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सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने में बंटे जर्मनी और यूरोपीय यूनियन
सोशल मीडिया के प्रसार के साथ घृणा और हिंसा के प्रसार में भी उसका इस्तेमाल होने लगा है. तो फिर कैसे रोका जाए सोशल मीडिया में नफरत फैलाने वालों को? हाल ही में जर्मनी में एक कानून लागू हुआ है.
जर्मनी ने यहूदियों और विदेशियों के खिलाफ प्रचार अभियान को देखते हुए नया कानून पास किया है लेकिन यूरोपीय आयोग उसमें जोखिम देखता है. यूरोपीय आयोग के उप प्रमुख आंद्रुस अंसिप ने जर्मनी द्वारा अकेले कदम उठाए जाने की निंदा की है और कहा है, "यूरोपीय संघ के लिए सचमुच बुरा है कि हर सदस्य देश खुद अपना कानून बनाना शुरू करें." डिजीटल घरेलू बाजार के लिए जिम्मेदार अंसिप का कहना है कि यूरोप के लोगों और उद्यमों के अलावा फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे डिजीटल प्लेटफार्मों के लिए अलग अलग नियमों को समझना मुश्किल होगा.
उन्होंने कहा कि लक्ष्य विभाजन से बचना होना चाहिए. अंसिप का इशारा जर्मनी के नये कानून की ओर था जिसमें इंटरनेट में नफरल फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है. अक्टूबर से लागू नये कानून का मकसद यह है कि आपराधिक सामग्रियों को सोशल मीडिया नेटवर्क जल्द से जल्द मिटा देंगे. पहली जनवरी से आम मामलों में 24 घंटे के अंदर और जटिल मामलों में एक हफ्ते के अंदर ऐसा करना होगा.
नियमों के व्यवस्थित हनन की स्थिति में 5 करोड़ यूरो के जुर्माने का प्रावधान है. यूरोपीय आयोग के उप प्रमुख ने इस बात के कोई संकेत नहीं दिये कि यूरोपीय आयोग जर्मन कानून के अनुरूप क्या यूरोपीय कानून लायेगा ताकि नियमों की उलझन को दूर किया जा सके. अंसिप ने स्वीकार किया कि इंटरनेट पर घृणा और नफरत फैलाना एक गंभीर समस्या है, लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को उनपर कार्रवाई करने के लिए समय दिया जाना चाहिए.
एस्तोनिया के अंसिप ने चिंता जतायी कि जर्मनी जैसे कानून का इस्तेमाल दूसरे देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करने में किया जा सकता है. हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया लेकिन यूरोपीय आयोग पोलैंड और हंगरी जैसे देशों में हो रहे घटनाक्रम की आलोचना करता रहा है.