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चीन को बड़ा झटका, ताइवान में साई इंग वेन ने जीता राष्ट्रपति चुनाव
ताइवान के मतदाताओं ने चीन को तगड़ा झटका देते हुए शनिवार को हुए राष्ट्रपति चुनाव में फिर से साई इंग वेन को राष्ट्रपति चुन लिया है. यह ताइवान की तरफ से चीन को बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि ताइवान ने चीन के अभियान को खारिज कर दिया है.
दरअसल, मतदाताओं ने स्वशासित द्वीप ताइवान को अलग-थलग करने के चीन के अभियान को सिरे से खारिज कर दिया और अपनी प्रथम महिला नेता साई इंग वेन को दूसरी बार विजेता चुन लिया है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, साई ने अपनी जीत की घोषणा करते हुए मीडिया सम्मलेन में कहा कि ताइवान दुनिया को दिखा रहा है कि हम जीवन के अपने लोकतांत्रिक तरीके का कितना आनंद उठाते हैं और हम अपने देश को कितना पसंद करते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि मतदाताओं ने फिर से मुझे चुन साफ किया है कि बीजिंग ताइवान के लिए खतरा बनना बंद कर दे. शांति का अर्थ यह है कि चीन ताइवान पर बल प्रयोग की धमकियां देना छोड़ दे. मुझे उम्मीद है कि चीनी अधिकारी लोकतांत्रिक ताइवान और हमारी लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के लिए खतरा नहीं बनेगे.
शनिवार शाम तक जारी वोटों की गिनती में उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी खान ग्वो यी 38 फीसदी मत ही हासिल कर सकी हैं. कुओमिनटांग पार्टी की खान ग्वो ने अपने प्रचार में चीन के साथ तनाव कम करने का वादा किया था, जबकि डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की साई ने साफ किया था कि वह चीन से करीबी रिश्ते नहीं चाहती हैं.
चीन को बड़ा झटका, ताइवान में साई इंग वेन ने जीता राष्ट्रपति चुनाव
इसके बाद चुनाव मतदान में साई इंग विन को 57 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हैं, उन्हें रिकॉर्ड स्तर पर 82 लाख मत प्राप्त हुए. इतने मतों के साथ उन्होंने कुओमिनटांग पार्टी के खान ग्वो यी को बहुत पीछे छोड़ दिया.
चुनाव से पहले चीन ने ताइवान के सामने यह फॉर्मूला पेश किया था, जिसे ताइवान ने पूरी तरह खारिज कर दिया है. इतना ही नहीं ताइवान के चुनावी कैंपेन में भी चीन का डर सबसे बड़ा मुद्दा था.
चुनाव प्रचार के दौरान साई ने कहा था कि हांगकांग के लोगों ने हमें बता दिया है कि 'एक देश, दो व्यवस्था' एक नाकाम फॉर्मूला है और हम भी उसका विरोध करते हैं.
साई इंग-वेन की जीत, दुनिया और ताइवान लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह चीन के साथ नजदीकी संबंधों का विरोध करती आई हैं. साई इंग वेन ने इसी महीने कहा था कि वो चीन के 'एक देश, दो व्यवस्था' वाले प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगी.
बता दें कि चीन 1949 में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद से ही ताइवान पर अपना दावा करता आया है. एक ओर जहां ताइवान खुद को स्वतंत्र और संप्रभु मानता है, वहीं चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए और फिर इसके लिए चाहे बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े.