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दूरदर्शन के 60 वीं एनिवर्सरी, कुछ ऐसे शो हुआ करते थे जो घर-घर में हुए हिट रामायण, शक्तिमान के लिए आज भी देखने को बेताब रहते हैं लोग
आज दूरदर्शन का स्थापना दिवस है. साल 1959 में आज ही के दिन सरकारी प्रसारक के तौर पर दूरदर्शन की स्थापना हुई थी अपने 60 साल के स्वर्णिम सफर में लोक प्रसारक होने के नाते दूरदर्शन ने सूचना, संदेश व मनोरंजन के साथ साथ राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ने का काम भी किया है दूरदर्शन का पहला प्रसारण प्रयोगात्मक आधार पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया था।
हालांकि किसी भी मीडिया के लिए पचास साल से ज्यादा का सफर बहुत मायने रखता है. अब तक की दूरदर्शन की विकास यात्रा काफी प्रेरणादायक है. सही मायने में अर्थपूर्ण कार्यक्रमों और भारतीय संस्कृति को बचाए रखते हुए देश की भावनाओं को स्वर देने का काम दूरदर्शन ने ही किया है. आज के इस दौर में तमाम चैनलों की भीड़ के बीच भी दूरदर्शन की पहचान और कार्यशैली विशिष्ट है।
प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शशि शेखर वेम्पटि ने ट्वीट कर कहा, 'दूरदर्शन की स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने पर पूरे प्रसार भारती परिवार को बधाई.'
दूरदर्शन की महानिदेशक सुप्रिया साहू ने भी ट्वीट कर बधाई दी है. अपने संदेश में उन्होंने कहा, 'दूरदर्शन भारत के डीएनए में है. हैप्पी बर्थडे दूरदर्शन. आप भारतीयों की अगली पीढ़ियों को लुभाते रहें.'
'दूरदर्शन' को आज पूरे 60 साल हो गए हैं। जो कि आधुनिक भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। अगर दूरदर्शन के लोगो को देखें तो यह एक आंख की तरह लगता है। जिससे हम दुनिया जहान के सारे दृश्य देख पाएं। चलिए आज हम आपको बताते हैं दूरदर्शन के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में जिसे सुनकर आप फिर से उस दौर में आना चाहेगे जिस दौर में टीवी पर कुछ भी गडबड़ आये तो तुरंत छत पर जाकर एनटीनी हिलाना शुरु हो जाता था।
70, 80 और 90 के दशक में पले बढ़े लोगों के लिए टीवी सेट आने की खुशी का अंदाजा आज के जमाने के बच्चे नहीं लगा सकते। घर में पहले टीवी सेट आना और बाद में केबल का भी आ जाना किसी सपने से कम नहीं था। रविवार को धार्मिक कार्यक्रम देखने के लिए घर के सभी लोगों का टीवी सेट के आगे बैठ जाना, उस दशक को जीने वाले सभी लोग याद करते होंगे। फिल्मी गानों से तो मानो पूरा दिन ही महक उठता था। आज की तरह नहीं कि हर चीज फोन पर हाजिर हो। परिवार के लोगों को भी अब साथ बैठने का वक्त कहां मिल पाता है। उस दौरान सबसे ज्यादा खुशी होती थी उस दोस्त के घर जाने की जिसके घर पर टीवी सेट होता था। भारत पाकिस्तान के मैच के बीच जब केबल चला जाए तो रोमांच कई गुना तक बढ़ जाता था।
दूरदर्शन के ये सीरियल याद हैं आपको… दूरदर्शन के सीरियल्स जंगल, जंगल बात चली है पता चला है… चड्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है, चंद्रकांता की कहानी ये माना है पुरानी… ये पुरानी होकर भी है लगती बड़ी है सुहानी, अद्भुत, अदम्य साहस की परिभाषा है… ये मिटती मानवता की एक आशा है। कुछ याद आया आपको… ये उन सीरियल्स के गाने हैं जिनका 80 – 90 के दशक में बच्चों से लेकर बड़ों तक को बेसब्री से इंतज़ार रहता था। दूरदर्शन के शुरुआती दौर में ऐसे कई कार्यक्रम थे जिनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं। जब भी बचपन और टीवी की बात होती है इन कार्यक्रमों से जुड़ी यादें हमारी आंखों के सामने आ जाती हैं। चलिए आज फिर इन सीरियल्स की यादें ताज़ा करते हैं…
हम लोग 'हम लोग' भारतीय टेलिविजन इतिहास का पहला धारावाहिक था जो 7 जुलाई 1984 को दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। भारतीय दर्शकों को यह धारावाहिक अत्यन्त पसन्द आया कि इसके चरित्र विख्यात हो गए व लोगों कि रोज़-मर्रा कि बातचीत का मुद्दा बन गए। इस सीरियल में भारत के मिडिल क्लास परिवार की ज़िंदगी के बारे में दिखाया गया था।
बुनियाद दूरदर्शन के अपने हर सीरियल का एक फ्लेवर था और हर कोई अपने पसंदीदा सीरियल का इंतजार करता था।भारत में टेलीविजन आने के शुरुआती दौर में बुनियाद सीरियल ने भी अपने दर्शकों के बीच खासी जगह बनाई।इसे रमेश सिप्पी और ज्योति ने निर्देशित किया। इस नाटक की लोकप्रियता इतनी थी कि इसे सालों बाद कई निजी चैनलों ने भी ऑन एयर किया था।
हम लोग मनोहर श्याम जोशी का शो 'हम लोग' उस दौर का सबसे बेहतरीन शो था। 154 एपिसोड वाला यह धारावाहिक 7 जुलाई, 1984 को शुरू हुआ और 17 दिसंबर, 1985 तक दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। इसके निम्न मध्यवर्गीय पात्र न सिर्फ दर्शकों से कनेक्ट करने में कामयाब रहे, बल्कि वे आम लोगों की बात उन्हीं की जुबान में करते दिखे। पारिवारिक घटनाक्रमों पर आधारित इस कार्यक्रम ने अपनी अलग ही पहचान बनाई।
मालगुड़ी डेज़ इस सीरियल की शुरुआत 1987 में हुई थी। आर के नारायण की कृति पर आधारित मालगुडी डेज़ को लोगों ने काफी पसंद किया। सीरियल में स्वामी एंड फ्रेंड्स तथा वेंडर ऑफ स्वीट्स जैसी लघु कथाएं व उपन्यास शामिल थे। इस धारावाहिक को हिन्दी व अंग्रेज़ी में बनाया गया था। दूरदर्शन पर मालगुडी डेज़ के कुल 39 एपिसोड प्रसारित हुये। यह धारावाहिक मालगुडी डेज़ रिटर्न नाम से पुनर्प्रसारित भी हुआ।
रामायण 25 जनवरी 1987 को रामानंद सागर के लिखे धारावाहिक 'रामायण' दूरदर्शन पर पहली बार प्रसारित किया गया था। कहते हैं कि जब ये टीवी पर आता था तो गाँव व शहरों में कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता था। उस वक्त हर घर में टीवी नहीं होती थी तो लोग दूसरों के घर जाकर पहले से ही रामायण शुरू होने का इंतज़ार करने लगते थे। रामायण में अरुण गोविल (राम), दीपिका (सीता), दारासिंह (हनुमान), सुनील लाहिरी (लक्ष्मण), ललिता पवार (मंथरा), अरविंद त्रिवेदी (रावण) आदि कलाकारों ने अभिनय किया था।
महाभारत सीरियल ने भी जमकर धूम मचाई। ये सीरियल 2 अक्टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुआ था। इस सीरियल का सबसे खास हिस्सा 'मैं समय हूं' था। ब्रिटेन में इस धारावाहिक का प्रसारण बीबीसी द्वारा किया गया था जहां इसकी दर्शक संख्या 50 लाख के आंकड़े को भी पार कर गई, जो दोपहर के समय प्रसारित किए जाने वाले किसी भी धारावाहिक के लिए एक बहुत बड़ी बात थी।
अलिफ़ लैला दूरदर्शन पर 1994 में प्रसारित होने वाले इस धारावाहिक के 2 सीज़न और कुल 260 एपिसोड प्रसारित हुए थे। जादू, जिन्न, बोलते हुए पत्थर, एक मिनट में गायब हो जाना, राजा व राजकुमारी की कहानी को मिलाकर बने इस सीरियल को लोग आज भी याद करते हैं। '1001 नाइट्स' पर आधारित इस धारावाहिक में मिस्र, यूनान, फ़ारस, ईरान और अरब देशों की बहुत सी रोमांचक कहानियां थीं जिनके हीरो 'सिन्दबाद', 'अलीबाबा और चालीस चोर', 'अलादीन' हुआ करते थे।
विक्रम बेताल यह सीरियल 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। ये सीरियल महाकवि सोमदेव की लिखी 'बेताल पच्चीसी' पर आधारित था। राजा विक्रम के किरदार अरुण गोविल ने निभाया था, उनके कंधे पर बेताल टंगा रहता था जो कहानी सुनाता और कहता था कि मुझसे सवाल मत करना वरना मैं भाग जाऊंगा। इस धारावाहिक के सिर्फ 26 एपिसोड ही प्रसारित हुए थे।
फौजी फौजी 1989 दूरदर्शन का वह सीरियल था, जिसने बॉलीवुड का अपना सबसे चहेता सितारा दिया और वह है शाहरुख खान। शाहरुख इस शो में एक सैनिक बने नजर आए थे। कभी इस कार्यक्रम को देखने के लिए लोगों का जमावड़ा लगता था।
जंगल बुक 'जंगल जंगल पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है' गुलज़ार लिखी ये लाइन्स शायद हर किसी को याद होंगी, इस गाने में संगीत दिया था विशाल भारद्वाज ने। मोगली तो हर घर में फेमस था। रात में 9 बजे दूरदर्शन पर ये एनिमेटेड सीरीज़ आती थी। गाँवों में तब लाइट नहीं आती थी तो लोग बैटरी लगाकर ये सीरीज़ देखते थे। 52 एपिसोड का ये शो दरअसल एक जापानी शो था जिसे हिंदी में डब किया गया था और जापान में 1989 में दिखाए गए इस शो को भारत में 1993 में प्रसारित किया गया था। इसकी कहानी को रुडयार्ड किप्लिंग ने लिखा था जिस पर साल 2016 में एक फिल्म भी बनी।
चंद्रकांता 4 मार्च 1994 को ये धारावाहिक दूरदर्शन पर शुरू हुआ था। देवकी नंदन खत्री के उपन्यास पर बने इस सीरियल को लोगों ने खूब पसंद किया। इस सीरियल के किरदार क्रूर सिंह को लोगों ने काफी सराहा। क्रूर सिंह के अलावा जादुई अय्यार, पंडित जगन्नाथ, ऐसे चरित्र थे जो आज भी लोगों को याद हैं। सीरियल देखने के लिए बड़ी बेसब्री से रविवार की सुबह का इंतज़ार किया जाता था।
शक्तिमान 27 सितम्बर 1997 को भारत में रहने वाले बच्चों को अपना पहला सुपरहीरो मिला था। इससे पहले के सारे सुपर हीरो सिर्फ कॉमिक्स बुक्स तक ही सीमित थे लेकिन शक्तिमान एक क्रेज़ था। 400 एपिसोड वाला यह शो दूरदर्शन पर करीब 10 साल चला इस शो से शुरू हुए दो जुमले 'सॉरी शक्तिमान' और 'गंगाधर ही शक्तिमान' है आज भी प्रचलित हैं।