दिल्ली

लड़खड़ाती कांग्रेस दिल्ली विधानसभा में नहीं दिखा पाई अपना जोश

Sujeet Kumar Gupta
6 Feb 2020 10:18 AM GMT
लड़खड़ाती कांग्रेस दिल्ली विधानसभा में नहीं दिखा पाई अपना जोश
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दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार अब कुछ ही क्षणों में थम जायेगा लेकिन हर पार्टी अपना पूरा दम खम दिखाकर प्रचार की है। वही कांग्रेस इस बार कोई रुची ना दिखाते हुए भी अंतिम क्षणों में मतदाताओं को रिझाने में लगी कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व प्रचार के अंतिम दौर में दिल्ली के लोगों के बीच पहुंचा. इसके अलावा दिल्ली के नेता भी चुनाव प्रचार से दूर नजर आए. दिल्ली चुनाव की घोषणा के समय से लेकर प्रचार तक में कांग्रेस की स्थिति एक सी रही. चुनाव प्रचार में भी कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी ही दिख रही है।

विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों के चयन में भी कांग्रेस ने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई थी. आप और बीजेपी के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद नॉमिनेशन के आखिरी दिन तक कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे. वहीं अगर प्रचार की बात करे तो कांग्रेस के नेता प्रचार करते तो दिखे लेकिन इसे खानापूर्ति ही माना जाता रहा। कहने के लिए 40 से ज्यादा संख्या में स्टार प्रचारक कांग्रेस के पास थे. लेकिन प्रचार में कुछ ही नेता विधानसभा क्षेत्रों में दिखे।

दिल्ली में दुर्भाग्यवश कांग्रेस ने 20 जुलाई को अपनी बेहद साफ-स्वच्छ छवि की नेता शीला दीक्षित को खो दिया। उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में शानदार वापसी की थी। उनके देहावसान के बाद चुनाव के लिहाज से बेहद अहम समय में पार्टी ने तीन महीने तक दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष ही नियुक्त नहीं किया।

लंबे इंतजार के बाद 23 अक्तूबर को सुभाष चोपड़ा को पार्टी की कमान सौंपी गई। जबकि इन्हीं तीन महीनों में के दौरान आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनावों के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी थी। वह और भाजपा लगातार चुनावी कार्यक्रम कर जनता को अपने पक्ष में मोड़ने में लगे थे। हो सकता है कि जब 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आएं तब इस अहम समय को गंवाने का कांग्रेस पार्टी को अफसोस हो।

कांग्रेस की गलतियों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता जब सड़कों पर अपनी पार्टियों के लिए आक्रामक चुनाव प्रचार कर रहे थे, अरविंद केजरीवाल और अमित शाह गलियों की खाक छान रहे थे, कांग्रेस नेतृत्व शिथिल दिखाई पड़ा।

दिल्ली में चुनाव प्रचार के लिए कुल मिलाकर 15 दिनों का समय था, जिसमें आखिरी के हफ्ते में गांधी परिवार चुनाव प्रचार में उतरी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की एक रैली तय की गई. लेकिन उनकी तबीयत खराब रहने के कारण वो भी रद्द करना पड़ा इस चुनाव में राहुल और प्रियंका गांधी ने 4 रैलियां की. जिसमें प्रियंका गांधी ने 2 रैली राहुल गांधी के साथ की औऱ राहुल गांधी ने 70 विधानसभा वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में मात्र 4 रैली को संबोधित किया।

दिल्ली चुनाव में स्टार प्रचारक में होने के बावजूद भी कांग्रेस के सभी CM चुनावी सभा में नहीं दिखे. राजस्थान सीएम अशोक गहलोत, छतीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल ने 2-4 जनसभाओं को संबोधित किया, लेकिन इसके अलावा प्रोग्राम तय होने के बाद भी पंजाब सीएम कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने अस्वस्थ होने की बात कह कर रैलियों को रद्द कर दिया. वहीं मध्यप्रदेश सीएम कमलनाथ ने एक भी दिन प्रचार नही किया।

दिल्ली का चुनाव होने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस के कई बड़े नेता टिकट वितरण से नाराज़ होकर चुनाव प्रचार से दूर रहे. एक ओर जहां दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जेपी अग्रवाल बेटे को टिकट नही मिलने की वजह से पार्टी के लिए प्रचार करने से मना कर दिया. वहीं पूर्व सांसद और पूर्वांचल के चेहरे महाबल मिश्रा के बेटे चुनाव से ठीक पहले आप मे शामिल हो गए. पार्टी ने महाबल मिश्रा को पार्टी विरोधी गतिविधि के चलते कांग्रेस से निलंबित कर दिया।

पूर्व CM शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी दिल्ली चुनाव में प्रचार करते नहीं दिख रहे हैं. पार्टी के एक और पूर्व अध्यक्ष अजय माकन चुनाव से ठीक पहले निजी कारणों का हवाला देकर विदेश चले गए थे. हालांकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि बीजेपी-आप ने इस चुनाव को साम्प्रदयिक बना दिया है. जबकि कांग्रेस शीला दीक्षित के 15 साल के काम के नाम पर वोट मांग रही है बहरहाल कांग्रेस के खराब चुनाव प्रचार पर जानकारों का अपना आकलन है. कांग्रेस को ये पता है की मुकाबला आप-बीजेपी के बीच मे है इसलिए कांग्रेस वोट कटवा बनकर बीजेपी को फायदा नही पहुचाना चाह रही है।

राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस की इस सुस्त चाल को एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। चर्चा है कि कुछ मजबूत कांग्रेस प्रत्याशियों की सीटों को छोड़कर भाजपा को रोकने के लिए उसने आम आदमी पार्टी के लिए रास्ता खुला छोड़ दिया है।


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