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पत्रकार या journalist कौन है? भारत में इस शब्द की कोई परिभाषा नहीं है!

पत्रकार या journalist कौन है? भारत में इस शब्द की कोई परिभाषा नहीं है!
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पत्रकार या journalist कौन है? भारत में इस शब्द की कोई परिभाषा नहीं है। और न ही पत्रकार के कोई प्रोफेश्नल एथिक्स औपचारिक तौर पर तय किए गए हैं, जैसे वकील, डॉक्टर या सीए इत्यादि प्रोफेश्नल्स के बकाएदा लिखित एथिक्स होते हैं। हमारे देश का संविधान आर्टिकल- 19(1)(a) में बोलने की जो आजादी भारत के सभी नागरिकों को देता बस वही पत्रकारों या प्रेस को भी है। इसके अतिरिक्त कोई भी विशेषाधिकार प्रेस या पत्रकार के पास नहीं। ऐसा मानकर चला जाता है कि जनता के Right to Know के तहत प्रेस एक ट्रस्टी की तरह भूमिका निभाता है।

यदि साक्ष्य सम्बंधी विशेषाधिकार की बात की जाए तो attorney-client, doctor-patient और पति-पत्नी के बीच के संवाद आदि इसके तहत आते हैं। पत्रकार या प्रेस को वह विशेषाधिकार भी नहीं है। अर्थात किसी मुकदमे में वह अपने खबर का स्त्रोत न बताने के लिए स्वतंत्र नहीं है। उसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम के धारा- 132 (witness not excused from answering) से मुक्ति नहीं मिली हुई है। हालांकि पिछले कुछ सालों में यह बहस जरूर चली कि 132 में संशोधन करते हुए प्रेस को ये विशेषाधिकार दिए जाएं लेकिन फिलहाल यह सिर्फ बहस भर है। हां प्रेस काउंसिल के समक्ष प्रेस काउंसिल एक्ट की धारा- 14 के तहत सेंशरशिप की कार्यवाही में प्रेस को धारा- 15 (2) में स्त्रोत बताने के लिए बाध्य न करने की बात कही गई है। लेकिन कोर्ट की कार्यवाही में नहीं प्रेस काउंसिल की कार्यवाही में।

तो मेरा उपरोक्त डमरू बजाने का मकसद सिर्फ इतना था कि मैं बता सकूं कि इस देश में पत्रकार या प्रेस ऐसी कोई विशेष चीज या शख्सियत नहीं कि उसे वह काम करने की छूट प्रदान हो जो आम नागरिक के लिए एक अपराध है। और यहां मैं फिर से दोहराता हूं कि पत्रकार या journalist की कोई परिभाषा भी हमारे देश में नहीं। जिस 19(1)(a) को एंजॉय वे करते हैं, वह भारत का हर नागरिक करता है।

उपरोक्त बातें मैनें सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के मद्देनजर कही हैं जिसका जिक्र मैनें अपनी पिछली पोस्ट में किया था। सुप्रीम कोर्ट ने एक नागरिक के कथित मानहानि के मामले पर तो कह दिया कि प्रेस को मानहानि के शिकंजे में नहीं फंसाना चाहिए। लेकिन इसी सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन से सम्बंधित एक मुकदमे की गलत रिपोर्टिंग होते ही, आदेश जारी कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्टिंग वही पत्रकार कर सकते हैं जो कम से कम लॉ ग्रेजुएट हों।
ठीक है आप सुप्रीम कोर्ट हैं, अपने बारे में गलत रिपोर्टिंग पर आपने तुरंत एक्शन ले लिया लेकिन एक आम या खास नागरिक भी मान-सम्मान डिजर्व करता है, यह भी नहीं भूलना चाहिए। और अंत में यदि प्रेस या पत्रकार को विशेषाधिकार देने हैं तो कॉमन सी बात है कि पहले उनके लिए कुछ एथिक्स बनाईए। भारत में प्रेस एक पूरी तरह से असंगठित सेक्टर है...यह तथ्य अनदेखा नहीं किया जा सकता।
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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