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फोटो खींचकर उसे चाभी के छल्ले में चिपकाकर बेचने वाला कैसे बना 6500 करोड़ रुपये की कम्पनी का मालिक?

Special Coverage News
16 Sep 2019 6:25 AM GMT
फोटो खींचकर उसे चाभी के छल्ले में चिपकाकर बेचने वाला कैसे बना 6500 करोड़ रुपये की कम्पनी का मालिक?
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जो कभी दिल्ली के बिड़ला मंदिर में फोटो खींचकर उसे चाभी के छल्ले में चिपकाकर बेचा करता थे। आज भारत की दूसरी सबसे बड़ी मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी का मालिक है।

सत्यम सिंह बघेल

हमारी सोच ही हमारी जिन्दगी की दशा-दिशा तय करती है। यदि सोच का दायरा विस्तृत है, दृष्टिकोण आशावादी व सकारात्मक है तथा हमें स्वयं पर अटूट विश्वास है, तो हमारे लिए कोई भी काम असंभव नहीं होता। ऐसा सम्भव कर दिखाया है, इंटेक्स कम्पनी के संस्थापक नरेंद्र बंसल ने, जिन्होंने मात्र 20,000 रुपये में अपनी कंपनी प्रारंभ की और उसे अपनी विस्तृत सोच, दूरदृष्टि एवं कड़ी मेहनत से 6500 करोड़ रुपये की कंपनी में तब्दील कर दिया। जो कभी दिल्ली के बिड़ला मंदिर में फोटो खींचकर उसे चाभी के छल्ले में चिपकाकर बेचा करता थे। आज भारत की दूसरी सबसे बड़ी मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी का मालिक है।

नरेन्द्र बंसल का जन्म राजस्थान के बाद्रा नामक गाँव में हुआ। पिता एक छोटे से व्यवसायी और माता गृहणी थीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही एक पंचायत स्कूल में ही हुई। नरेन्द्र बंसल जब हायर सेकेंडरी स्कूल में थे, उन दिनों से ही कुछ नया और बड़ा करना चाहते थे। उन्होंने व्यवसाय की नई संभावनायें तलाशना प्रारंभ कर दी। उन दिनों लोगों में ऑडियो कैसेट पर गाने सुनने का जबरदस्त जुनून हुआ करता था। नरेन्द्र बंसल अपने स्कूल के साथी छात्रों और पड़ोसियों को ऑडियो-विडियो कैसेट बेचने लगे। इस तरह वे अपनी पढ़ाई और जेब का खर्च आसानी से निकाल लिया करते थे।

नरेंद्र बसंल को केवल इस काम से ही संतुष्टि नही मिली क्योंकि उन्हें तो आगे जाना था। उन्होंने इस काम को बन्द करके चांदनी चौक के नया बाज़ार में कार्डलेस फ़ोन की सर्विसिंग का काम शुरू कर दिया। वे कार्डलेस फ़ोन की सर्विसिंग के लिए फ्री होम डिलीवरी और पिकअप सर्विस देने लगे। उस समय फ्री होम डिलीवरी की परिकल्पना नई थी। इसलिए उनका काम ठीक-ठाक चलने लगा। लेकिन इस काम में आगे तरक्की की संभावनायें कम ही थी। इसलिए उन्होंने यह काम भी बंद कर दिया।

कुछ नया करने के जूनून तो उनमें था ही उन्होंने अपने एक दोस्त से पुराना पोलोराइड कैमरा खरीदा और दिल्ली के बिड़ला मंदिर में जाकर टूरिस्ट के फोटो खींचकर उसे चाभी के छल्लों पर चिपकाकर बेचने लगे। इस काम में कमाई तो ठीक-ठाक थी, लेकिन एक सीमित दायरे के बाद आगे बढ़ने की संभावना नहीं थी। कुछ समय बाद उन्होंने यह काम भी छोड़ दिया।

इस तरह नरेन्द्र बंसल ने अलग-अलग व्यवसाय में हाथ आज़माते हुए 1986 में दिल्ली के स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक पूर्ण कर लिया। वे पहले ही तय कर चुके थे कि उन्हें कुछ बड़ा करना ही है। वे फ्लॉपी डिस्क और कंप्यूटर की अन्य एक्सेसरीज ताइवान और हांगकांग से मंगवाकर सस्ते में बेचने लगे। जब Ethernet Card की मांग बढ़ी, तो वे स्वयं ताइवान गए और वहाँ के स्थानीय बाज़ार में संपर्क कर Ethernet Card का सस्ता सप्लायर ढूंढ निकाला।

इसके बाद 1992 में उन्होंने नेहरु पैलेस में ही एक छोटा सा ऑफिस किराये पर लिया और अपने भाइयों के साथ मिलकर कम्प्यूटर असेम्बलिंग का काम करने लगे। काम ठीक-ठाक चलने पर उन्होंने 1993 में 'इंटरनेशनल इम्पेक्स' नाम की कंपनी खोल ली। लेकिन वे यहीं रुकने वाले नही थे। वे तो Sony, HCL और HP जैसी कंपनियों की तरह अपना भी ब्रांड-नेम बनाने का सपना बुन रहे थे। आखिरकार, 1996 में उन्होंने अपने ब्रांड-नेम के एक प्रोडक्ट Ethernet Card के साथ अपनी कंपनी इंटेक्स टेक्नालॉजी की स्थापना कर लिए। पहले साल उनकी कंपनी का टर्नओवर 30 लाख रहा।

इसके बाद कंपनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफ़लता के पायदान चढ़ती गई। उनकी कम्पनी के ऑफिस चीन और दुबई में भी खुले। ये नरेन्द्र बंसल की सूझ-बूझ, दूरदृष्टि, सकारात्मक दृष्टिकोण, और परिश्रम का ही नतीजा है कि सामान्य रूप से शुरू की गई कंपनी का टर्नओवर आज 6500 करोड़ रुपये है और कम्पनी में 11000 कर्मचारी काम करते है। भारत में इसकी 27 शाखाएं तथा 54 सर्विस सेंटर और 5 मेन्युफेक्चरिंग यूनिट है। हम आज क्या हैं यह महत्व नहीं रखता, बल्कि हमारे जीवन में इस बात का अधिक महत्व होता है कि, हमारी दूरदृष्टि कैसी है? व सोच क्या है? यदि दूरदृष्टि सार्थक व विस्तृत है और बड़ा करने की सोच लेकर हम चल रहे हैं तो एक दिन जरूर बड़ा करेंगे।

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