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मध्य प्रदेश में कुल्हाडी पर पैर मारती कांग्रेस, जानिए कैसे?
मध्य प्रदेश में पिछले पंद्रह वर्षों से सत्ता पर काबिज भाजपा को इस बार विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड रहा है। किसानों की आत्महत्या, बेरोजगारी, प्रदेश की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति, चरमराती कानून व्यवस्था, हर किस्म के बढते अपराध, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं की बदहाली आदि तमाम मुद्दों को लेकर वह पिछले कई दिनों से बचाव की मुद्रा में चली आ रही थी। लेकिन कांग्रेस के हवा-हवाई नेतृत्व ने उसे बैठे-बिठाए एक ऐसा मुद्दा थमा दिया, जिसे लेकर पूरी पार्टी आक्रामक मुद्रा में आ गई और कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आकर सफाई देना पड रही है।
मामला कांग्रेस द्वारा जारी चुनावी वचनपत्र (घोषणापत्र) से जुडा हुआ है। इस वचनपत्र में तमाम वादों के साथ एक वादा वह ऐसा कर बैठी है, जिसकी कतई जरुरत नहीं थी। दरअसल कांग्रेस ने अपने वचन पत्र के पेज नंबर अस्सी पर जनता से वादा किया है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो शासकीय परिसरों में लगने वाली आरएसएस की शाखाओं तथा शासकीय कर्मचारियों के शाखा में शामिल होने पर पाबंदी लगाई जाएगी। उसके इस वादे पर पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने दिल्ली में बैठ कर दिव्य ज्ञान दिया कि मध्य प्रदेश की जनता इसका स्वागत करेगी। कहने की आवश्यक नहीं कि इस वादे को वचन पत्र में जगह देने वाला दिमाग भी चिदंबरम जैसे ही नेता का रहा होगा, जिसका जमीनी राजनीति से कोई सरोकार नहीं होगा।
कांग्रेस की तरफ से किया गया यह एक ऐसा वादा है जिसकी न तो जनता की तरफ से कोई मांग उठ रही थी और न ही यह मुद्दा फौरी तौर सूबे की ऐसी गंभीर समस्या बना हुआ है कि जनता वाह-वाह कर उठे और यह सोचकर खुश हो जाए कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर संघियों की नकेल कस दी जाएगी। लंबे समय तक केंद्र और सूबे में सत्ता में रही कांग्रेस के नेतृत्व और उसका वचन पत्र बनाने वाली कमेटी के सदस्यों में इतनी तो राजनीतिक तमीज होनी ही चाहिए कि ऐसे वादे घोषणापत्र में नहीं किए जाते हैं बल्कि सत्ता में आने पर और आवश्यकता महसूस होने पर एक कार्यकारी आदेश के जरिये इस आशय के फैसले लागू कराए जा सकते हैं।
दरअसल कांग्रेस ने अपने संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध लगाने की बात कह कर वही गलती कर डाली जो तीन साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस के मुखिया मोहनराव भागवत ने आरक्षण के खिलाफ बयान देकर की थी। उनके उस बयान को लेकर लालू प्रसाद यादव भाजपा और संघ के खिलाफ इस कदर आक्रामक हो उठे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे चुनाव अभियान के दौरान भागवत के बयान पर सफाई देते-देते थक गए थे। लेकिन उनकी सफाई भी भागवत के बयान से हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर पाई थी।
बहरहाल मध्य प्रदेश में कई दिनों से बैकफुट पर खेल रही भाजपा को कांग्रेस पर हमलावर होने के लिए मुद्दे की तलाश थी, जो कांग्रेस ने उसे उपलब्ध करा दिया। भाजपा और उसके साथ टीवी चैनलों और सोशल मीडिया ने उसे हाथोहाथ लपका। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लेकर भोपाल में कैंप कर रहे पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा जैसे तमाम मुंहबली कांग्रेस पर बुरी तरह टूट पडे। संघ की शाखा को लेकर जाहिर की गई राय को राम मंदिर और संघ पर प्रतिबंध से जोड दिया गया। आरोप लगाया गया कि कांग्रेस का एक ही एजेंडा है- मंदिर नहीं बनने देंगे, शाखा नहीं चलने देंगे। इसके अलावा भी कई असंगत आरोप सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर मढ दिए गए।
भाजपा जैसे ही हमलावर हुई, फ्रंटफुट पर खेल रही कांग्रेस को एकाएक बैकफुट पर आना पडा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के चिरआकांक्षी कमलनाथ को हकलाती हुई आवाज में सफाई देनी पडी कि वचन पत्र में संघ पर पाबंदी लगाने की बात नहीं कही गई है और न ही पार्टी का ऐसा इरादा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सिर्फ शासकीय परिसर में शाखा लगाने पर पाबंदी की बात कही गई है जो कि संविधान के दायरे में है तथा पूरे देश में उसका पालन होता है। कमलनाथ की सफाई अपनी जगह बिल्कुल सही है लेकिन उनकी पार्टी की इस गलती ने भाजपा को राज्य में ध्रुवीकरण करने के लिए एक मुद्दा तो उपलब्ध करा ही दिया। देखने वाली बात होगी कि भाजपा की इस हिकमत अमली से कांग्रेस कैसे निबटती है!