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पेट ना विचारधारा से भरेगा ना मुँह बोले विकास की धारा से!

पेट ना विचारधारा से भरेगा ना मुँह बोले विकास की धारा से!
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बिन बुलाये नवाज़ शरीफ के दरवाज़े पर दस्तक देने वाले नरेंद्र मोदी, अहमद पटेल को जिताने के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने लगे

लंकेश तिर्खा की कलम से

सब का साथ सब का विकास का परचम लहराने वाली बीजेपी गुजरात की दहलीज में 100 सीटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई.तनिक ठहरिये ये वही गुजरात विकास का मॉडल है जिसकी बुन्याद पर 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने के लिए चुन करके आए. क्या कारण रहे होंगे की सब का साथ सब का विकास की परिभाषा, विकास गांडो थायो छे(विकास पागल हो गया है) में तब्दील हो गयी. क्या लोगों ने वो चश्मा उतार दिया जिस चश्मे के माध्यम से विकास दिखाया जा रहा था? यां वो पैंतरा समझ में आ गया जिस के चलते जनता को झांसे में रखा जाता है.



गुजरात चुनाव में स्टार प्रचारक की भूमिका निभाने वाले हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास से दूरियां बनाते नज़र आये . हर रैली में कांग्रेस से गुजरात को क्या नुकसान हुआ और क्या नुकसान होगा उसका विश्लेषण करते नज़र आये लेकिन 22 सालों में बीजेपी से गुजरात को क्या फायदा हुआ और क्या फायदा होगा वो ज़ुबान पर नज़र नहीं आया.
बौखलाहट का पैमाना तये कर पाना असंभव था. जिस नेहरू ने हिंदुस्तान और दुनिया को मई 27, 1964 में अलविदा कह दिया मोदी साहब ने ज़रा गुरेज़ नहीं किया ये कहने में की नेहरू भी बीजेपी से खौफ खाते थे जब की बीजेपी अप्रैल 6, 1980 में विकिसित हुयी.
बाबरी मस्जिद विवाद जिसका दूर-दूर तक गुजरात विकास से कोई नाता ना था, उसको मुद्दा बना कर कांग्रेस को शिकंजे में लिया और कांग्रेस के लिए सवाल पैदा कर दिया की वह बाबरी मस्जिद के हक़ में है यां राम मंदिर के.

बिन बुलाये नवाज़ शरीफ के दरवाज़े पर दस्तक देने वाले नरेंद्र मोदी, अहमद पटेल को जिताने के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने लगे. मणि शंकर अय्यर, पूर्व प्रधानमंत्री रह चुके डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व उप राष्ट्रपति रह चुके हामिद अंसारी की पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री रह चुके खुर्शीद कसूरी की मुलाकात को अलग ही सांचे में ढाल कर लोगों के सामने रखते नज़र आये.

विकास जो गुजरात की रैलियों के दौरान ठन्डे बस्ते में था. वहीं गुजरात जीतने के बाद विकास मोदी साहब की ज़ुबान से रोके भी नहीं थम रहा था.बीजेपी मुख्यालय में विजय भाषण की शुरुवात ये कहते की कि "गुजरात ने विकास को चुना है विकास के मार्ग से ही जन समस्याओं का समाधान होगा". 1998, 2002, 2007, 2012 लोक सभा और विधान सभा के परिणामो का हवाला देते हुए कहने लगे कि इन गुज़रे सालों में अगर जीत हासिल कि है तो केवल विकास के मुद्दे पे.

लेकिन ये बात उनके लबों पर तब नहीं आयी जब वो गुजरात रैलियों के दौरान प्रचारक कि भूमिका अदा कर रहे थे.विकास गांडो थायो छे(विकास पागल हो गया है) का नारा किस कदर दुखती नबज़ पर प्रहार कर चुक्का था जाते जाते उसकी मिसाल भी देते गए . लोगों से ऊँचे स्वर में नारा लगवाया "जीतेगा भी जीतेगा" और प्रतिक्रिया में आवाज़ सुन ने को मिली "विकास ही जीतेगा".

ऐसा जाप रहा था जैसे ये नारा दवा का काम कर रहा हो. फिर मोदी जी चलते बने राजनाथ सिंह से नज़रें मिलाते हुए ये प्रतीक हुआ जैसे आश्वासन ले रहे हो कि विकास जिसके स्वाभिमान पर खतरे के कोहे-ग्रां(बादल) मंडरा रहे थे उस पर मोदी जी का भाषण कारगर साबित हुआ यां नहीं.क्या वो चश्मा लोगों कि नज़रों पे टिक्का पाए जिस से वो विकास को देखते हैं.

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