दिल्ली

शाहीनबाग आंदोलन के चलते AAP के हलक में अटक गयी हैं मुस्लिम बाहुल सीटें, इन 32 सीटों पर 'आप' बनाम कांग्रेस बनी लड़ाई!

Shiv Kumar Mishra
26 Jan 2020 1:48 PM GMT
शाहीनबाग आंदोलन के चलते AAP के हलक में अटक गयी हैं मुस्लिम बाहुल सीटें, इन 32 सीटों पर आप बनाम कांग्रेस बनी लड़ाई!
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दिल्ली विधानसभा में अब लग रहा है कि चुनाव त्रिकोणीय बनता जा रहा है.


दिल्ली की 2.3 करोड़ आबादी में 13 प्रतिशत मुसलमान हैं। आबादी के लिहाज से ये तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव ऐसे वक्त में हो रहे हैं, जब पूरे देश में केंद्र सरकार द्वारा पास किये गये नागरिकता संशाेधन विधेयक को लेकर विरोध हो रहा है। अगर किसी भी तरीके से इस 13 प्रतिशत आबादी को दिल्ली से हटा दिया जाए तो कल्पना करिये कि दिल्ली की सूरत कैसी होगी? चूंकि यह कल्पना ही कोरी है, लिहाजा भाजपा को छोड़ कर बाकी राजनीतिक दलों की मजबूरी है कि वे मुसलमानों को साथ लेकर चलें। कांग्रेस तो इस मामले में बिलकुल साफ़ है लेकिन आम आदमी पार्टी अपने हिंदू वोटर बेस को बचाने के चक्कर में मुसलमानों के लिए संदिग्ध बनती जा रही है। इस परिदृश्य में अकेले ओखला सीट पर हार या जीत का आकलन ही बेहद दिलचस्प हुआ जाता है, जिसके भीतर वह शाहीन बाग भी आता है जो राष्ट्रीय राजनीति को एजेंडा गढ़ रहा है।

सीएए पर सांप-छछूंदर 'आप'

नागरिकता संशाेधन विधेयक लाने वाली केंद्र की बीजेपी सरकार इस कानून के सहारे दिल्ली की सत्ता हासिल करना चाहती है। वहीं विरोधी दल, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भी सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं, हालांकि आम आदमी पार्टी स्थानीय स्तर पर शिक्षा और सेहत पर किए गए काम के भरोसे है तो कांग्रेस ने पहले ही दिल से सीएए के खिलाफ मोर्चा खाेला हुआ है। सीएए पर आम आदमी पार्टी नामांकन के बाद तक चुप रही है, लेकिन उसके चाहे अनचाहे चुनावी मुद्दा सीएए के इर्द गिर्द सिमट गया है।

इसीलिए इस दौड़ में आम आदमी पार्टी अपने निवर्तमान विधायक के प्रत्याशी होने के बाचजूद सबसे ज्यादा फंसी नज़र आ रही है क्योंकि अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने अब तक शाहीनबाग आंदोलन पर चुप्पी बरती थी, दो दिन पहले बड़ी सतर्कता के साथ मुंह खाेल दिया है। दूसरी ओर उनके सिपहसालार मनीष सिसोदिया ने खुलकर आंदोलन को सपोर्ट तो दे दिया है लेकिन शरजील इमाम की गिरफ्तारी की मांग भी कर डाली है। पहले सीएए निगला नहीं जा रहा था, अब बयान देकर हलक की फांस बन चुका है।

कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में जब मनीष सिसोदिया से पूछा गया था कि वे शाहीनबाग आंदोलन पर कुछ क्यों नहीं कह रहे, तब उन्होंने साफ किया था कि अगर उन्हें आंदोलन के साथ देख लिया गया तो भाजपा को उन्हें बदनाम करने का पूरा मौका मिल जाएगा और वो आम आदमी पाटी को टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ जोड़ देगी। इस इंटरव्यू के दो दिन बाद ही सिसोदिया को आंदोलन को जनदबाव में समर्थन देना पड़ गया। इसके साथ ही उन्होंने एक नया खतरा मोल लिया जिसे भाजपा आइटी सेल के मुखिया अमित मालवीय की इस पोस्ट से बेहतर समझा जा सकता है।

मनीष सिसोदिया और केजरीवाल जिस स्थिति से बचना चाह रहे थे, उसी में जाने अनजाने फंस गए हैं। जाहिर है उन पर ओखला से अपने प्रत्याशी अमानतुल्लाह खान का दबाव भी काम कर रहा था जो खुद शाहीनबाग में काफी सक्रिय रहे हैं और शरजील के साथ स्टेज साझा कर चुके हैं।

शाहीनबाग को लेकर आम आदमी पार्टी की सांप छछूंदर वाली इस गति से अकेले ओखला सीट प्रभावित नहीं होगी, इसका असर दिल्ली की उन आठ से दस सीटों पर पड़ेगा जहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं क्योंकि शाहीनबाग की तर्ज पर अकेले दिल्ली में दर्जन भर मोर्चे सीएए के खिलाफ खुल चुके हैं। इन सीटों में में सीलमपुर, ओखला, बल्लीमारां, तुगलकाबाद, मुस्तफाबाद महत्वपूर्ण हैं। हर पार्टी की कोशिश रहती है कि इन बहुल मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे। इससे राजनीतिक दलों को ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतने में आसानी होती है।

ओखला और सीलमपुर वाया शाहीनबाग

इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण का केन्द्र बन चुका है पूर्वी दिल्ली के ओखला विधानसभा के अंतर्गत आने वाला शाहीनबाग। शाहीनबाग एक तरफ विरोध की बड़ी आवाज के तौर पर सामने आया है, जिसकी देखा-देखी देश भर में कई शाहीनबाग बन गये। दूसरी तरफ ये ऐसे बड़े केन्द्र के तौर पर उभरा है, जिसने मुसलमान विरोध की राजनीति करने वाली भाजपा को ध्रुवीकरण का मौका दे दिया जिसको बीजेपी किसी भी कीमत पर भुनाना चाहती है। ऐसे में माहौल में ओखला विधानसभा ऐसी बड़ी सीट बन गई है जिस पर सबकी नजरें हैं कि और कयास लगाए जा रहे हैं कि यहां से कौन जीतेगा।

मुस्लिम बहुल ओखला सीट के राजनीतिक समीकरणों की बात की जाए तो सभी दलों ने अपने बड़े प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। आप ने जहां अपने वर्तमान विधायक अमानतुल्लाह खान को और कांग्रेस ने पूर्व सांसद परवेज हाशमी पर दांव लगाया है, वहीं बीजेपी ने ब्रह्म सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस से टिकट न मिलने पर नाराज चल रहे आसिफ मोहम्मद खान निर्दलीय मैदान में हैं। आसिफ के मैदान में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है और इसको तीन नेताओं की आपसी लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है।

आसिफ खान और परवेज हाशमी यहां से तीन-तीन बार विधायक रह चुके हैं और इलाके में अच्छी पकड़ रखते हैं। आसिफ मोहम्मद केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के भाई हैं इसलिये उनको शक की निगाहों से देखा जा रहा है और लोग मानकर चल रहे हैं कि आसिफ वोटकटवा के रूप में बीजेपी को फायदा पहुंचाएंगे, हालांकि शाहीनबाग आंदोलन के संदर्भ में आसिफ़ की भूमिका को स्थानीय लोग काफी सराहते हैं1

शाहीनबाग में रहने वाले समाजसेवी सुलतान भारती खुल कर कहते हैं, "आसिफ इकलौता नेता था जो लगातार आंदोलन के साथ दिनरात लगा रहा। पता नहीं क्या सोचकर कांग्रेस ने उसे टिकट नहीं दिया वरना इस बार अमानतुल्लाह का जीतना मुश्किल था। अब अगर वो निर्दलीय लड़ रहा है तो समझो कि बहुत दिक्कत हो जाएगी क्योंकि वोट बंटेंगे।"

क्या इस परिस्थिति में वास्तव में ब्रह्म सिंह को फायदा हो सकता है? सुलतान भारती मानते हैं कि ब्रह्म सिंह के वोट ज्यादा से ज्यादा गढ़ी के इलाके में हैं। अगर उसे वहां के हिंदू वोट मिल जाते हैं और इर मुस्लिम वोट बंट जाते हैं तो खेल हो सकता है, लेकिन सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि चुनाव आते आते आम आदमी पार्टी के अमानतुल्लाह अपनी पार्टी को शाहीनबाग का समर्थन करने के लिए मना पाते हैं या नहीं।

जिस दिन सुलतान भारती ने यह बात कही, उसी के अगले दिन अरविंद केजरीवाल का सतर्कतापूर्ण बयान आया और सिसोदिया ने आंदोलन को समर्थन दे दिया। फिलहाल यह माना जा सकता है कि अमानतुल्लाह खान की स्थिति महफूज़ है लेकिन इस जंग में शरजील इमाम के नए प्रकरण ने फिर से पेंच फंसा दिया है क्योंकि सिसोदिया ने खुलकर गिरफ्तारी की मांग उठा दी है। वैसे भी शरजील पर दो मुकदमे हो चुके हैं।

दूसरी अहम मुस्लिम बहुल सीट है सीलमपुर। सीलमपुर से कांग्रेस ने अब्दुल मतीन को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि आप ने निवर्तमान विधायक हाजी इशराक खान का टिकट काटकर अब्दुल रहमान को टिकट दिया है। वहीं बीजेपी ने कौशल मिश्रा को टिकट दिया है। माना जा रहा है मुकाबला मुख्य रूप से आप और कांग्रेस के बीच है। कांग्रेस उम्मीदवार मतीन अहमद यहां से पांच बार विधायक रह चुके हैं। सीलमपुर मतीन अहमद का गढ़ माना जाता है। इसके बावजूद वे 2015 में केजरीवाल की आंधी में चुनाव हार गये थे। सीएए को लेकर यहां के लोगों में भारी रोष है और वे बीजेपी को सबक सिखाने के मूड में हैं।

मुस्लिम वोटों पर आप और काँग्रेस दोनों ही अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं लेकिन इसका भी ख्याल रख रहे हैं कि मुस्लिम वोटों के चक्कर में आधार वोट हिंदू और सिख वोट न खिसके। आम आदमी पार्टी मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिये कुछ और मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारना चाहती थी, लेकिन आधार वोट छिटक जाने के डर से ऐसा न कर सकी।

दिल्ली के बिजली विभाग में काम करने वाले विकास गर्ग बताते हैं कि पहले राउंड में आम आदमी पार्टी ने 12 मुसलमानों को टिकट दिया था लेकिन बाद में ज्यादातर को छांट दिया। अब इसे हिंदू मतदाताओं को बनाए रखने के रूप में देखा जाए या भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धी राजनीति का दबाव, लेकिन मुसलमान इस तथ्य से गाफिल नहीं हैं। इसीलिए वे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच इस बार उलझे हुए से दिखते हैं।

यह उलझन अब और बढ़ गयी है जब आम आदमी पार्टी ने सीएए पर अपनी चुप्पी तोड़ दी है। सुलतान भारती कहते हैं, "अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में घूम गए और सीएए के खिलाफ चल रहे मोर्चाें में आ गए, तो समझिए आम आदमी का खेल बिगड़ चुका।" इस आशंका के बावजूद वे कांग्रेस में टिकट वितरण पर सवाल उठाते हैं, खासकर संगम विहार से पूनम झा आज़ाद को उतारे जाने और ओखला से आसिफ खान का टिकट काटे जाने पर पार्टी को घेरते हैं।

32 सीटों पर 'आप' बनाम कांग्रेस

कांग्रेस को उम्मीद है कि बीजेपी से नाराज मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को वोट देगा। कांग्रेस प्रवक्ता मुकेश शर्मा ने बात करते हुए कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी बीजेपी सरकार द्वारा लाए गये नागरिकता कानून का देश भर में विरोध कर रही है और आखिरी दम तक विरोध करती रहेगी। वे प्रशांत किशोर के ट्वीट का हवाला देते हुए कहते हैं कि दिल्ली का एक तबका पूरी तरह से कांग्रेस को वोट देगा। शर्मा से पूछा जाता है कि वे किस तबके की बात कर रहे हैं तो वे कहते हैं कि आप लोग जानते हैं कि किस तबके की बात हो रही है।

अशरफ़

ओखला इलाके में बेकरी का कारोबार करने वाले अशरफ कांग्रेस का नाम लिए बगैर बीजेपी से नाराजगी जताते हुए कहते हैं- "बीजेपी मुस्लिम विरोधी है, ये तो हम पहले से जानते हैं। ये इतना गिर जाएंगे, ये नहीं सोचा था। पूरे देश में कई शाहीन बाग बन गये हैं। अब देखना ये है कि या तो ये मुस्लिम विरोधी कानून सीएए रहेगा या फिर मुसलमान रहेगा। अब जब बात आर-पार की आ गई है तो ये भी देख लिया जाएगा।"

जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कर्मचारी रहे शेख मुर्तजा भी इस चुनाव को सीएए के इर्द गिर्द ही मान कर चल रहे हैं। वे कहते हैं कि यह कानून देश भर के दलित, आदिवासी और मुसलमानों के विरोध में है। देश का हर तबका सीएए के विरोध में हमारा साथ दे रहा है। शेख कहते हैं कि सरकार ने ये कानून वापस नहीं लिया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

शेख मुर्तज़ा

वे कहते हैं कि ओखला और सीलमपुर की कनेक्टिविटी दिल्ली की 32 सीटों के साथ है और ये सभी सीटें हम जीत रहे हैं। ये वही सीटें हैं जहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सीधी जंग है। बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं है, जबकि आप ने पांच और कांग्रेस ने छह मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है। बीजेपी द्वारा एक भी मुस्लिम को टिकट न दिये जाने का कारण ये भी है कि जहां मुस्लिम बहुल आबादी है, वहां मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच है। इसी के मद्देनजर मुसलमान वोटों में बिखराव की बात सुनने में आ रही है।

बीजेपी द्वारा एक भी मुसलमान को टिकट न देने के सवाल पर रहमान बताते हैं कि इसकी शुरुआत हुई थी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से, जब बीजेपी ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था और बहुत बड़े अंतर से जीती थी। उसके बाद बीजेपी लगभग हर चुनाव इसी पैटर्न पर लड़ती है। अब अगर दिल्ली में भी यही किया गया है, तो कुछ भी नया नहीं है।

उनके मुताबिक एक प्रकार से यह ठीक भी है। वे पूछते हैं कि आखिर मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम को ही प्रत्याशी क्यों बनाया जाए? एक प्रकार से ये अलगाव है कि मुसलमानों का प्रतिनिधित्व मुसलमान ही करेंगे। लेकिन इसके साथ दूसरी दिक्कत ये है कि अगर मुसलमानों को मुस्लिम बहुल क्षेत्र से टिकट न दिया जाए तो फिर ऐसी कम जगह हैं, जहां से मुसलमान सामान्य प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ सकें। इसके लिये जितनी भाजपा जिम्मेदार है, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस सहित और दूसरी पार्टियां भी जिम्मेदार हैं।

40 सीटों पर भाजपा?

भारतीय जनता पार्टी ने 20 जनवरी तक बने माहौल के आधार पर कुल 70 सीटों पर एक आंतरिक सर्वे करवाया। पार्टी का आकलन है कि कम से कम 40 सीटों पर उसे जीत हासिल होने जा रही है। इस जीत के पीछे सीधा सा कारण पार्टी सीएए विरोधी आदोलन को मान रही है जिसका फायदा हिंदू बहुल सीटों पर भाजपा को मिल रहा है।

जिन मुस्लिम बहुल 32 सीटों पर आम आदमी पार्टी और कांगेस की सीधी टक्कर है, जाहिर है वहां भाजपा की दिलचस्पी नहीं होगी। इस स्थिति में भाजपा बची 38 सीटों पर ही दांव खेलना चाहेगी। यही वह गणित है जिसे ध्रुवीकरण की राजनीति में माहिर भाजपा अच्छे से समझ रही है और बड़बोलेपन में पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी बहुमत के दावे भी कर रहे हैं।

गौरतलब है कि शनिवार को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में गृहमंत्री अमित शाह ने "जीत की गूंज" के नाम से आयोजित जनसभा में कहा था कि कमल का बटन इतना दबाना कि उसका असर शाहीनबाग तक हो। गणतंत्र दिवस के बाद बीटिंग रिट्रीट जब समाप्त होगी और देश से विदेशी मेहमान रवाना होंगे, तब चढ़ते बसंत में चुनाव की हवा तेज होगी। शाहीनबाग दिल्ली के चुनाव पर असर डालेगा या दिल्ली का चुनाव शाहीनबाग पर, इसका अंदाजा फरवरी के पहले हफ्ते में लगना शुरू हो जाएगा।

फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि अकेले शिक्षा और स्वास्थ्य के बल पर आम आदमी पार्टी की वापसी कठिन दिखती है। इसमें उसे हवा को शामिल करना होगा और फिलहाल शाहीनबाग से जो हवा आ रही है वह आने वाले दिनों में और ध्रुवीकरण पैदा करेगी।

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