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- डॉक्टर्स का थोड़ा मजाक...
डॉक्टर्स का थोड़ा मजाक उड़ाया है, मुझे माफ करें लेकिन ये हकीकत पढ़ें जरुर यदि आप अपनी बेटी को डॉ बनाना चाहते है!
मनीष सिंह
बेटियों को समझाइये, डाक्टर नही बने। बेटो को समझाइये की डॉक्टर न बने। ख़ास तौर पर प्रतिभाशाली है, तो पापड़ बनाना सीखे। मगर डाक्टर बिल्कुल न बने।
19-20 उम्र में सबसे प्रतिभाशाली बच्चे PMT/NEET निकालते है, 269 सरकारी मेडिकल कालेज की 35688 सीटों के लिए। इन सीट्स पर अगर निकल गए तो अच्छी बात, वरना 260 प्राईवेट कालेज की 35290 सीटों पर मा बाप अपना लहू बेचकर एडमिशन करवाते हैं। एमबीबीएस की छह साल की पढ़ाई पर एक सवा करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं। 90 प्रतिशत प्राइवेट संस्थान नेताओ की दुकान है।
26 साल की उम्र में एमबीबीएस पूरा करके निकलने वाले की डॉक्टर जमात में खास सम्मान नही होता। मगर 60 प्रतिशत इसी स्तर पर रह जाते हैं। इन्हें सरकारी सर्विस का विकल्प है, जिसमे 50-60 हजार वेतन मिल सकता है। निजी हॉस्पिटल्स में भी यही रेंज होती है।
अगर आगे पढ़ने- बढ़ने की इच्छा है, तो फिर एमडी एमएस या डिप्लोमा के इंट्रेंस की तैयारी करनी होगी। तीन एमबीबीएस में एक ही पीजी बन पाएगा, क्योकि सरकारी और प्राइवेट मिलाकर कोई 22000 सीटें है,आधी प्राइवेट सेक्टर में। अब 2 और साल तथा डेढ़ करोड़ फूंक कर 28-29 की उम्र में वह डिग्री वाला मेडिकल छात्र है, असल डाक्टर नही। असल डॉक्टरी प्रेक्टिस और अनुभव से आती है। इसके बाद, अगर उसे सुपर स्पेशलिस्ट बनने का फितूर नही है तो अच्छी बात, वरना फिर 500 सीटों के लिए फिर से कम्पटीशन , दो साल उम्र और दो करोड़ और फूँक कर रोजगार की तलाश में निकलता है।
अब उसे एक डेढ़ लाख की नोकरी किसी लीलावती या एस्कॉर्ट में मिलेगी जहाँ उसके हुनर को मोटू सेठ बेचेगा। पूंजी की गुलामी न करे, तो 10 आठ करोड़ के कर्जे से अपना छोटा मोटा हॉस्पिटल खोलेगा। महीने की किश्त ही आठ दस लाख पड़ जाएगी। तब संस्थान सम्भाले या पेशेंट? इसकी भी इच्छा या हैसियत नही , तो किसी शटर वाली दुकान में क्लिनिक खोलकर 200-200 रुपये फीस कलेक्ट करे। दिन भर में मर मर के 100 पेशेंट देखेगा।
उधर सरकारी नोकरी वाला उसका दोस्त दिन के 200 पेशेन्ट सम्भालने को मजबूर है। दिन रात की ड्यूरी,हजारो पेशेंट, रिपोर्ट, जांच, पोस्टमार्टम, मेडिको लीगल केस, कोर्ट गवाही, प्रशासनिक काम, नेता, कलेक्टर, चमचो की डांट, फटकार, मारपीट। कही दूर के गांव में पोस्टिंग मिल गयी, तो जीवन 1920 के दशक में जिएंगे। हर अँगूठा छाप, भगवा-तिरंगा गमछा धारी , पाउच थूक कर , टोपी लगाकर मानवीयता का ज्ञान देगा।
आम आदमी 60 साल जीता है। आधी उम्र पढ़ने और माँ बाप पर निर्भर रहने के बाद बेचारा नॉकरी करे, कर्ज पटाये, या समाजसेवा करे। डॉक्टरी नही जमी तो जिन्दगी फेल है। जम गई तो जिन्दगी बर्बाद... दिन पेशेंट, रात पेशेंट।
पेशेन्ट आपको सोने, खाने, मरने की इजाजत न दें। निजी जीवन नाम की कोई चीज नही। गलती की कोई गुंजाइश नही। डॉक्टर के जीवन का सुख शांति और आराम से कोई वास्ता नही। चारो तरफ बीमारी, कराह,मौत,दुआए, इल्तजा, गालियाँ... पत्थर भी पड़ सकते हैं।
बच्चे की जवानी और उसके माँ बाप का बुढापा निचोडकर चूस लेने वाला समाज फिर भी अब उससे ईश्वर बनने की आशा रखेगा। डॉक्टर वो कोशिश भी करेगा। हिप्पोक्रेट्स ओथ याद करेगा, सेवा देगा । मगर फिर किश्त सामने आएगी, मा बाप के त्याग और अधूरे अरमानो का गिल्ट तारी होगा। साथ के कम प्रतिभाशाली दोस्तो को आराम और मनुष्य होने के सारे आनंद लेते देखेगा, तो दैवत्व का भूत कितनी देर खैर मनाएगा।
इस व्यवस्था में डॉक्टर, शहर में रहकर लोगो को लूटे नही तो क्या करे। हफ्ते भर सारी सेवा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, मशीनों का उपभोग करके भी कस्टमर मर जाये, तो वो लाश बंधक न रखे तो क्या करे। दवा दुकानों से, पैथोलोजिस्ट, एक्सरे, सोनोग्राफी वालो से कमीशन खोरी न करे तो क्या करे। लम्बी शिक्षा अवधि के कर्जे आपकी 200 रु की फीस से पूरे नही होने वाले। नर्सिंग होम की मशीनें फ़्री नही आती। भवन दान में नही मिकते। नये भारत मे सेवा पर 18% टेक्स जरूर है।
हे प्रभु, मुझे अपने प्रतिभाशाली बच्चो को शैतान नही बनाना, भूत नही बनाना, सदा तनाव का जीवन नही देना। नमक तेल बेच लेना मेरे बेटे, डॉक्टर मत बनना।
तब तक बिल्कुल नहीं जब तक हिंदुस्तान की मेडिकल शिक्षा नेता-माफ़िया के चंगुल में है। जब तक डॉक्टरों का स्वास्थ्य केन्द्र खोलना , दो रुपए किलो चावल की तरह सब्सिडाइज न हो। जब तक कि लाखो की जीवन रक्षक मशीने उज्ज्वला सिलेंडर की तरह मुफ्त न मिलें। जब तक डाक्टर-पेशेंट रेशो हजार पन्द्रह सौ की सीमा में न आ जाये। जब तक डाक्टर पर हाथ उठाने की सजा हाथ काटना न हो जाये।
डाक्टर मत बनना बेटा। मत बनना, मत बनना, मत बनना।