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भाई-भाई में ही ऐसा क्यों होता है...?

भाई-भाई में ही ऐसा क्यों होता है...?
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भाई से ज्यादा ना कोई उलझता है...।
ना भाई से ज्यादा कोई समझता है...।।
दोस्तों आज मैं एक ऐसे विषय पर अपने विचार आपसे साझा करना चाहता हूं...जिससे हर आम और खास इंसान आज प्रभावित नज़र आता है...जी हां...हम बात कर रहे है रिश्तों की, सम्बन्धों की, उन रिश्तों की जो खून के होते है...उन रिश्तों की जिसकी गहराई का अंदाजा वही लगा सकता है जो उस रिश्ते को जीता है...जी हां...हम आज भी वही हैं...रिश्ते भी वही हैं और रास्ते भी वही हैं...अगर कुछ बदला है तो बस...समय, अहसास, और नजरिया...रिश्ते निभाना हर किसी के बस की बात नहीं...अपना दिल दुखाना पड़ता है दूसरों की ख़ुशी के लिए...रिश्ते तो कांच के जैसे होते हैं साहब...अगर संभाल कर नहीं रखेंगे तो टूटेंगे और चुभेंगे भी...रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं ये बच्चों से सीखिए...जो आपस में लड़ने के थोड़ी देर बाद फिर दोस्त बन जाते हैं...वही जिस रिश्ते को आप लम्बे समय तक निभाना चाहते हों...उस रिश्ते में किसी और को मध्यस्थ न बनाएँ...क्योंकि अगर आपके रिश्ते में पूरी तरह से विश्वास, ईमानदारी और समझदारी है तो जीवन में आपको वचन, कसम, नियम और शर्तों की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी...किसी ने सही ही कहा है...जब नाख़ून बढ़ जाते हैं, तब नाख़ून ही काटे जाते हैं, उंगलियाँ नहीं...इसलिए अगर रिश्ते में दरार आ जाए तो दरार को मिटाइए न कि रिश्ते को...और हां किसी से सिर्फ उतना ही दूर होना...जिससे कि उसे आपकी अहमियत का एहसास हो जाए... किन्तु इतना भी दूर मत होना कि वो आपके बिना जीना ही सीख ले...भाई भूल तो जीवन का एक पेज है और सम्बन्ध पूरी किताब...जरुरत पड़े तो भूल का एक पेज फाड़ देना...लेकिन एक छोटे से पेज के लिए पूरी किताब नहीं...इतना तो आप भी जानते होगे कि...हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है...और हमें उस मर्यादा को कभी नहीं तोड़ना चाहिए...क्योंकि जब रिश्तों की मर्यादा टूट जाती है...तो बहुत कुछ खत्म हो जाता है...मेरा मानना है कि...रिश्ते अहसास के होते हैं...अगर अहसास हो तो...अजनबी भी अपने होते हैं...और अगर अहसास नहीं तो...अपने भी अजनबी होते हैं...एक बात औऱ रिश्ते कभी अपने आप नहीं टूटते, अहंकार, अज्ञान और रवैये उन्हें तोड़ देते हैं...यह भी एक अजीब ही पहेली है...कहीं रिश्तों के नाम ही नहीं होते...और कहीं पर सिर्फ नाम के ही रिश्ते होते हैं...किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं...मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती जनाब...एक साँस भी तब आती है...जब एक साँस छोड़ी जाती है…इसीलिए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि...रिश्ते वो बड़े नहीं होते जो जन्म से जुड़े होते है...रिश्ते वो बड़े होते है जो दिल से जुडे होते है...किसी रिश्ते में निखार...सिर्फ अच्छे समय में हाथ मिलाने से नहीं आता…बल्कि...नाज़ुक समय में हाथ थामने से आता है…रिश्तों में...कभी भी तकरार में बोलचाल बंद ना कर सुलह के हर संभावित मौके को जीवित रखें...और हां अपने मिथ्या अभिमान को दफना दें...सारे झगडे की फसाद सिर्फ और सिर्फ झूठा अभिमान है...वही रिश्तों की भीड़ में उन लोगों को हमेशा महत्व दीजिए...जो आपको दिल से मानते हैं...क्योंकि दिल से मानने वाले लोग कभी कभार हीं मिलते हैं...इतना ही नहीं रिश्तों के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि...धूल केवल चीजों पर ही नहीं जमती बल्कि रिश्तों में भी जम जाती हैं...बचपन में एक-दूसरे का ख्याल रखने वाले भाई-भाई का रिश्ता...जो कभी चेहरा देखकर और आवाज़ की लय सुनकर एकदूसरे की परेशानी भांप जाने वाले होते थे...वही भाई-भाई का रिश्ता न जाने क्यों जब उनकी शादी हो जाती है...तो अपनी पत्नी के साथ रहते हुए एक दूसरे की चिंता को भांप कर भी अनदेखी कर देते हैं...।
दोस्तों सम्बन्ध को जोड़ना एक कला है...लेकिन सम्बन्ध को निभाना" एक साधना जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है...ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है...ईश्वर "और अपनी "अंतरआत्मा" और हैरानी की बात है कि दोनों नजर नहीं आते एक बात और जब हम खुद को समझ लेते है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई और हमारे बारे में क्या सोचता है...लेकिन जब हमारी अंतर आत्मा का अहसास, प्यार, अपनापन खत्म हो जाता है...तब रिश्ता जो सबसे ख़ास होता है...टूटने लगता है वो रिश्ता भाई-भाई का होता है... क्या कारण है जब भाई भाई के पवित्र रिश्ते मै दरार आ जाती है...जबकि आपका भाई आपका सबसे बड़ा मित्र और हितैषी है...बड़ा भाई पिता तुल्य गिना जाता है...छोटा भाई आड़े समय अवश्य काम आता है...सेवा करता है...एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं...यदि दो भाई मिल जुलकर अग्रसर हों तो संसार में निर्विघ्न चल सकते हैं...एक दूसरे के आड़े समय पर काम आ सकते हैं...आर्थिक सहायता कर सकते हैं...और एक भाई जो हर तरह से सबल हो चाहे तो दूसरे के परिवार का पालन पोषण कर सकता हैं...मेरी नजर में वे भाई धन्य हैं जो मिलजुल कर चलते हैं...छोटा भाई तो हमेशा से ही या दूसरे शब्द में कहूं तो छोटी आयु में ही पिताजी के गुज़र के बाद से ही आप में पथप्रदर्शक...हितैषी और संरक्षक की छाया के रुप में ही देखता आया है... उसके लिए आपको भी वही त्याग और बलिदान करने चाहिए थे...जो एक पिता अपने पुत्र के लिए करता है...यह भी एक शाश्वत सत्य ही है कि...पिता की मृत्यु के पश्चात ज्येष्ठ पुत्र के ऊपर संपूर्ण उत्तरदायित्व अपने आप ही आ जाता है...वही देखा जाए तो हम में से अक्सर कई लोग आज भी भाई की कीमत नही जानते...हम सिर्फ और सिर्फ यही समझते हैं की हमे विरासत मे क्या मिल रहा है...भाई को ज्यादा तो नही मिल रहा... वो तरक्की कर रहा तो जले नही वरन् गर्व करे की वो हमसे आगे है...आखिर हमारा भाई है...भाई मेरे जंजीर जोड़ने से बनती है...तोड़ने से नही...सम्बन्धो को तोड़ने से कुछ हासिल नही होना...जोड़ने से हासिल होता है...यदि अब भी मन मे कोई बैर है...आत्मग्लानि है, तकलीफ है, तो आगे बढ़ो, लग जाओ गले, थाम लो हाथ बढ़कर, पर निस्वार्थ, बिना छल कपट और सबसे बड़ी बात पत्नी की बातों पर ज्यादा गौर ना करते हुए...क्योंकि मेरा अब तक का जो अनुभव रहा है वह यही है कि...ज्यादातर पत्नियां नहीं चाहती की उनके पति के रिश्ते अपने भाई के साथ ज्यादा मधुर हो...उससे उनको अपने अधिकार क्षेत्र में कटौती का भंय सताता रहता है...बहरहाल यह जरुरी नहीं की जो मैं सोच रखता हूं...वह सच ही हो...फिरहाल जिसकी चर्चा अभी मैंने की यदि हम अपने भाई के लिए ऐसा करता है तो फिर देखिये की आपकी शक्ति कई गुना बढ़ जायगी...।
जबकि दूसरी तरफ हम अपने दोस्तों में अपनी इमेज बनाने आदि में लाखो रूपये बर्बाद कर देते है...लेकिन एक तरफ यदि हमारा भाई कमजोर है...किसी कारोबार मे उसे सफलता नही मिल रही...कुछ परेशानी मे हो तो आगे बढ़े और उसका हाथ थामे और सिर्फ इतना ही कह दें की मै तेरे साथ खड़ा हूँ...देखिये कितना मजबूत समझेगा वह अपने आपको...अपनी लेखनी पर विराम देने से पहले एक और महत्वपूर्ण बात आप सभी मित्रों से करना चाहता हूं...भाई-भाई का रिश्ता कच्चे रेशम की डोर से बंधा होता है...अगर वह टूट जाता है तो आसानी से जुड़ता नहीं है...जुड़ता भी है तो दिल में एक गांठ जरूर पड़ जाती है...समाज में जितना जरूरी पैसा है उस से कहीं ज्यादा जरूरी भाई से भाई के रिश्ते को माना जाता है...यह सच है कि पैसा सब की जरूरत है... लेकिन आप के पास बहुत पैसा हो और परिवार की खुशी न हो तो कहीं न कहीं आप हमेशा अधूरे से रहेंगे...पैसा हमेशा न टिकने वाला होता है लेकिन भाई-भाई का संबंध समाज में हमेशा सुखदुख में काम आने वाले होते हैं...इसलिए पैसे को महत्त्व न दे कर अगर भाई-भाई के रिश्तों में मधुरता लाने की कोशिश की जाए तो इस विवाद को कम किया जा सकता है...हजारों रिश्ते बनाने की अपेक्षा हमको अपने भाई के रिश्ते को ही संभाल लेना चाहिए...क्योंकि दिल के रिश्ते ही हमारी ताकत बन सकते हैं...खोखले रिश्ते हमारी कमजोरी ही बनते हैं....खोखले रिश्ते जरूरतों को तो पूरा कर सकते हैं...लेकिन हमें संतुष्टि नहीं दे सकते हैं…।।


कुंवर सी.पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली
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