दिल्ली

सीएए एनआरसी को लेकर शाहीन बाग के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंसी भाजपा ?

Shiv Kumar Mishra
21 Jan 2020 4:00 AM GMT
सीएए एनआरसी को लेकर शाहीन बाग के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंसी भाजपा ?
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दिल्ली के शाहीन बाग़की तरह पूरे देश में कई शाहीन बाग़ बनने को आतुर दिख रहे है जबकि कई जगह अपना रूप भी अख्तियार कर चुके है.

माजिद अली खान राजनैतिक संपादक

नागरिकता संशोधन अधिनियम बनाते वक्त सरकार खासतौर से अमितशाह ने यह सोचा भी नहीं होगा कि यह मामला इतना तूल पकड़ेगा। एक्ट के विरोध में जामिया मिल्लिया इसलामिया दिल्ली से शुरू हुआ प्रदर्शन पूरे भारत में घूम रहा है। शुरुआती हिंसक प्रदर्शनों पर पुलिस कार्रवाई और सरकार की सख्ती से भाजपा और संघ समर्थक महसूस करने लगे थे कि अब शायद लोगों का जज़्बा खत्म हो जाएगा। लेकिन इसके उलट जनता ने जोश के साथ अहिंसक और लोकतान्त्रिक गांधीवादी तरीकों से सरकार के इस अधिनियम का विरोध करना शुरू किया।

विरोध का प्रतीक बन चुके शाहीन बाग में महिलाओं के विरोध आंदोलन ने पूरे देश के लोगों को निडर होकर सरकार के विरुद्ध खड़े होने की शक्ति प्रदान की। शाहीन बाग से निकला आक्रोश अब भारत के सभी हिस्सों में फैल गया है और जगह जगह लोग शांतिपूर्वक विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इन सभी आंदोलनों की खास बात ये है कि इनका नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं और राजनीतिक दलों से दूरी बरती जा रही है। प्रदर्शनकारियों से निपटने में पुलिस को भी खासी दिक्कत पेश आ रही है।

सीएए के विरोध के चलते भाजपा और संघ ने इस अधिनियम के समर्थन में भी पूरे देश में रैलियां करने तथा कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को अधिनियम के बारे में बताने की भी कोशिश की जा रही है।

भाजपा और सरकार शुरू में दमनकारी नीति पर चलना चाहतीं थी लेकिन प्रदर्शनकारियों ने सरकार की आंखों में आंखें डालकर उसे सोचने पर मजबूर किया है। भाजपा के अंदर से भी अब इस अधिनियम की दबे शब्दों में आलोचना की जा रही है। सुभाष चंद्र बोस के पोते और भाजपा नेता चंद्र कुमार बोस ने पार्टी को कह दिया है कि हम इस अधिनियम में संशोधन करके हम विपक्ष का मुंह बंद कर सकते हैं। इस तरह पार्टी के दूसरे नेताओं ने भी पार्टी नेतृत्व को इस बारे में गंभीरतापूर्वक विचार करने की सलाह दी है।

शाहीन बाग में चल रहे आंदोलन से प्रेरित होकर देश के दूसरे हिस्सों में खड़े हो रहे विरोध प्रदर्शनों से केंद्र सरकार भी सकते में है। बहुत सारे गैर भाजपाई राज्य विधानसभाओं ने सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है और अपने राज्यों में सीएए लागू न करने की बात कही है। सरकार अपने समर्थन में यह बात कह रही है कि सीएए से किसी को नुकसान नहीं है जबकि प्रदर्शनकारियों का विरोध एनआरसी के साथ सीएए दोनों का है।

संघ और भाजपा ये कन्फयूज़न दूर न करके लोगों को और अधिक कन्फ्यूज कर रही है। मीडिया भी पूरी ताकत से सरकार का समर्थन कर रही है लेकिन सोशलमीडिया ने पूरी ताकत के साथ सीएए के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करने में भरपूर भूमिका निभाई। मीडिया का मुकाबला सोशलमीडिया ने हिम्मत के साथ किया है। दो दिन बाद सुप्रीम कोर्ट में भी सीएए की सुनवाई होनी है। सरकार और आंदोलनकारियों और सरकार दोनों ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है।

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