संपादकीय

...तुम तो जीत गये तेजबहादुर, लेकिन दाल तुम्हारी वाराणसी में भी नहीं गली!

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1 May 2019 1:17 PM GMT
...तुम तो जीत गये तेजबहादुर, लेकिन दाल तुम्हारी वाराणसी में भी नहीं गली!
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तेज़ बहादुर ने दोनों मोर्चो पर अपनी बहादुरी दिखाई लेकिन दोनों जगह उसे बहादुरी की कीमत चुकानी पड़ी। फौज के घटिया खाने की बात उठाकर भले ही उसने अनुशासनहीनता की हो, लेकिन देश की गूंगी बहरी सरकार को हकीकत का आईना दिखाने के लिए उसने जो कार्य किया उसमें उसकी बहादुरी साफ झलकती है। भगत सिंह ने भी नेशनल असेंबली में सरकार तक अपनी बात पहुचने के लिए बम फोड़ा था और स्वयं गिरफ्तार हुए थे, उंन्होने जेल के घटिया खाने की शिकायत की और भूख हड़ताल पर भी बैठे थे, उनका यही कहना था कि हर इंसान को बराबर समझा जाये।यदि हम उनकी बात को सही ठहरा सकते हैं तो तेजबहादुर की बात गलत कैसे है...! तेज बहादुर ने नौकरी गंवाकर अपनी बात देश की जनता तक पहुचा दी उसके बस में सिर्फ यही था। एक अदना सा सिपाही ही तो था, इतना ही कर सकता था वह।

बगावत करना इतना आसान भी नही होता, किसी बुजदिल के बस की यह बात नही। तेज बहादुर बनारस में भी जीत गया मित्रो। वह सियासी नही था, वह सियासतगीरों की मक्कारी नही जानता था। वह सैनिक था जो सिर्फ लड़ना जनता था, उसके साथ जो भी थे सभी सैनिक थे और बनारस की जनता धीरे धीरे फर्जी राष्ट्रप्रेम और असली राष्ट्रभक्ति में फर्क समझने लग गयी थी। बनारस तेजबहादुर को गले लगा रहा था।

अखिलेश यादव ने जिस तेजबहादुर के प्रस्ताव को पहले ठुकरा दिया था, उसी तेजबहादुर की मेहनत और लोकप्रियता देख कर उन्हें अपना प्रत्यासी घोसित करना पड़ा, यह तेजबहादुर की बहादुरी का पहला इनाम था। देश भर से जिस तरह सामाजिक संगठनों और सैनिकों ने तेजबहादुर के समर्थन में उतरना सुरु किया था वह पीएम मोदी के लिए खतरे का अलार्म माना जा रहा था। मैं यह नही कह रहा कि वह प्रधानमंत्री को हरा देता, पर इसका मैसेज बहुत दूर तक जाता।

सियासत में साजिशों का धुआं उड़ता ही रहता है। बनारस में भी एक साजिश हुई और उस वीर सिपाही को चुनाव के मैदान से बाहर खदेड़ दिया गया, उसका पर्चा खारिज हो गया।

सियासत को असली राष्ट्रभक्त पसंद नही आता। पहले शहीद हेमन्त करकरे का जगह जगह अपमान किया गया। अब कथित राष्ट्रवादी तेजबहादुर को फौज का गद्दार साबित करने में जुट गये हैं। लेकिन मेरी नजर में तुम कल भी जीते थे तेजबहादुर और मेरी नजर में तुम आज भी जीते थे। तुमने अपने साथी जवानों के हक के लिए अपनी नौकरी गवाई, और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना कमाया हुआ धन चुनाव में झोंक दिया, पर यह बेकार नही जायेगा।

यहां सबकुछ काउंट होता है अच्छाई भी और बुराई भी। जनता वक्त आने पर सटीक जवाब जरूर देती है। कल तक जो ताकत के नशे में गर्दने अकड़ कर चलते थे आज उनकी गर्दने इतनी अकड़ गयीं हैं कि इधर उधर तक नही घुमा पा रहे हैं। वे भी नही रहे तो ये भी नही रहेंगे।

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