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एक मुल्ले का खून, दर्दनाक हादसा!

Special Coverage News
7 July 2019 5:18 AM GMT
एक मुल्ले का खून, दर्दनाक हादसा!
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प्रमोद बाबू को तमाशे की खबर पहले ही मिल चुकी थी। बार-बार चेहरे का पसीना पोंछते तेज कदमों से घर पंहुचे थे, जहां प्रकाश पसीने से नहाया वाश बेसिन में हाथ धोता मिला था।

*"क्या लगता है बेटा... खून के दाग हाथों से इतनी आसानी से छूट जाते हैं?"*

थरथराते स्वर में इतना ही कह पाये थे।

बेटे ने घूर के देखा था, लेकिन बोलने की जरूरत फिर भी न महसूस की।

*"मैं पूछता हूँ कि क्या दुश्मनी थी तेरी अफजल से?"*

*जो तूने उसे जय श्री राम और जय हनुमान का नारा लगवाते हुये अंत में मार डाला?*

यह बोलते हुये प्रमोद आखिर बरस ही पड़े उसके पिता।

*"वह गौमांस खाता है।" बेटे ने झुंझला कर जवाब दिया था।*

*"तो... खाता भी है तो?* किसी ने कहा और तूने मान लिया... *भीड़ बन कर एक अकेले इंसान को पीट-पीट कर खत्म कर डाला।"*

*"हाँ... कर डाला और जो भी गौमाता को हाथ लगायेगा, उसका यही हश्र करूँगा।"* बेटे ने आंखें चढ़ाते हुए इस बार बाप से आंख मिलाई थी।

*"तुझे किसी गाय ने जन्म नहीं दिया था बेटा, मेरी पत्नी और तेरी माँ ने दिया था,!* जो नशे में लहराते एक मदहोश रईसजादे की गाड़ी के नीचे आ गयी थी। कभी एसा आक्रोश तब तो न पनपा तेरे अंदर।"

*"हम हिंदू हैं बाबा और गाय हमारी आस्था है।"* झुंझलाया हुआ बेटा सामने से हट जाना चाहता था, लेकिन बाप ने हाथ पकड़ लिया।

*कैसी आस्था..*. जानता हूँ किन लोगों ने तेरे दिमाग में जहर भरा है।

*पूछ तो उनसे कि उनकी ही पार्टी के लोग जब गोवा, केरला से लेकर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में जब बीफ दिलाने का वादा करते हैं तब यह आस्था कहां मरने चली जाती है।"*

"मैं सब नहीं जानता बाबा, मुझे राजनीति नहीं आती... मुझे बस इतना पता है कि गाय हमारी माँ है और यह मुल्ले उसे काटते हैं।"

*"तो तेरा इतना खून खौल गया कि अपने भविष्य को लात मार कर तू हत्यारा बन गया।*

*अच्छा बता न...*

जब राजस्थान में सैकड़ों गायें गौशाला में मरीं, तब तेरा खून क्यों नहीं खौला?...

जब बहराईच में डाक्टर मिश्रा ने अपने फार्म हाऊस में दवा बनाने के लिये ढेरों गायें मार डालीं, तब तेरा खून क्यों नहीं खौला?"

प्रकाश को इस बार कोई जवाब तो नहीं सूझा। बस हाथ छुड़ाने की कोशिश ही की।

*"सीधे क्यों नहीं कहता कि तुझे गाय में आस्था नहीं... तेरे मन में मुसलमानों के लिये नफरत है।"*

*"हाँ है मुझे मुल्लों से नफरत, बेपनाह नफरत। मेरा बस चले तो देश से बाहर खदेड़ दूं गद्दारों को।"*

"क्यों है नफरत... क्यों?"

सैकड़ों गालियां उसके होठों तक आकर रह गयीं।

"जानता हूँ... यह जो कचरा तुम लोगों के दिमाग में भरा जा रहा है। सब पता है। तू छोड़ न कब किसने क्या किया या मुगलों ने क्या किया था... कश्मीरियों ने क्या किया... अफजल, कसाब, मेमन ने क्या किया।

*यह बता तेरे साथ, तेरे बाप दादा के साथ किसी मुसलमान ने क्या बुरा किया... किसने तेरा, तेरे खानदान में किसी के साथ क्या बुरा किया... कोई एक उदाहरण तो बता।"*

अब उसे कुछ न सूझा और वह जोर से बाप का हाथ झटक कर घर से बाहर निकल गया। बरामदे में खड़ी दोनों बहनें डरी सहमी देखती रह गयीं।

मोबाईल का जमाना था। जाहिर है इस घटना के वीडियो वायरल होने ही थे... ऐसे में आरोपी पहचाने जाने मुश्किल नहीं थे। पूरे देश में चर्चा होगी तो पुलिस को एक्शन तो लेना ही पड़ेगा।

*अनजान भीड़ तो बच गयी मगर चाकू चलाने वाले चारों पकड़े गये।*

*और उनमें प्रकाश भी था।*

लाख कोशिश के बाद भी प्रमोद बेटे को कानून के शिकंजे से बचा नहीं सके।

विचाराधीन कैदी के रूप में ही धीरे-धीरे साल गुजर गया। इस बीच कमजोर पड़ चुके बाप का बेटे से मिलना होता रहता था।

आज फिर वह मिलने आये थे बेटे से... बेटे की आंखों के गिर्द पड़े गड्ढे और इकहरी हो चुकी काया बता रही थी कि जेल में कैसे दिन गुजर रहे थे।

*"मुबारक हो बेटा... आज फाइनली तेरी बहन का रिश्ता भी टूट गया।*

*वह लोग बोल गये कि एक हत्यारे की बहन से शादी नहीं करेंगे।* सच तो यह है कि उन्हें पता है कि कोर्ट कचेहरी के चक्कर में हम इस लायक भी नहीं बचे कि ढंग से शादी कर सकें।"

प्रकाश का सीना एक अदृश्य से बोझ से दब गया, पर बोल न छूट सके।

*"और पता है, जो गुरू थे तुम लोगों के, मिट्ठू बाबू...*

*गाय के बहाने चार और लोग निपटाये थे वह। तो उपचुनाव में पार्टी की तरफ से ईनाम में टिकट मिला था और जनता तो पेट के बजाय अब आस्था में ही मस्त है तो चुनाव जीत भी लिये। हो सकता है कि मंत्री भी बन जायें।*

उनका एक ही बेटा था... कहीं देहरादून में पढ़ता था। चुनाव जीतते ही लंदन भेज दिये पढ़ने को... अब वहां पढ़ लिख के शानदार कैरियर बनायेगा।"

प्रकाश का सर झुक गया... वह अपने आंसू रोकने की कोशिश करने लगा।

"बेटा हमारा भी एक था। *बड़े लोगों, नेताओं के बेटे सब समझते हैं...* कभी भीड़ बनके अपनी जिंदगी नहीं खराब करते।

*वह तो हमारे बेटे होते हैं जो जान ही नहीं पाते कि कब कौन उनके कंधों पर पांव रख कर, उनके और उनके परिवारों के अरमान कुचलते हुए अपना कैरियर बना गया।"*

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