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मनीष सिंह
एक पीढ़ी की उम्र 30 साल होती है। आजादी दौरान की पीढ़ी का समय आप 1960 तक मान सकते है। उस पीढ़ी ने आजादी की लड़ाई , बंटवारा और हिंसा का नंगा नाच देखा। वो पीढ़ी इस उथल पुथल के दौर से दग्ध थी। अपने बच्चो को भाईचारे , एकता और धर्मनिरपेक्षता का संदेश दिया। विज्ञान, नए दौर और सहिष्णुता की घुट्टी दी। उसने गरीबी देखी थी, शिक्षा और परिश्रम से गरीबी से उबरने की राहें खोजने की समझ अपने बच्चो को दी।
दूसरी पीढ़ी कोई 1990-95 तक समझिये। इस दौरान शिक्षित, सहिष्णु, परिश्रमी वर्ग में देश को मजबूत बनाने में समय लगाया। खाक से शुरू कर एक सामान्य मध्यम, कंफर्टेबल जीवन अपने बच्चो को दिया। मगर इस दौर के बच्चे मन्दिर मस्जिद विवाद, मुम्बई, गोधरा, कश्मीर अहमदाबाद देखते हुए बड़े हुए। नई सदी में इनका वक्त आया , तो दबे छिपे रूप में ही सही, कंम्यूनलिज्म दिमाग के एक हिस्से बैठा हुआ था। निजी बात चीत में इनको ठीक करने की बाते करता था। मौका मिले तो निपटा देने की सोच थी। देश की राजनीति में इस भावना का दोहन करने वाले मजबूत हो रहे थे।
आज 2020 के आते आते अगली पीढ़ी पूरी तरह इस रंग में रंग चुकी है। सत्ता इस भावना को भड़का रही है। इस पीढ़ी ने न युद्ध देखे है,न हिंसा, और न उस स्तर की गरीबी। फ्री डेटा और बकने की आजादी इसमे घी का काम कर रही है। अगर कोई इतिहास बोध हो भी, तो उसे प्रोपगंडा से धवस्त किया जा रहा है। धर्मनिपेक्षता और लिब्रलिज्ज्म गाली है। नेहरू, गांधी, मख़ौल के पात्र हैं। कोई आश्चर्य नही की जिन्ना स्टाईल का डायरेक्ट एक्शन यहां वहां देखने को मिल रहा है। लिंचिंग को स्वीकार्यता मिल चुकी है। जल्द ही ये अनकहा सिविल राइट हो जायेगा।
इसे रिवर्स करने का मौका हम खो चुके हैं। 2019 , पुरानी पीढ़ी के बचे लोगो के पास आखरी मौका था। अब तो 30 साल हमे यह सब बढ़ते क्रम में देखना है। कांग्रेस हमारा डी एन ए थी। अब भाजपा होगी। और ये गांधीवादी समाजवाद की भाजपा नही। ये गोडसे, सावरकर, बाबू बजरंगी की भाजपा है।
इतिहास में ऐसे शासन तबाही के रास्ते पर ले जाते देखे गए हैं। विघटित समाज कभी एक देश का निर्माण नही करता। सत्ता के अतिकेंद्रीकरण और धर्म के मिश्रण से औरंगजेब ने 200 साल की मुगलिया सलतनत की जड़ें खोद दी थी। हमे तो अभी 75 नही हुए। ख़ैर, देश का जो होगा, सो होगा। वो राजनैतिक लड़ाई हारी जा चुकी है।
अब लड़ाई घर पर है। अपने बच्चो को इस जॉम्बी वाद से बचाने की। उनको टीवी से बचाना है, मोबाइल से बचाना है, उंसके दोस्तो से बचाना है। सिनेमा हाल से बचाना है। किसी दल, संगठन से जुड़ने से बचाना है। नही बचाया, किसी दिन अपने या किसी और के खून से लथपथ घर आएगा। हम उसकी लाश से बातें कर रहे होंगे, या वो हमें किसी और लाश का जस्टिफिकेशन दे रहा होगा।
देश चाहे जिसको सौंप दिया। घर बचा लीजिये।