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जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल को कठिन डगर का सामना

Majid Khan
27 Sep 2017 9:16 AM GMT
जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल को कठिन डगर का सामना
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जर्मनी : जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के क्रिसचियन डेमोक्रेट पार्टी के गठबंधन को रविवार के दिन होने वाले चुनावों में मामूली बढ़त तो मिल गई लेकिन इसके साथ ही मीडिया और राजनैतिक गलियारों में नई बहस छिड़ गई है। मर्केल वैसे तो चुनाव जीत गई हैं और उनका पद भी सुरक्षित है लेकिन इसके बावजूद उन्हें बड़ी कड़वी पराजय का भी मुंह देखना पड़ा है। उनके गठबंधन को जिस संख्या में वोट मिले हैं वह दूसरे विश्व युद्ध के बाद की सबसे कम वोट संख्या है।

दूसरी ओर कट्टरवादी दक्षिणपंथी पार्टी अलटरनेटिव फ़ार जर्मनी ने पूर्वानुमानों के अनुसार 12 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त किए। इस समय इस पार्टी को जर्मन संसद की 709 सीटों में से 94 सीटें मिल गई हैं और वह तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी दूसरे नंबर पर रही। मर्केल ने चुनाव परिणाम आने के बाद कहा कि वह जर्मनी में राजनीति के बहुध्रुवीय हो जाने की ज़िम्मेदारी स्वीकार करती हैं।

उन्होंने कहा यह परिवर्तन ख़ुद मुझसे संबंधित है और यह बिल्कुल स्पष्ट है। जर्मनी में बड़ी राजनैतिक पार्टियों का पतन वर्ष 2005 से शुरू हुआ और वर्ष 2017 में अपने चरम बिंदु पर पहुंच गया। वर्ष 2005 से 2009 तक और फिर 2013 से 2017 तक मर्केल को अपनी सरकार बनाने के लिए छोटे दलों की मदद लेनी पड़ी। इस तरह जहां राजनीति में सकारात्मक लचक के संकेत मिले वहीं यह भी स्पष्ट हो गया कि जर्मनी में छोटे दल मज़बूत होते जा रहे हैं।

मर्केल और मार्टिन शोल्टेज़ के बीच जो एकमात्र बहस हुई उससे यह सच्चाई साफ़ ज़ाहिर थी। इस स्थिति का सबसे अधिक फ़ायदा कट्टरवादी दक्षिणपंथी पार्टी अलटरनेटिव फ़ार जर्मनी ने उठाया। अब मर्केल के सामने सरकार गठन औ सरकार चलाने के मैदान में पिछले बारह साल की तुलना में अधिक कठिन परिस्थितियां हैं। सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी ने कहा दिया है कि वह महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी बल्कि संसद में सबसे बड़े विपक्ष के रूप में बैठना पसंद करेगी।

अब क्रिसचियन डेमोक्रेट पार्टी के पास ग्रीन पार्टी और लिबरल डेमोक्रेट पार्टी से गठबंधन करने का विकल्प है। लेकिन दोनों ही पार्टियां आर्थिक व पर्यावरण के क्षेत्रों में सत्ताधारी पार्टी से बहुत भिन्न दृष्टिकोण रखती हैं। अतः चौथी बार जर्मन चांसलर के रूप में मर्केल का कार्यकाल कठिनाइयों से भरा हुआ होगा।

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