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विधानसभा अध्यक्ष के ऐलान से क्या बागी विधायकों के सपने चकनाचूर?
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के फ्लोर टेस्ट से पहले स्पीकर केआर रमेश कुमार के फैसले से राज्य का सियासी पारा गरमा गया है. स्पीकर ने इस्तीफा दे चुके 14 और बागी विधायकों की सदस्यता रविवार को रद्द कर दी है. इसमें कांग्रेस के 11 और जनता दल (सेकुलर) के 3 विधायक शामिल हैं. इससे पहले गुरुवार को स्पीकर ने 3 विधायकों को अयोग्य करार दिया था. यानी कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार गिरने का कारण बने सभी 17 विधायकों को स्पीकर ने अयोग्य करार दे दिया है.
येदियुरप्पा सरकार सेफ है
इस्तीफे और अयोग्यता के बीच येदियुरप्पा सरकार और बागी विधायकों की सेहत पर क्या फर्क पड़ेगा? ये समझना भी जरूरी है. संविधान विशेषज्ञ, लोकसभा के पूर्व महासचिव और सुप्रीम कोर्ट के वकील पीडीटी आचारी के मुताबिक, सरकार की सेहत पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा. बीएस येदियुरप्पा सोमवार को आसानी से विश्वास मत हासिल कर लेंगे.
हालांकि, बागी विधायकों का येदियुरप्पा सरकार में मंत्री बनने का सपना चकनाचूर नहीं बल्कि थोड़ा दूर ज़रूर हो गया है. अगर इन विधायकों का इस्तीफा मंज़ूर हो जाता तो ये निश्चित रूप से ये सरकार का हिस्सा बनकर अहम रोल निभाते हुए नजर आते. लेकिन फिलहाल इसके आसार नजर नहीं आ रहे हैं.
इन धाराओं के तहत हुए अयोग्य
अब संविधान और इसके दलबदल निरोधक कानून की रोशनी में इन विधायकों को अपनी अयोग्यता का दाग चुनाव की आग में तपकर धोना होगा. वकील पीडीटी आचारी के मुताबिक, संविधान की धारा 101, 102, 190, 191 और 361 के विभिन्न प्रावधानों के आधार पर विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया है. यानी सदस्य मौजूदा सदन और सरकार में नहीं रह सकता है. अगर वो खाली हुई सीट पर या फिर लोकसभा या अन्य किसी सदन का चुनाव जीत जाता है तो कानून की निगाह में वो बेदाग हो जाता है. यानी उसका दूसरा जन्म हो जाता है.
इस्तीफे की दुहाई, मंत्री पद की चाहत
बागी विधायकों ने सदन के स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट तक के सामने अपना इस्तीफा ही स्वीकार कर लिए जाने की दुहाई देते हुए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. क्योंकि उन्हें लग रहा था चिंता विधायक पद की नहीं मंत्री पद की थी. मंत्री बन कर चुनाव जीतना जितना आसान है, उतना सड़क पर रहकर जीतना नहीं. लिहाज़ा विधायकों ने इस्तीफा मंज़ूर करने का दबाव बनाया. वहीं, स्पीकर ने इनको राजनीतिक सबक सिखाने के लिए अयोग्य घोषित कर अपने अधिकार और कर्तव्य पर फोकस किया.
दल-बदल कानून के तहत ठहराया अयोग्य
बता दें कि स्पीकर केआर रमेश कुमार ने कहा था कि इन विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं दिया था, इसलिए उन्होंने इसे अस्वीकार कर दल-बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य ठहराया. ऐसे में अब अयोग्य ठहराए गए विधायकों के सामने हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है.
क्या है कर्नाटक का गणित
17 विधायकों के अयोग्य घोषित होने के बाद कर्नाटक विधानसभा की संख्या 207 रह गई है. इस हिसाब से बहुमत का आंकड़ा 104 विधायकों का रह गया. पिछले ट्रस्ट वोट में कुमारस्वामी के पक्ष में 99 और बीजेपी के पक्ष में 105 वोट पड़े थे. इस हिसाब से बीजेपी के पास 105 विधायकों का समर्थन है, जो सरकार बनाने के लिए जरूरी नंबर की जरूरत को पूरा करता है.
ऐसे में अब सबकी नजर सोमवार को होने वाले येदियुरप्पा सरकार के फ्लोर टेस्ट पर हैं, जिसमें उनकी सरकार का स्थिर रहना तो मुमकिन माना जा रहा है, लेकिन बगावत कुमारस्वामी सरकार गिराने वाले विधायकों को फिलहाल कोई खास फायदा सरकार के स्तर पर मिलेगा, ऐसी संभावनाएं कम ही दिखाई दे रही हैं.