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राहुल गाँधी के एक "मौज" भरे कृत्य की ऐसी गंभीर व्याख्या?

राहुल गाँधी के एक मौज भरे कृत्य की ऐसी गंभीर व्याख्या?
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क्या राहुल उनको अपदस्थ करने की मंशा का सन्देश देने वहां गए थे?

अभिषेक श्रीवास्तव

आज का कुल सिला- यह इकलौती तस्वीर. इसे याद रखिएगा. हार्ड डिस्क में सेव कर लें. अगले दो आम चुनाव यानी 2024 तक काम आएगी. क्यों?

राहुल गाँधी जब गले मिलने पहुंचे तो प्रधानमंत्री अवाक से थे. "ये क्या है" पूछने के अंदाज़ में उन्होंने हाथ की मुद्रा बनाई. ऐन गले मिलने के वक़्त उनके चेहरे की भंगिमा देखिए- असुरक्षा, विस्मय और खीझ का मिलाजुला रूप. फिर झट से कोर्स करेक्शन करते हुए वे मुस्कुराए और राहुल से हाथ मिलाए जब वे जाते-जाते लौटकर आए थे. राहुल लौटे और उन्होंने अपनी बायीं ओर देखकर आँख मिचकायी गोया मौज ले रहे हों! आप उनके आँख मिचकाने की कोई भी व्याख्या करें, सच यही है.
प्रधानमंत्री जी ने इस गले-मिलन की क्या व्याख्या की? "अभी तो चर्चा प्रारम्भ हुई थी, मतदान नहीं हुआ था, जय पराजय का फैसला नहीं हुआ था, फिर भी जिनको यहाँ पहुँचने की उत्साह है... उठो उठो उठो...!" राहुल गाँधी के एक "मौज" भरे कृत्य की ऐसी गंभीर व्याख्या? क्या राहुल उनको अपदस्थ करने की मंशा का सन्देश देने वहां गए थे? बिलकुल नहीं. फिर प्रधानमन्त्री ने ऐसा क्यों कहा और समझा? यह उनके भीतर की असुरक्षा बोल रही थी. उन्होंने "उठो उठो" वाली व्याख्या कर के इतना तो जता दिया कि उन्हें दरअसल राहुल का यह ऐक्ट समझ ही नहीं आया. असली मौज इसी को कहते हैं कि आप ले भी लें और सामने वाले को समझ भी न आवे! अगर समझ में आया भी रहा होगा तो प्रधानजी क्या कहते? इसे वे सहज गले-मिलन की संज्ञा दे ही नहीं सकते थे क्योंकि वे सहज मानुष नहीं हैं. बेहद जटिल हैं. उसकी वैकल्पिक व्याख्या करना मजबूरी थी उनकी. उन्होंने यही किया. हाँ, राहुल इस व्याख्या का मर्म समझ पाए या नहीं, यह उनकी बुद्धि का मामला है.
इस पूरी व्याख्या में प्रधानजी ने और सब ने उस कोर्स करेक्शन को भुला दिया जब दोनों ने हंस कर हाथ मिलाया था. बात यहाँ ख़तम मानी जानी चाहिए थी लेकिन प्रधानजी कहां मानने वाले थे, उन्होंने गलत लीक पर चुटकी ले ली और इस तरह राहुल की एक और बात को सही साबित कर दिया कि वे और भाजपा अध्यक्ष चुनाव हारना अफ्फोर्ड नहीं कर सकते क्योंकि वे डरे हुए हैं कि हार गए तो कुछ दूसरी प्रक्रियाएं शुरू हो जाएंगी. राहुल गांधी लगातार कह रहे थे- "डरो मत, डरो मत" और पूरे देश ने आज देख लिया कि 325 जनप्रतिनिधि वास्तव में कितना डरे हुए हैं.
डरे हुए जनप्रतिनिधि, डरा हुआ नेतृत्व, डरी हुई बहुमत की सरकार और लगातार निडर होता जा रहा मुट्ठी भर विपक्ष व इस देश का आम अवाम! डरा हुआ 325 और मौज लेता 126... उन्हें डर है कि डरे हुए लोग एक दिन उनसे डरना छोड़ देंगे! अचानक गले पड़ जाएंगे और एक क्षण के लिए डरा देंगे! यही है इस तस्वीर का असल हासिल!

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