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- इंसान को खुद उस के...
इंसान को खुद उस के आमाल डुबोते हैं, उस को है गलतफहमी तकदीर ने मारा है
देखीं हैं वफाएं भी कमज़रफ जमाने की, जिसको भी यहां चाहा उस ने ही दगा दी है.
मजदूर की जो बेटी जर साथ नही लाई, ससुराल मे हर लम्हा रो रो के गुजारा हैं.
जो पूछा मुझ से किसी ने के आदमी क्या है, तो खाक ले के हवा मे उछाल दी मै ने ।
यह वह शेर हैं , यह वह पंक्तिया है जो जिंदगी की हकीकत को उसकी सच्चाई को गहनता के साथ दुनिया के सामने पेश करते हैं, यह उस हकीकत को उजागर करते है जिसे हम सब महसूस तो करते है पर स्वीकार करना नही चाहते। परंतु जिस हकीकत से समाज नजरे चुरा लेता है, कवि या शायर बड़ी शालीनता के साथ उसे लोगो के ज़हन मे उतार देता है ,सुरक्षित कर देता है और विचार करने पर मजबूर कर देता है। उपरोक्त पंक्तियो की रचनाकर् उत्तर प्रदेश के कैराना से ताल्लुक रखने वाली शायरा महक कैरानवी शायरी की दुनिया मे उभरती हुई एक ऐसी ही कवयित्री है जो जिंदगी की हकीकतो को बड़ी आसानी से शब्दों के मोती पिरो कर श्रोता के दिलो मे उतार देती हैं । यही वजह है के वह गुजरते समय के साथ शोहरतो को अपने दामन मे समेटते जा रही हैं। परवीन शाकिर पुरस्कार प्राप्त कर चुकी शायरा महक केरानवी आजकल हैदराबाद मे रहती हैं । पिछले दिनों बुशरा इरम ने उनसे शायरी और समाज को लेकर तफ्सीली बातचीत की. पेश है बातचीत के कुछ मुख्य अंश।
शायरी का शौक कैसे पैदा हुआ? इस की शुरुआत कैसे हुई?
एक बार टीवी पर परवीन शाकिर को सुना था जो कि पाकिस्तान की बहुत मशहूर शायरा रही हैं जिससे थोड़ी बहुत दिलचस्पी पैदा हुई. उस के बाद टीवी पर मुशायरे सुनने का सिलसिला शुरू हो गया । जिस की वजह से मेरे दिल मे भी शेर कहने की इच्छा हुई । 14 -15 वर्ष की उम्र मे मुझे इस बात का एहसास हो गया के अल्लाह ने मुझे भी शेर कहने की दौलत से नवाजा है. और फिर शेर लिखने और पढने की शुरुआत हो गई । मैं लगातार 5 वर्षो से शायरी कर रही हूं।
प्रारंभ मे आप ने किस से शिक्षा ली शेर कहने की? और आप किस की रचनाओ से प्रभावित रही है?
प्रारंभ से अबतक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर जनाब आरिफ सैफी ने रहनुमाई की है, इनका संबंध हरियाणा के फरीदाबाद से है । और ये खुद भी 11 वर्ष से हैदराबाद मे रह रहे हैं। जहां तक प्रभावित होने की बात है तो मुझे इकबाल अशहर और परवीन शाकिर के कलाम ने बहुत प्रभावित किया है ।
निसंदेह आप का नाम उन कवयित्रयो मे सम्मिलित है जो उम्दा शायरी के लिए जानी जाती है , और देश के मुशायरो मे आप की मौजूदगी देखी जा सकती है, क्या आप देश के बाहर होने वाले मुशायरे या कवि सम्मेलन का भी हिस्सा रही हैं?
मुशायरो के लिए पूरे भारत का सफर तय कर चुकी हूं । देश के बाहर से निमंत्रण तो बहूत आए मगर कुछ घरेलू कारणो से मै देश के बाहर के मुशायरो का हिस्सा नही बन पाई ।
आप की एक पंक्ति " जो पूछा मुझ से किसी ने के आदमी क्या है, तो खाक ले के हवा मे उछाल दी मै ने " हकीकत पर आधारित एक कीमती शेर है, जिस से आप के तजुर्बात झलकते है, किस प्रकार का तजुर्बा रहा है अब तक जीवन मे?
उर्दू का एक शब्द है "सेहरा" जिस का अर्थ रेगिस्तान है । मेरे लिए जिंदगी इसी सेहरा की तरह है जहां कदम कदम पर सेराब(पानी ) तो है मगर कोई मीठी झील नही, जहां हाल पूछने वाले तो बहुत है पर हाल समझने वाला कोई नही ।
शायरी के अलावा और क्या करती है?
शायरी के बाद मेरा अधिक समय अध्ययन मे गुजरता है , क्योंकि मैं एक विवाहित भारतीय महिला हूं इसलिए घरेलू जिम्मेदारियां भी होती है जिन्हे पूरा करना होता है।
उर्दू के लिए अक्सर यह बात कही जाती है कि उर्दू को उर्दू वालो ने ही पराया कर रखा है? आप इस बात से कितनी सहमत हैं?
मै इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूं, क्योंकि जो उर्दू वाले हैं वह उर्दू को पराया कर ही नही सकते , और जो उर्दू को पराया कर दें वह उर्दू वाले ही नही ।
कुछ वर्षो से मुशायरे और कवि सम्मेलनो की गुणवत्ता मे काफी परिवर्तन आया है। आप इस परिवर्तन को किस नजरिए से देखती हैं?
परिवर्तन तो कुदरत का कानून है , और यह देखने वाले पर निर्भर करता है कि वह किस तब्दीली को कैसे आंकता है, जहां तक मुशायरे या कवि सम्मेलन की बात है तो श्रोता जिस रूप मे ढल रहे है , मुशायरे और कवि सम्मेलन भी उसी रूप मे परिवर्तित हो रहे हैं।
नफरतों की इस आंधी मे मुशायरे समाज को जोड़ने मे कितनी भूमिका निभाते हैं?
मुशायरे या कवि सम्मेलन धर्म, जाति , मजहब की बंदिशों मे कैद नही होते ये आजाद होते है, यहा सिर्फ मोहब्बत और जीवन की अहमियत का पैगाम होता है, एकजुटता की बात होती है, तो जहां मोहब्बत हो उस की भूमिका को आंका नही जा सकता ।
आने वाले समय मे शायरी की दुनिया मे खुद को कहां देखती हैं ?
मेरा अब तक का सफर काफी खुशगवार और खूबसूरत रहा है , इसलिए उम्मीद करती हूं के आगे भी सफर इसी खूबसूरती के साथ जारी रहेगा।