसी: क्या अब सब मोदी सरकार की मर्जी पर छोड़ दिया
गिरीश मालवीय
क्या कम्प्यूटर निगरानी से जुड़ा आदेश निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है ? राइट टू प्राइवेसी' आर्टिकल-21 (जीवन और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) के अंदर आने वाले अधिकार का हिस्सा माना जाता है. इस तरह की बात शुक्रवार से चल रही है.
कल भारत के राजपत्र में गृहमंत्रालय की ओर एक अधिसूचना प्रकाशित की गई है. अधिसूचना के मुताबिक गृह मंत्रालय के साइबर सुरक्षा एवं सूचना विभाग ने इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट के सेक्शन 69 (1) के तहत 10 एजेंसियों को अधिकार दिया है कि वे स्वतंत्र रूप से मोबाइल, टेबलेट, लैपटॉप और कम्प्यूटर जैसे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों की निगरानी और जासूसी कर सकती हैं.
क्या राज्य को पुलिस स्टेट बनने की इजाजत दी जा सकती है. सार्वजनिक हित अहम तो है, लेकिन उतनी ही अहम है व्यक्ति की निजता और सम्मान जिसे कल के आदेश में भेदा जा रहा है. ओर निजता का अधिकार की बात करना कोई आज की बात नही है. 'हर व्यक्ति का घर उसकी शरणस्थली होता है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और क़ानूनी अनुमति के उसे भेद नहीं सकती.
यह बात आज से 123 साल पहले 1895 में लाए गए भारतीय संविधान बिल में कही गयी थी,1925 में महात्मा गांधी की सदस्यता वाली समिति ने 'कामनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल' को बनाते हुए भी इसी बात का उल्लेख किया था. 1947 में भी भीमराव आंबेडकर ने निजता के अधिकार का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि लोगों को अपनी निजता का अधिकार है, उनका यह भी कहना था कि अगर किसी कारणवश उसे भेदना सरकार के लिए ज़रूरी हो तो सब कुछ न्यायालय की कड़ी देख रेख में होना चाहिए. लेकिन यहाँ अब सब मोदी सरकार की मर्जी पर छोड़ दिया गया है.