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रोहिंग्या मसले पर दुनिया भर से आलोचना झेल रहीं म्यांमार की नेता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची ने पूरे देश को संबोधित करते हुए इस मसले पर अपना पक्ष रखा है. रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर लंबे समय से चुप्पी साधे म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने टेलीविजन पर अपने संबोधन में कहा, "हम मानवाधिकारों के उल्लंघन और अवैध हिंसा की निंदा करते हैं. हम शांति, स्थिरता और कानून व्यवस्था को पूरे राज्य में बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
उन्होंने कहा "रखाइन प्रांत में फैले संघर्ष में जिन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, उनके लिए मैं दिल से दुख महसूस कर रही हूं और हम लोगों की दुख-तकलीफ को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहते हैं." उन्होंने कहा, ''हम यह सुनकर चिंतित हैं कि अनेक मुसलमानों ने पलायन कर बांग्लादेश में शरण ली है.'' उन्होंने वादा किया कि मानवाधिकारों और कानून के खिलाफ जाने वाले लोगों पर निश्चित ही कार्रवाई होगी. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकतर गांव हिंसाग्रस्त नहीं है और कोई भी राजनयिक दल इनका दौरा कर सकता है. सू ची ने कहा, "ज्यादातर मुस्लिम इस पलायन में शामिल नहीं हुए हैं लेकिन हम पता लगाना चाहते हैं कि यह पलायन हो क्यों रहा है."
उन्होंने यह भी कहा, "हम स्वयं चिंतित है, और हम इस मसले की असली समस्या जानना चाहते हैं. इस पूरे मसले पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है और हमें उन सभी को सुनना होगा." सू ची ने साफ किया कि म्यांमार अंतरराष्ट्रीय जांच से नहीं डरता है लेकिन इस संघर्ष के स्थायी हल खोजने के लिए मदद जरूर चाहता है. अपने इस संबोधन में सू ची ने अगस्त में दी गयीं अन्नान आयोग की सिफारिशों को लागू करने का भी वादा किया है.
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने देश में सांप्रदायिक तनाव को हल करने जैसे मसले पर अपनी सिफारिशें दी थीं. रिपोर्ट ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि रोहिंग्या लोगों की गतिविधियों और नागरिकता जैसे मसलों से निपटने के लिए किसी भी प्रकार का बल प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. इसके पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने रोहिंग्या मसले पर मीडिया को दिए अपने बयान मे कहा था कि सू ची के पास हिंसा रोकने का यह आखिरी मौका है. उन्होंने जोर देकर कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों की घर वापसी म्यांमार सरकार की जिम्मेदारी है.
रोहिंग्या मुद्दे पर चौतरफा दबाव के बीच सू ची संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भाग लेने नहीं पहुंचीं हैं. रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है. रखाइन प्रांत में जारी हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र रोहिंग्या समुदाय के "जातीय सफाये" को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है. इस बीच, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने म्यांमार का पक्ष लेते हुए कहा है, "चीन म्यांमार की स्थिति समझता है और देश में स्थिरता स्थापित करने की म्यामांर की कोशिशों का समर्थन करता है."