इंदौर

होटल के कमरे में 4 लाशें देखकर वेटर भाग खड़ा हुआ, और फिर

Special Coverage News
2 Oct 2019 11:53 AM GMT
होटल के कमरे में 4 लाशें देखकर वेटर भाग खड़ा हुआ, और फिर
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इंदौर के एक आलीशान रिज़ार्ट में एक परिवार छुट्टियां मनाने आता है. पति-पत्नी और दो बच्चे. तय वक्त पर पूरा परिवार वहां पहुंच जाता है. रिज़ॉर्ट पहुंचते ही चारों कमरे में जाते हैं और दरवाजा अंदर से बंद कर लेते हैं. 5 घंटे, 10 घंटे, 20 घंटे, यहां तक कि 30 घंटे बीत जाते हैं. ना कमरे से कोई बाहर आता है ना कोई अंदर जाता है. सिवाए दो बोतल पानी के. एक भरा-पूरा परिवार छुट्टियां मनाने रिजॉर्ट आया हो और आकर सीधे कमरे में बंद हो गया. तीस घंटे से बाहर ना निकला हो तो ज़ाहिर है होटल के स्टाफ को अजीब लगेगा. लिहाज़ा स्टाफ ने मैनेजर से बात कर कमरा नंबर 211 को मास्टर की से खोलने का फैसला किया.

25 सितंबर 2019, सुबह 11 बजे

इंदौर के डीबी सिटी अपार्टमेंट से निकलकर एक कार में देवगुदारिया पहाड़ के नीचे बने एक मशहूर रिज़ार्ट और स्पा के लिए निकलती है. करीब 22 किमी का ये सफर कार करीब 40 मिनट में तय करती है. कार में पति, पत्नी और दो बच्चे मौजूद थे. करीब पौने 12 बजे कार इस रिज़ार्ट में दाखिल होती है. रिज़ार्ट में चेक इन करने के बाद पूरा परिवार रूम नंबर 211 में चला जाता है और दरवाज़ा बंद हो जाता है. 25 सितंबर का पूरा दिन बीत जाता है. ना कोई रूम से निकलता है. ना ही रूम से रिज़ार्ट को कोई ऑर्डर किया जाता है.

25 सितंबर 2019, रात 10 बजे, क्रिसेंट रिज़ार्ट एंड स्पा, इंदौर

रूम नंबर 211 से रिसेप्शन पर फोन आता है. सामने से पानी की दो बोतलें ऑर्डर की जाती हैं. फिर इसके बाद रूम नंबर 211 से ना कोई कॉल आती है. और ना ही कोई बाहर आता है. 25 सितंबर की पूरी रात गुज़र जाती है. 26 सितंबर को ब्रेकफॉस्ट के लिए बुफे सजता है. मगर रूम नंबर 211 से सुबह का नाश्ता करने के लिए भी कोई बाहर नहीं आता है. दोपहर हो जाती है मगर फिर भी कमरे का दरवाज़ा बंद ही रहता है. अब रिज़ार्ट के कर्मचारियों की भी बेचैनी बढ़ने लगती है. क्योंकि 20 घंटे बीत चुके थे. ना कोई कमरे से बाहर आया था और ना ही कोई कमरे के अंदर दाखिल हुआ था.

26 सितंबर 2019 शाम 6 बजे, क्रिसेंट रिज़ार्ट एंड स्पा, इंदौर

प्रबंधक ने कमरे की दूसरी चाबी से कमरे का लॉक खुलवाया. रुम नंबर 211 का दरवाज़ा जैसे ही खुला. अंदर बेचैन कर देने वाला मंज़र था. होटल के स्टाफ की आंखे खुली रह गईं. क्योंकि उनके सामने 4 लाशें पड़ी हुईं थी. एक कमरे में पति-पत्नी और दूसरे कमरे में उनके जुड़वां बच्चे. सबके मुंह से झाग निकला हुआ था. और ये अधेड़ उम्र इंसान बेड पर ऐसे लेटा हुआ था. जैसे कुछ सोचते-सोचते ही इसने अपनी आखिरी सांसें ली हों. इसके अलावा इसकी बीवी और बच्चों की लाशें भी ऐसी स्थिति में थीं, जैसे मरने से पहले उन्होंने कोई तड़पन महसूस ही ना की हो. बेड की चादरें तक सिकुड़ी हुईं नहीं थी. यहां तक कि सब ने बाकायदा ब्लैंकेट ओढ़ा हुआ था. और उसे भी हटाया नहीं गया था.

कमरे में मिली चार लोगों की लाश

इन चारों लाशों के नज़दीक एक चाय का कप रखा हुआ था. और वो दो पानी की बोतलें जो इन्होंने 25 सितंबर की रात 10 बजे रिज़ार्ट के रिसेप्शन पर फोन करके मंगवाई थीं. जिन चार लोगों की लाशें क्रिसेंट रिज़ार्ट के इस रूम नंबर 211 में थीं. उनमें 45 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अभिषेक सक्सेना. उनकी 42 साल की पत्नी प्रीति. अदिति और अद्विक नाम के दो जुड़वां बच्चे जिनकी उम्र 14 साल थी. लाशों को देखने के बाद रिज़ार्ट प्रबंधन ने फौरन पुलिस को इत्तेला दी.

पुलिस ने शुरू की छानबीन

खबर मिलते ही खुड़ैल थाने की पुलिस फॉरेंसिक टीम के साथ रिज़ार्ट पहुंची. मौके पर पहुंचकर बहुत बारीकी से जांच शुरू की गई. क्योंकि कमरे में ना तो जबरन घुसने की कोशिश हुई थी और ना ही मरने वालों के साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती के निशान थे. एक परिवार के साथ अमूमन जो सामान होते हैं, वही सामान इस परिवार के पास भी था. बस उन 2 चीज़ों को छोड़कर.

किसने ली चारों की जान

सवाल ये था कि आखिर वो दो चीज़ें थीं क्या. जो पुलिस और फॉरेंसिक की टीम को हैरान कर रही थीं. वो क्या चीज़ थी जिसने इन चारों की जान ले ली? आखिर कमरा नंबर 211 में उन 30 घंटों के अंदर क्या हुआ? हरेक लाश का रंग बदल कर नीला क्यों हो गया था? अमूमन ऐसी मौत की मिसाल नहीं मिलती, जब इंसान बेड पर लेटे लेटे मर भी रहा हो और बिस्तर पर एक सिलवट भी ना आई हो.

कमरे में मौजूद थे 2 अलग सामान

रूम नंबर 211 में मिली दो चीज़ों ने पुलिस और फॉरेंसिक टीम को हैरान कर दिया. वो थीं वज़न तौलने की एक छोटी सी मशीन और उसके बगल में रखा हुआ सोडियम नाइट्रेट नाम के केमिकल का डिब्बा. सवाल ये था कि आखिर इस लग्ज़री रिज़ार्ट में पिकनिक मनाने अपने परिवार के साथ निकले अभिषेक सक्सेना के रूम में इस केमिकल का क्या काम था. क्या कमरे में कोई ऐसा शख्स दाखिल हुआ था. जिसने धोखे से इस परिवार को ये जानलेवा केमिकल दे दिया और फिर बड़ी खामोशी से रुम से बाहर भी निकल गया.

पानी के साथ पिया सोडियम नाइट्रेट

कमरे में किसी और के दाखिल होने की बात इसलिए भी खारिज हो जाती है क्योंकि मौके से जो चाय के कप मिले हैं. उनमें चाय नहीं बल्कि पानी के साथ उसी सोडियम नाइट्रेट केमिकल को मिलाया गया था. कमरे में भी जिस तरह तमाम चीज़ें तरतीब से रखी हुई हैं, वो इशारा कर रही थीं कि ये मामला मॉस सुसाइड यानी सामूहिक खुदकुशी का है.

सबने पी लिया मौत का जाम

दरअसल, मरने वालों को पता था कि वो जो पीने जा रहे हैं, उसके बाद वो बचेंगे नहीं. मगर फिर भी सबने उस केमिकल को गटक लिया. ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली के बुराड़ी में 11 लोगों ने सामूहिक खुदकुशी की थी. मुमकिन है कि बुराड़ी की तरह यहां भी परिवार के मुखिया ने ही सबको खुदकुशी करने के लिए मनाया हो. मगर हैरान करने वाली बात ये है कि आखिर उसने ऐसा क्या कहा होगा कि सबने खुशी खुशी मौत का वो जाम पी लिया.

पुलिस ने माना खुदकुशी

मौका-ए-वारदात का हाल देखकर पुलिस ने ये मान लिया कि मामला खुदकुशी का ही है. और अब वो खुदकुशी की वजह को तलाशनें में जुट गई. मगर ये सामूहिक खुदकुशी क्यों. ये बड़ा सवाल था. जिसका जवाब तलाशा जाना ज़रूरी था. क्योंकि मरने से पहले जिन लोगों से अभिषेक या प्रीति ने बात की. उनकी बातचीत से ऐसा लगा ही नहीं कि वो इतना बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं.

क्यों की सामूहिक आत्महत्या

पुलिस ने जब तफ्शीश शुरू की तो पता चला कि अभिषेक सक्सेना इंदौर की एक प्राइवेट कंपनी में अनुभवी सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. उनकी पत्नी भी नौकरी करती थीं. बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ते थे. और तो और ये परिवार इंदौर के एक मंहगे अपार्टमेंट रहता था. तो फिर इस परिवार के साथ आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने उन्हें मॉस सुसाइड के लिए मजबूर कर दिया.

नौकरी चले जाने से परेशान थे पति-पत्नी

कमरे में कोई भी सुसाइड नोट नहीं था. ताकि ये साफ हो सके कि अगर इस परिवार ने खुदकुशी की तो क्यों की. लेकिन जब पुलिस ने अभिषेक और उसके परिवार की जानकारी जुटानी शुरू कर की तो पता चला कि अभिषेक जिस सॉफ्टवेयर कंपनी में सीनियर पोस्ट पर थे. वो कंपनी ही खत्म हो गई. इस तरह हर महीने लाखों की सैलरी उठाने वाले अभिषेक को पहला झटका लगा. वहीं उनकी पत्नी प्रीति भी जिस प्राइवेट कंपनी में करती थी. वहां से उनकी भी नौकरी चली गई थी.

आर्थिक बदहाली का शिकार था परिवार

तो अभिषेक और उनके परिवार की आमदनी अचानक खत्म हो गई थी. मगर खर्चे उनके वैसे ही बने हुए थे. उस पर शेयर ट्रेडिंग में भी अभिषेक लाखों रुपये गंवा चुका था. वहीं उसके दोनों बच्चे लगातार बीमार रह रहे थे. उनके इलाज के लिए भी पैसा चाहिए था. कुल मिलाकर परिवार आर्थिक बदहाली से गुज़र रहा था. मगर शर्म की वजह से उन्होंने कभी अपने करीबियों से पैसे नहीं मांगे.

बच्चों पर जान छिड़कता था अभिषेक

जो लोग अभिषेक को जानते हैं, उन्हें पता है कि वो अपने बच्चों पर जान छिड़कते थे. वो उन्हें हमेशा अपने साथ रखते थे. ऐसे में अभिषेक ने अपने इस पागलपन में आखिर उन्हें क्यों शामिल किया. ये बड़ा सवाल है. हालांकि घरवालों का कहना है कि मुमकिन है कि अभिषेक को ये ख्याल आया हो कि बच्चे उनके बिना नहीं रह पाएंगे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को भी ये मौत का जाम पिला दिया.

साइबर टीम ने खोले गैजेट

फिलहाल पुलिस की साइबर टीम इस सामूहिक खुदकुशी की वजह जानने के लिए अभिषेक और प्रीति के मोबाइल फोन और उनके ईमेल आईडी वगैहरा की जांच कर रही है, ताकि इसका पता लगाया जा सके. हालांकि अभिषेक के जो भी इलेक्ट्रानिक गैजेट पुलिस के हाथ लगे हैं वो पासवर्ड प्रोटेक्टेड थे. मगर पुलिस ने उन्हें खोलकर खुदकुशी की असली वजह पता कर ली है.

इंटरनेट पर सर्च किया था मौत का सामान

पुलिस ने जब अभिषेक के लैपटॉप को खंगाला तो पता चला कि अभिषेक ने कुछ दिन पहले ही इंटरनेट पर सोडियम नाइट्रेट नाम के रसायन को सर्च किया था. यानी उसने पहले ही तय कर लिया था कि खुदकुशी किस तरह करनी है. पुलिस की मानें तो यही केमिकल उसने सबसे पहले दोनों बच्चों को पानी में मिला कर दिया. इसके बाद बीवी को पिलाया और फिर आखिर में खुद भी पी गया.

बुजुर्ग मां-बाप पर टूटा पहाड़

82 साल के बुजुर्ग पिता का दर्द उनकी आंखों से उस वक़्त फूट पड़ा, जब उनके सामने उनके इकलौते बेटे की लाश लाई गई. फिर उन्होंने एक-एक कर जब बहु और पोते-पोती की लाश देखी तो कलेजा फट गया. पोस्टमार्टम हाउस के सामने उस मां को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि पलभर में उनकी दुनिया उजड़ गई. उस बूढी मां को मां कहने वाले. दादी कहने वाले सब के सब उस दुनिया में चले गए, जहां से अब कभी वापस नहीं आएंगे. दिल को चीर कर रख देने वाली ये कहानी जिसमें भी सुनी उसकी आंखे भर आईं.

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