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मुग़लों से नफ़रत है तो छोड़ दें तुरंत खाना ये चीज़ें!

मुग़लों से नफ़रत है तो छोड़ दें तुरंत खाना ये चीज़ें!
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आज वर्ल्ड फूड डे है. भारत जैसे विविधता वाले देश में खाने को लेकर लोगों की अलग-अलग आदतें हैं. यहां खाना सिर्फ पेट भरने का जरिया नहीं है. भगवान को सात दिन और आठ पहर के हिसाब से लगने वाला 56 भोग हो या बिना रोजा रखे दी जाने वाली इफ्तार की दावतें, भोजन यहां राजनीति, आस्था और क्रांति सबमें शामिल रहा है. विश्व खाद्य दिवस पर चलिए जानते हैं भारत और उसके खाने से जुड़े कुछ मिथकः
हम कुपोषित भी हैं और मोटे भी
पिछले कुछ दिनों से ग्लोबल फूड इंडेक्स में भारत की स्थिति को लेकर विवाद चल रहा है. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट काफी पेचीदा है और इससे ये नतीजे निकालना कि भारत में कुपोषण पिछले तीन साल में बढ़ा है या नहीं बढ़ा है, दोनों ही गलत हैं. मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि हम दुनिया के कुपोषित देशों में से हैं. इसके साथ ही हमारे यहां जरूरत से ज्यादा वजन वाले लोगों की गिनती भी खूब है.
दरअसल इतिहास के कई सौ सालों में देश में पड़ने वाले अकाल आदि के कारण भारतीयों का शरीर जेनेटिक रूप से ज्यादा फैट जमा करने के लिए प्रोग्राम्ड है. बीयर बेली यानी पेट के पास चर्बी जमा होना देश के लोगों की बड़ी समस्या है. इसके साथ ही भारतीय खाने में प्रोटीन नहीं कार्बोहाइड्रेट (आलू, गेहूं और चावल) सबसे ज्यादा होता है. जिसके चलते हम में से ज्यादातर लोग शारीरिक रूप से संतुलित नहीं होते हैं. भारत में 10 करोड़ के करीब पुरुष और 20 करोड़ महिलाएं मोटापे से परेशान है. इसके साथ ही देश के 44% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

भारतीय खाना असल में भारतीय नहीं है
हाल फिलहाल में ताजमहल को भारतीय संस्कृति से अलग करने की तमाम बातें हुई हैं. लेकिन यदि हम विदेशियों के साथ आए भोजन को अपनी थाली से निकाल दें तो भारतीय भोजन पर गर्व करने वाली कई चीजें खत्म हो जाएंगी. आप जिस दाल चावल को भारतीय भोजन मान कर तृप्त होते हैं उसमें चावल के साथ दाल या कुछ भी रसे वाला मिलाकर खाने का मूल कॉन्सेप्ट भारत में बाहर से आया है.
हमारा प्यारा आलू पुर्तगाली लाए और आलू से बना समोसा मध्य एशिया से आया. गुलाब जामुन और जलेबी ईरानी व्यापारियों के साथ भारत आया. सुबह की चाय अंग्रेजों की देन है और बंगाल का प्रसिद्ध को सूक्तो पुर्तगाली लेकर आए. और तो और लाल मिर्च, टमाटर भी विदेशी हैं, यहां तक कि रोटी भी फ्रेंच शब्द है.
हम एक मांसाहारी देश हैं
सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की 2014 की रिपोर्ट के हिसाब से 15 साल की उम्र से ज्यादा के 71 फीसदी भारतीय मांसाहारी हैं. ऐसा भी नहीं है कि ये चलन हाल के सालों में बढ़ा हो. 2004 में ये आंकड़ा 75 प्रतिशत के करीब था. वैसे खास बात ये है कि भारत में नॉन-वेज खाने वाले ज्यादातर लोग रोज मांसाहार नहीं करते हैं. दक्षिण के राज्य 98 प्रतिशत तक मांसाहारी हैं जबकि राजस्थान 23 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा शाकाहारियों वाले राज्यों में हैं.

मुग़ल खाने में मुग़ल कुछ भी नहीं है
भारत हर चीज का भारतीयकरण कर देता है. ठेले पर बिकती चाउमीन को देख कर चीन वालों को शायद अहसास ही न हो कि हिंदुस्तानियों ने उनकी चाउमीन के साथ क्या कर दिया है. इसी तरह से मुग़लई खाने के नाम पर बिक रहे खाने में ज्यादातर मुग़लों की विरासत नहीं है. बिरयानी को ही ले लीजिए ईरान की जिस बिरयान डिश से हिंदुस्तान की ये प्रिय रेसिपी आई है, उसमें चावल होता ही नहीं है. असल डिश में रोटी के अंदर मीट रखा होता है.
भारत में जो बिरयानी पॉपुलर है उसको मुग़लों ने नहीं स्थानीय नवाबों और राजाओं ने बनाया. इसीलिए आपको आगरा की बिरयानी नहीं लखनऊ और हैदराबाद की बिरयानी सुनने को मिलेगी. चिकन और कबाब की ज्यादातर किस्में भी पंजाब, दिल्ली और लखनऊ से ही निकल कर आई हैं. मगर इनको भारत ने ऐसे अपनाया है कि हम इनके विदेशी होने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.
अगर बनारस के अस्सी घाट पर कोई सुबह चाय के साथ समोसा, जलेबी खा रहा हो तो उससे क्या कहा जाएगा, विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है?
(फर्स्टपोस्ट के लिए अनिमेष मुखर्जी)
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