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ये खबरें बता रही है, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता न सिर्फ खो दी बल्कि किसी 'चौकीदार' के पास गिरवी रख आया

ये खबरें बता रही है, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता न सिर्फ खो दी बल्कि किसी चौकीदार के पास गिरवी रख आया
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हमारे सामने दो खबरें हैं, ये खबरें आसानी से बता सकती हैं कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता न सिर्फ खो दी ह-

हमारे सामने दो खबरें हैं, ये खबरें आसानी से बता सकती हैं कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता न सिर्फ खो दी है बल्कि मीडिया अपनी विश्वसनीयता को किसी 'चौकीदार' के पास गिरवी रख आया है।


पहली खबर कश्मीर के उस नौजवान की है जो बगैर टिकिट गलत ट्रेन में चढ़ गया था जिसके पकड़े जाने पर मीडिया ने उसे आतंकी बताते हुए 'सूत्रों' के हवाले से गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को दहला देने की 'साजिश' का 'पर्दाफाश' कर दिया। मीडिया की इस कांय कांय से आजिज आकर एटीएस के एक बड़े अधिकारी ने बयान जारी किया कि पकड़ा गया युवक आतंकी नही है बल्कि वह गलती से गलत ट्रेन में चढ़ गया था। इस मामले को समझा जा सकता है क्योंकि बगैर टिकिट यात्रा के दौरान पकड़ा गया युवक कश्मीरी था और ऊपर से मुसलमान था।


मुसलमान को आतंकी बताकर पेश करना कोई ज्यादा बड़ी बात नही हैं, उसे किसी घटना का मास्टरमाईंड बता देना भी कोई बड़ी नहीं है। क्योंकि मीडिया के 'सूत्र' इस देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के मुसलमानों के आतंकी होने की जानकारी रखते हैं, उन्हें मालूम है कि एक सीधे साधे मुसलमान को भी जिसने कभी अपने कान पर भिनभिनाता मच्छर नहीं मारा होगा उसे भी वे आतंकी बताकर वे कुछ नया नहीं कर रहे हैं। इसी मीडिया ने मुसलमानों को छवी आतंकी की गढ़ दी है।



दूसरी खबर बीते आठ जनवरी की है, और कमाल यह कि यह खबर दिल्ली की है। इस खबर से मेरा निजी लगाव है। 9 जनवरी को दिल्ली के जंतर मंतर पर युवा नेता Jignesh Mevani और अखिल गोगोई 'युवा हुंकार रैली' करने वाले थे। यह रैली जेल में बंद भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण की रिहाई की मांग को लेकर की जानी थी। मीडिया 9 जनवरी से पहले तक इस रैली को यह कहकर प्रचारित करता रहा कि रैली की परमीशन नहीं मिली है।

लेकिन जैसे ही 7 जनवरी बीती और 9 जनवरी शुरू हुई फिर मीडिया ने जिग्नेश को टार्गेट करना शुरू कर दिया। मुझे इस रैली में जाना था, मैं सुब्ह 11 बजे इस रैली में जाने के लिये साथी Shariq Husain भाई के साथ घर से निकला, मैं कभी टीवी पर न्यूज टाईप बकवास देखकर अपना वक्त जाया नहीं करता। लेकिन शारिक भाई ने अपने मोबाईल में आज तक चैनल लगा दिया। यह चैनल खबर चला रहा था कि जिग्नेश मेवानी रैली में जाने के लिये निकल चुके हैं, आज तक की टीम आपको लाईव प्रसारण दिखा रही है।

पांच सात मिनट बाद आज तक ने बड़ी ब्रेकिंग चलाई कि जिग्नेश मेवानी को गिरफ्तार किया जा चुका है। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। जिग्नेश ने कहा है कि यह संविधान पर हमला है, बोलने से रोका जा रहा है, वगैरा वगैरा, मुझे लगा कि हो सकता है कि जिग्नेश को गिरफ्तार कर लिया गया हो। वापस चलते हैं, लेकिन फिर एक बार सोचा कि रैली स्थल पर जाकर ही देखते हैं कि क्या माजरा है। जैसे ही जंतर मंतर मंतर पहुंचे वहां हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे, जिसमें सो से अधिक तो पत्रकार ही थे। थोड़ी देर में जिग्नेश भी जंतर मंतर पर पहुंच गये। ये वही जिग्नेश थे जो बकौल 'आज तक' गिरफ्तार कर लिये गये थे।
ऐसे में सवाल उठता है कि रात दिन गला फाड़कर सच दिखाने का दावा करने वाला टीवी मीडिया सच से कितनी दूर है ? और साथ ही झूठ और मनघड़ंत बकवास के कितना नजदीक है ? आम दर्शक रात दिन कोट और टाई पहनकर टीवी स्क्रीन पर बकवास करने वाले मान्यता प्राप्त गुंडे, झूठे और मक्कारों की बकवास सुनता है और उसी के मुताबिक अपनी राय कायम करता है। टीवी के ये मक्कार एंकर, झूठे रिपोर्टर सुब्ह से शाम तक न जाने कितने झूठ लोगों को परोसते हैं। ये ऐसे कायर हैं जिन्होंने टीवी का सहारा लेकर, संसाधनों का सहारा लेकर इस देश में नफरत का, झूठ का, मक्कारी का दलाली का कारोबार बढ़ाया है। इन एंकरों/पत्रकारों के हाथ न जाने कितने मासूमों के खून से रंगे हैं।

ये उतने ही बड़े आतंकवादी हैं जितना बड़ा आतंकी शंभूलाल रेगर है। इनकी किसी भी बात पर यकीन न किया जाये क्योंकि ये अपनी विश्वसनीयता 'चौकीदार' के चरणों में गिरवी रख आये हैं। इन्होंने जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताया है, उस पर इन दिनों सत्ताधारियों और कार्पोरेटस् घरानों का कुत्तार मूत रहा है। दुष्यंत कुमार ने इन्हीं मक्कारों के लिये कहा था कि –
तेरी जबान है झूठी जम्हूरियत की तरह
तू एक जलील सी गाली से बेहतरीन है।
वसीम अकरम त्यागी की कलम से

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