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मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में हुई बैठक में मुस्लिम संगठनों की मांग, भाजपा शासित राज्यों में प्रदर्शनकारियों पर हमलों पर गहरी चिंता की बात
नई दिल्ली।आज भारतीय मुसलमानों के दीनी व मिल्ली संगठनों की एक महत्वपूर्ण सभा जमीअत उलमा-ए-हिंद के कार्यालय में हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई, जिसमें जमीअत उलमा-ए-हिन्द, दारुल उलूम देवबन्द के वाइस चांसलर, जमाते इस्लामी, मरकज़ी जमीअत अहले हदीस, मिल्ली कौंसिल, मुस्लिम मजलिसे मुशाविरत के ज़िम्मेदारों के अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित हस्तियों ने देश के विभिन्न राज्यों से भाग लिया। इस बैठक में नागरिकता संशोधन कानून 2019, एनआरसी और एनपीआर के विभिन्न पहलुओं और उसके खिलाफ देशव्यापी स्तर पर चलने वाले आंदोलनों की विस्तृत समीक्षा कर निम्नलिखित प्रस्ताव पारित हुएः-
(1) नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर और एनआरसी दीनी व मिल्ली संगठनों की यह सभा नागरिकता संशोधन कानून 2019, एनपीआर और एनआरसी क़ानूनों को चिंता की दृष्टि से देखती है। नागरिकता संशोधन कानून न केवल देश की बहुलवादी स्थिति के ख़िलाफ़ है बल्कि भारतीय संविधान से भी टकराता है। यह कानून धर्म के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव पैदा करता है और संविधान के मूल अधिकारों के प्रावधानों 14, 15 और 21 से सीधे टकराता है तथा संविधान की प्रस्तावना के भी खिलाफ है। इसी प्रकार से मिल्ली संगठनों का एहसास है कि एनआरसी द्वारा असम में अराजकता पैदा हुई है और नागरिकों को केवल इस आधार पर कि इनके दस्तावेज़ों में अक्षरों की ग़लतियां थीं एनआरसी से हटा दिया गया। मिल्ली संगठनों का एहसास है कि अब जो एनपीआर लाया गया है वह वास्तव में एनआरसी का हा प्रारंभिक प्रारूप है, साथ ही इसमें 2010 के एनपीआर से अधिक चीज़ों की मांग की जा रहा है। सभा की मांग है कि सीएए से धार्मिक भेदभाव को समाप्त किया जाए, इसी तरह एनपीआर या तो वापस लिया जाए या अतिरिक्त प्रावधानों को समाप्त किया जाए। मिल्ली संगठनों का यह भी एहसास है कि सीएए का यह क़ानून पड़ोसी देश विशेषकर बांग्लादेश से हमारे मैत्री संबंध को भी प्रभावित करगा।
(2) देश के विश्वविद्यालयों पर हमले यह सभा जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अन्य छात्रों एवं युवाओं द्वारा इन क़ानूनों के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलनों का भरपूर समर्थन और प्रेरित करती है और पुलिस द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय आदि के छात्रों पर हमलों की निंदा करती है। नक़ाब ओढ़े अवांछित तत्वों द्वारा देश के अग्रणी और सर्वमान्य विश्वविद्यालय जेएनयू के छात्रों पर हमला अत्यंत दुखद और निंदनीय है। चिंता की बात यह है कि पुलिस और विश्वविद्यालय का सुरक्षा बल इस हमले के समय न केवल मूकदर्शक बना रहा बल्कि आक्रमणकारियों का समर्थन भी करता दिखाई दिया। यह सभा मांग करती है कि विश्वविद्यालय परिसर में हुए इन हमलों की न्यायिक जांच कराई जाए और जो पुलिस अधिकारी इसमें लिप्त पाए जाएं उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
(3) भाजपा शासित राज्यों में प्रदर्शनकारियों पर हमले मिल्ली संगठनों की यह सभा भाजपा शासित राज्यों में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के हमले की कड़े शब्दों में निंदा करती है, जिसके परिणाम स्वरूप असम और उत्तर प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक 30 से अधिक लोग पुलिस की गोलियों से शहीद और बड़ी संख्या में घायल हुए अथवा सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर उन पर मुक़दमे कर दिए गए। दुखद पहलू यह है कि बिना किसी जांच और अदालती कार्यवाई के मुसलमानों की दुकानों को ज़ब्त कर उनसे सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई की बात की जा रही है, यह सभा इन कार्यवाईयों की कड़े शब्दों में निंदा करती है और मांग करती है कि पुलिस द्वारा हिंसा की इन घटनाओं की न्यायिक जांच कराई जाए और जो अधिकारी इसमें लिप्त पाए जाएं उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए, यह सभा इन राज्य सरकारों से मांग करती है कि मृतकों और घायलों को भरपूर मुआवज़ा दिया जाए।
इस सभा में निम्नलिखित लोगों ने भाग लियाः- मौलाना सैयद अरशद मदनी, मौलाना मुहम्मद वली रहमानी, मौलाना मुफ्ती अबुलक़ासिम नोमानी, मोहतरम जनाब सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी, मौलाना अबदुल्लाह मुगीसी, मौलाना अबदुलख़ालिक मद्रासी, मौलाना असगर अली इमाम मेहदी सलफी, डाक्टर मुहम्मद मंजूर आलम, प्रोफेसर अख़्तरुलवासे, डाक्टर सैयद क़ासिम रसूल इलयास, जनाब नवेद हामिद, मौलाना शब्बीर नदवी, जनाब मलिक मोतसिम ख़ान, मौलाना अब्दुअलीम फ़ारूकी, मौलाना असजद मदनी, मौलाना अशहद रशीदी, मौलाना मुस्लिम क़ासमी, मुफ्ती अशफाक अहमद, मौलाना हलीमुल्लाह क़ासमी, मौलाना क़ारी शम्सुद्दीन, मौलाना मुहम्मद खालिद क़ासमी, मौलाना मुहम्मद हारून, मुफ्ती अब्दुर्रज़्ज़ाक़ और प्रोफेसर एहतिशामुल हक़ आदि शामिल रहे।