ग्वालियर

मध्यप्रदेश में तोमर और सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर

Shiv Kumar Mishra
3 Jan 2020 11:44 AM GMT
मध्यप्रदेश में तोमर और सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर
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प्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस के उस समय झटका लगा जब जौरा से कांग्रेस विधायक का निधन हो गया। विधायक बनवारी लाल के निधन का झटका पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का काफी लगा जिसके कारण उन्होंने अपना जन्मदिन ही मनाने से मना कर दिया है। जौरा में होने वाले उप चुनाव को लेकर राजनीतिक गलियारो में गरमाहट शुरू हो गई है ओर इस सीट को लेकर इस बार सिंधिया के साथ केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। इसका कारण यह है कि तोमर मुरैना संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं जबकि सिंधिया अंचल के सर्वमान्य कांग्रेस नेता हैं।

प्रदेश में भले ही भाजपा की सरकार रही हो, लेकिन उप चुनाव में कांग्रेस की जीत का इतिहास रहा है। शिवपुरी विधानसभा का उप चुनाव हुआ था उस समय भाजपा की सरकार थी ओर सत्ता पक्ष के अधिकांश मंत्रियो ने वहां डेरा डाला था, लेकिन कांग्रेस की तरफ से अकेले सिंधिया ने लड़ाई लड़ी ओर कांग्रेस प्रत्याशी को फतह दिलवाई थी। इसी तरह कोलारस के साथ ही अटेर का भी उप चुनाव कांग्रेस ने सिंधिया की दम पर जीता था। अब सत्ता कांग्रेस के हाथ में है ओर जौरा विधानसभा में उप चुनाव अगले 6 माह के अंदर होना है ऐसे में एक बार फिर सिंधिया के कंधो पर भार आने वाला है।

वैसे विधानसभा चुनाव के समय भी सिंधिया ने अंचल का भार अपने कंधो पर लिया था ओर 28 विधानसभा सीटे जीतकर कांग्रेस को दी थी जिसके कारण ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन सकी थी। इस बार सिंधिया का सामना केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से होगा, क्योंकि तोमर मुरैना संसदीय क्षेत्र से सांसद है ओर उनके कंधे पर ही भाजपा बोझ डालेगी। जौरा विधानसभा में बसपा का भी काफी बोलबाला रहा है ओर वहां से उसके दो बार विधायक भी रहे है इसलिए कांग्रेस को बसपा के साथ समझौता करने में लाभ हो सकता है, लेकिन उप चुनाव के समय क्या गणित बैठता है उसके बाद ही यह तय हो सकेगा कि कांग्रेस के लिए राह कितनी आसान है।

नरेन्द्र सिंह की संगठन क्षमता महत्वपूर्ण रोल निभाएगी

भाजपा के अंदर केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर संगठन क्षमता के हिसाब से काफी आगे है, क्योंकि युवा मोर्चा से लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहते उन्होने अपनी संगठन क्षमता कई बार दिखाई है। यही कारण है कि इस बार जौरा उप चुनाव की जिताने की जिम्मेदारी नरेन्द्र सिंह के ऊपर काफी रहेगी, लेकिन सामने सिंधिया के होने के कारण मामला बराबरी पर अटकता है। सिंधिया युवाओ के बीच काफी लोकप्रिय होने के साथ ही अंचल की जनता के बीच सर्वमान्य नेता माने जाते है, क्योकि वह जो कहते है उसे करके दिखाते है जिसके कारण जनता उन पर विश्वास अधिक करती है। अब कांग्रेस के अंदर उनके ऊपर कितना विश्वास किया जाता है यह समय के हिसाब से ही देखने को मिलेगा।

कांग्रेस के दावेदार अभी से होने लगे सक्रिय

जौरा विधानसभा क्षेत्र रिक्त होने के बाद से ही कांग्रेस की तरफ से कई दावेदार सक्रिय हो गए है। अब दावेदार तो कई है, लेकिन कौन मैदान मे आएंगा इसका फैसला सिंधिया के हाथ में रहेगा। वैसे जिसको भी मौका मिलेगा उसके लिए उप चुनाव की राह आसान हो सकती है, क्योकि सरकार के लिए एक-एक विधायक काफी महत्वपूर्ण है जिसके कारण जहां सरकार पूरा जोर लगाएंगी वहीं सिंधिया भी अपने दावेदार को जिताने के लिए मैदान मेें जोर लगाने से नहीं चूकंगे। अब सिंधिया व नरेन्द्र सिंह के बीच होने वाली प्रतिष्ठा की लड़ाई में कौन बाजी मारेगा यह तो समय ही बताएगा, लेकिन मुकाबला रोचक होने की उम्मीद जरूर जताई जा रही है।

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