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पूर्वोत्तर में भाजपा का उदय और वामपंथ के अस्त के मायने---
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव परिणाम पर विपक्षी दलों की कौन कहें खुद भाजपा को विश्वास नही हो रहा है कि पिछले 25 वर्षों से त्रिपुरा की सत्ता पर काबिज रहे वामपंथी मोर्चे की सरकार को उसने बेदखल ही नही किया खुद अकेले अपने बलबूते पर सरकार बनाने में कामयाब हो गयी है. वह भी तब जब माणिक सरकार की इमानदारी की कसम वामपंथी ही नही उनके विरोधी भी खाते थे और शायद वर्तमान राजनीति मे इमानदार नेताओं की अंतिम कड़ी के वे नेता माने जाते थे.
वही नागालैंड में भी अपनी दमदार उपस्थिति और मेघालय में कमल खिलाने की शुरूआत कर भाजपा ने यह संदेश दे दिय़ा है कि पूरब में उसका उदय हो चुका है और पूर्वौत्तर में कमल खिल चुका है. हालांकि इन चुनाव परिणामो पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों और वामपंथी दलो के नेताओं की प्रतिक्रिया आ चुकी है और भाजपा वाले जहां इसे मोदी और अमित शाह मैजिक करार दे रहे हैं तो वामपंथी नेता पैसा और ताकत की जीत बतला रहे हैं. अमूमन ऐसी प्रतिक्रिया परंपरागत रही है. लेकिन हकीकत है कि दोनों दलों के नेता सच्चाई बताने से परहेज कर रहे हैं. हालांकि जो जीता वही सिंकंदर मानते हुए भाजपा नेताओं के दावे को खारिज नही किया जा सकता जह साफ है कि भाजपा के रणनीतिकार चुनाव जीतने के लिये हर तरह के हथियार का प्रयोग करने से नही चूकते जिसे साम दाम दंड भेद कहा जाता है.
यानि भाजपा की चुनाव तैयारी बहुत पहले से शुरू होती है और मिशन मोड में खत्म होती है जिसमें दुश्मन को परास्त करने के लिये सारे तरकीब लगाये जाते हैं. जबकि वामपंथी पार्टिया हो या कांग्रेस इनका चुनावी प्रबंधन पुराने और परंपरागत तरीके से लड़े जा रहे है. यानि नामांकन के अंतिम दिन अंत अंत तक उम्मीदवारों की सूची जारी करना और केवल बडे नेताओं के चुनावी दौरे और भाजपा के खिलाफ बयानबाजी कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेना.
खास कर वामदलों का वही साम्प्रदायिकता , समाजवाद . का रटा रटाया नारा चुनावी मुद्दे रहे हैं. आज के नौजवानो की समस्याओं के निदान की रूपरेखा प्रस्तुत करने में वामदल पूरी तरह से विफल रहे है. उन्हें यह पता नही कि उन्हे हवाई चप्पल वाला मुख्यमंत्री नही चाहिये बल्कि उन्हें भी ऐसा सी एम मिले जो उनके सपनो को उडान दे. निश्चित रूप से इस मामले में मोदी और अमित शाह की टीम पूरी तरह से कामयाब टीम रही है.लोकतंत्र में चुनाव होते है और हार जीत होते रहती है लेकिन भाजपा विरोधियों को इन चुनाव परिणाम से सीख लेने की जरूरत है. फिलहाल कह सकते है कि जो जीता वही सिकंदर.
अशोक कुमार मिश्र की कलम से