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नफरत की सियासत कितने दिन की मेहमान?

Majid Khan
14 Aug 2017 8:49 AM GMT
नफरत की सियासत कितने दिन की मेहमान?
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शाहिद सिद्दीकी, पूर्व सांसद एवं संपादक नई दुनिया उर्दू साप्ताहिक

कहते हैं कि दुनिया में मुहब्बत के चारों ओर घूमती है। मगर कभी कभी समाज में नफरत का जोर इतना बढ़ जाता है कि मुहब्बत भी इसके सामने सर झुकाने पर मजबूत हो जाती है। आज हमारे समाज और सियासत में नफरत की जो आंधी चल रही है वह नई नहीं है। दुनिय के बहुत से देशों में ऐसे दौर आए हैं जब नफरत इंसानों के दिमाग पर इस तरह हावी हो गई है कि लगा कि इस ने शायद मुहब्बत को हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया है। वह हिटलर हो, स्टालिन का रूस या दक्षिणी अफ्रीका की नस्लपरस्त हकूमत। मगर कहते हैं कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। जब जब समाज और सियासत में नफरत बढ़ती है तब तब इस की ही कोख से इसे शिकस्त देने वाले पैदा हुए हैं। हर फिरऔन के खुदा कोई मूसा पैदा करता है।

नफरत का रावण

आज भारत की राजनीति में नफरत का बोलबाला है। हर गली, हर गांव, हर मोड़ पर नफरत का रावण खड़ा हंसी उड़ा रहा है ओर इसके सामने मुहब्बत और भाईचारा की सियासत व सभ्यता लाचार नजर आ रही है। ऐसा लगता है कि नफरत के इस रावण को शिकस्त देने के लिए अब कोई राम नहीं आएगा। नफरत की सियासत उरूज पर है। गंगा जमना संस्कृति की कोख से जन्म लेने वाले भारतीय नफरत के इस तूफान में बह रहे हैं। कहीं पहलू खां इस नफरत का शिकार बन रहे हैं तो कहीं जुनैद इस नफरत के खंजर से लहूलुहान है। कहीं अय्यूब भीड़ की दरिंदगी का शिकार है तो कहीं कोई मासूम दलित इस का निशाना बन रहा है।

कोई सुरक्षित नहीं

दरिंदों की इस भीड़ को उकसाने वाले संतुष्टï हैं कि 'भीड' दूसरों को निशाना बना रही है। जिस तरह हिटलर के जर्मनी में आम जर्मनी मुतमइन थे कि नाज़ी नफरत के निशाने पर कम्युनिष्टï हैं, लोकतंत्र वादी हैं, उदारवादी हैं और फिर यहूदी हैं। मगर 'हम' इनमें से कोई नहीं इसलिए हम सुरक्षित हैं। मगर नफरत की आग ने जर्मनों को भी नहीं बख्शा। लाखों मारे गए। शहर के शहर तबाह हो गए। आज हमारे सामने इराक है, शाम है, लीबिया है जहां नफरत के तूफान चंद सालों में हंसते खेलते जगमगाते शानदार शहरों को खंडहरों में तबदील कर दिया। नफरत की इस आग में न अल्पसंख्यक सुरक्षित रहे न बहुसंख्यक।

खतरे में हिंदुस्तान

आज हिंदुस्तान अपने इतिहास के बदतरीन दौर से गुजर रहा है। आज खतरे में मुसलमान और दलित नहीं हैं खतरे में है पूरा हिंदुस्तान। हिंदुस्तान का संविधान, भारत का लोकतंत्र, भारत का भविष्य। वह संविधान जिसे जंगे आजादी के बहादुरों ने अपने खून सें सींचा था और एक 'धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र' की बुनियाद रखी। आज इसी गणतंत्र की जड़ों में नफरत का तेज़ाब उंडेला जा रहा है।

आज भारत में गरीब असुरक्षित है, दलित असुरक्षित है और अल्पंसख्यक असुरक्षित है। किसान अपने हाथों से अपने जान ले रहा है। देश की कुछ पार्टियां और नेता नफरत की इस आग में सियासी रोटियां सेंक रहे हैं। वह खुश हैं कि हर मोड़ पर कामयाबी इन के कदम चूम रही हैं। मुहब्बत करने वालों में मायूसी और पराजय का माहौल है। क्या नफरत की यह आग 'भारत' को हमेशा हमेशा के लिए जला कर खाक कर देगी? क्या इस अंधेरी रात की कोई सुबह नहीं होगी?

वह सुबह तो आएगी?

इतिहास का हर विद्यार्थी जानता है कि रात कितनी भी काली क्यों न हो, कितनी भी लंबी क्यों न हो रात फिर रात है। इस अंधेरे की कोई कोख से सूरज जन्म लेता है और मिनटों में अंधेरे का नाम व निशान मिटा देता है। आज हिंदुस्तान भी एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां इसे एक ऐसे ही गांधी का इंतजार है। एक ऐसे गौतम, नानक या चिश्ती का इंतज़ार है कि जो नफरत के इस रावण की आंखों में आंखेें डाल कर इसे चेलेंज कर सके। अहिंसा और प्रेम के इस देश को एहसास दिला सके कि नफरत इस की आत्मा नहीं है। भारत की आत्मा प्रेम और प्रीत है। अपनी आत्मा को नुकसान पहुंचा कर भारत जिंदा नहीं रह सकता। भारत को जिंदा रखने के लिए इस की आत्मा को वापस लौटाना होगा। प्रेम व मुहब्बत की आत्मा, गौतम, राम, कृष्ण, नानक, चिश्ती, कबीर और गांधी की आत्मा।

एक महात्मा की तलाश

आज हिंदुस्तान एक दौराहे पर खड़ा है। मुझे यकीन है कि आखिरकार हिंदुस्तान एक सही रास्ता इख्तियार करने और नफरत की सियासत को शिकस्त देने में कामयाब हो जाएगा। मगर सवाल ये है कि नफरत की ये रात जो अभी शुरू हुई है कितनी लंबी होगी? नफरत का यह रावण अपने रास्ते में कितनी तबाही फैलाएगा और कितने बेगुनाहों की जान ले लेगा। हम देख रहे हैं कि नफरत की सियासत में आईएसआईएस के नाम पर कि तरह इराक और शाम को तहस नहस कर दिया। क्या हमें भी सुबह होने से पहले एक ऐसे ही दौर से गुजरना होगा? या फिर गांधी की इस देश में एक और गांधी उभरेगा। एक और महात्मा सामने आएगा और नफरत के रावण का खात्मा कर देगा। इससे पहले कि ये हमारे समाज, हमारी सियासत और हमारी जम्हूरियत को तबाह व बरबाद कर दे।

गोड़से की सियासत

नेता आसमान से नहीं उतरते, जनता के बीच ही जन्म लेते हैं। जिनके पीछे जनता चलती है और बड़े नेता बन जाते हैं। क्या अहिंसा के इस देश में जनता को पानी सिर से ऊंचा होने से पहले होश आएगा? और वह नफरत की सियासत को ठोकर मार कर अहिंसा, मुहब्बत और भाई चारे के रास्ते को फिर से अपना लेंगे। वह रास्ता जिस की निशानदेही इस देश के जंगे आजादी के नेताओं ने की थी। जिस पर चल कर आज हिंदुस्तान का शुमार दुनिया के ताकतवर देशों में होने लगा है। जिस भारत की बुनियाद गांधी, नेहरू, पटेल ओर आजाद ने रखी थी। जिस नफरत के रावण को महात्मा गांधी के लहू से पराजित किया था। गोड़से की सियासत को एक बार फिर नाकाम बनाने और हमेशा के लिए दफनाने की जरूरत है। नफरत की सियासत न कभी कामयाब हुई है और न कभी होगी। मगर इसके लिए हर हिंदुस्तानी को वह रास्ता अपनाना होगा जो बापू ने हमें दिखाया था और जिस पर चलकर हमने दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यी ताकत को पराजय का मूंह देखने पर मजबूर कर दिया था।
(साभार नई दुनिया)

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