इंदौर

पीएम मोदी ने सैयदना के दीदार के लिए खुफिया रिपोर्ट को किया नजरअंदाज

Special Coverage News
14 Sep 2018 11:59 AM GMT
पीएम मोदी ने सैयदना के दीदार के लिए खुफिया रिपोर्ट को किया नजरअंदाज
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंदौर यात्रा के मद्देनजर केंद्र सरकार के ही खुफिया तंत्र ने बोहरा धर्मगुरू सैयदना के बारे में अपनी जो गोपनीय रिपोर्ट अपने आला अधिकारियों को भेजी थी, वह बेहद चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट में सैयदना को एक विवादास्पद धर्मगुरू बताते उनकी तुलना हाल के दिनों में तरह-तरह के विवादों के चलते चर्चा में आए अन्य कथित धर्मगुरुओं से की गई। जाहिर है कि प्रधानमंत्री की इंदौर यात्रा के सिलसिले में खुफिया रिपोर्ट को सिरे से नजरअंदाज किया गया।

दाऊदी बोहरा समुदाय के मौजूदा सर्वोच्च धर्मगुरू सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन भी अपने पूर्ववर्ती सैयदना की तरह विवादों के घेरे में हैं। इन दिनों वे अपने मध्य प्रदेश प्रवास के तहत इंदौर में हैं और मोहर्रम के मौके पर वहां वाअज (प्रवचन) फरमा रहे हैं। वे छह सितंबर को इंदौर पहुंचे थे और 25 सितंबर तक वहां में रहेंगे। मध्य प्रदेश सरकार ने सैयदना को राजकीय अतिथि का दर्जा दिया है, लिहाजा स्थानीय प्रशासन और भाजपा शासित नगर निगम का पूरा अमला भी सैयदना की खिदमत में जुटा हुआ है।

चूंकि दो महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होना है, लिहाजा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विशेष तौर पर सैयदना के 'पाक दीदार' के लिए आज 14 सितंबर को सुबह इंदौर पहुंचे। बोहरा समुदाय के मजहबी पेशवा सैयदना को मध्य प्रदेश सरकार ने भले ही राजकीय अतिथि का दर्जा देकर उनकी खिदमत में अपने प्रशासनिक तंत्र को झोंक रखा हो, मगर प्रधानमंत्री की यात्रा के मद्देनजर केंद्र सरकार के ही खुफिया तंत्र ने सैयदना के बारे में अपनी जो गोपनीय रिपोर्ट अपने आला अधिकारियों को भेजी थी, वह बेहद चौंकाने वाली है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में सैयदना को एक विवादास्पद धर्मगुरू बताते उनकी तुलना हाल के दिनों में तरह-तरह के विवादों के चलते चर्चा में आए अन्य कथित धर्मगुरुओं से की गई है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री की इंदौर यात्रा के सिलसिले में खुफिया रिपोर्ट को सिरे से नजरअंदाज किया गया। इंदौर में प्रधानमंत्री मोदी करीब एक घंटै तक बोहरा समुदाय के जलसे में मौजूद रहे। इस दौरान वे बोहरा धर्मगुरू से गले मिले, उनके साथ मंच साझा किया और भाषण भी दिया।

हालांकि वोटों के लिहाज से मध्य प्रदेश में बोहरा समुदाय की प्रभावी मौजूदगी महज तीन शहरों- इंदौर, उज्जैन और बुरहानपुर में ही है, लेकिन आने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा की तरह कांग्रेस भी सैयदना को मस्का लगाने में पीछे नहीं दिखना चाहती। बताया जाता है कि प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व अपने सर्वोच्च नेता राहुल गांधी को भी इंदौर लाने की कोशिशों में जुटे हैं। भाजपा और कांग्रेस के लिए बोहरा समुदाय की अहमियत उसके वोटों से ज्यादा सैयदना से चुनावी चंदे के रूप में मिलने वाले नोटों की है। कहा जाता है कि सैयदना अपने अनुयायियों से विभिन्न प्रयोजनों के नाम पर जुटाई गई धनराशि में से इन दोनों पार्टियों को मोटी रकम चुनावी चंदे के रूप में देते रहे हैं। इसलिए श्राद्ध पक्ष के पंडों की तरह दोनों प्रमुख दलों के शीर्ष नेतृत्व का सैयदना की खिदमत में पेश होना कोई खास बात नहीं है। हालांकि सैयदना द्वारा दिए जाने वाले इस चंदे का लेन-देन अघोषित तौर पर होता है।




खास बात यह है कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री इस तरह बोहरा धर्मगुरू से मिलने पहुंचे हैं, यह तथ्य जगजाहिर होते हुए भी कि बोहरा धर्मगुरू के साथ कई तरह के गंभीर विवाद नत्थी हैं। इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने सैयदना के खिदमत में इस तरह हाजिरी नहीं बजाई। अलबत्ता पंडित जवाहरलाल नेहरू जरूर 1960 के दशक में गुजरात के सूरत शहर में दाऊ दी बोहरा समुदाय के एक शिक्षा संस्थान का उद्घाटन करने गए थे, जहां 51वें सैयदना ताहेर सैफुद्दीन से उनकी मुलाकात हुई थी। उस मुलाकात की तस्वीर को सैयदना और उनके निकटतम अनुयायी आज तक प्रचारित करते हैं।

दरअसल, दूसरे तमाम धर्मगुरुओं की तरह बोहरा धर्मगुरू और उनकी धार्मिक सल्तनत का भी विवादों से गहरा नाता है। हालांकि दूसरे धर्मगुरुओं के मुकाबले सैयदना का अपने समुदाय में एक अलग ही रुतबा है। एक तरह से वे अपने समुदाय के शासक हैं। मुंबई में अपने भव्य और विशाल आवास सैफी महल में अपने विशाल कुनबे के साथ रहते हुए वे हर आधुनिक भौतिक सुविधाओं का तो उपयोग करते हैं, लेकिन अपने सामुदायिक अनुयायियों पर शासन करने के उनके तौर तरीके मध्ययुगीन राजाओं-नवाबों की तरह हैं। उनकी नियुक्ति भी योग्यता के आधार पर या लोकतांत्रिक तरीके से नहीं, बल्कि वंशवादी व्यवस्था के तहत होती है, जो कि इस्लामी उसूलों के सरासर खिलाफ है।

दाऊदी बोहरा समुदाय को आमतौर पर पढा-लिखा, मेहनती, कारोबारी और समृद्ध के साथ ही आधुनिक जीवनशैली वाला लेकिन अत्यंत धर्मभीरू माना जाता है। उसकी यह धर्मभीरुता ही उसकी सबसे बडी कमजोरी है। अपनी इसी धर्मभीरुता के चलते वह अपने धर्मगुरू के प्रति पूरी तरह समर्पित रहते हुए उनके हर उचित-अनुचित आदेशों का निष्ठापूर्वक पालन करता है। बोहरा धर्मगुरू सैयदना की बनाई हुई व्यवस्था के मुताबिक बोहरा समुदाय में हर सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक और व्यावसायिक कार्य के लिए सैयदना की अनुमति अनिवार्य होती है और यह अनुमति हासिल करने के लिए निर्धारित शुल्क चुकाना होता है। इसके अलावा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी वार्षिक आमदनी का एक निश्चित हिस्सा दान के रूप में देना होता है। आमिलों के माध्यम से इकट्ठा किया गया यह सारा पैसा सैयदना के खजाने में जमा होता है।

सैयदना की बनाई हुई व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या उसके परिवार की बराअत (सामाजिक बहिष्कार) का फरमान सैयदना की ओर से जारी कर दिया जाता है। सैयदना के आदेश के मुताबिक समाज से बहिष्कृत व्यक्ति या परिवार से समाज का कोई भी व्यक्ति किसी भी स्तर पर संबंध नहीं रख सकता। बहिष्कृत व्यक्ति अपने परिवार में या समाज में न तो किसी शादी में शरीक हो सकता है और न ही किसी मय्यत (शवयात्रा) में। बहिष्कृत परिवार में अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके शव को बोहरा समुदाय के कब्रस्तान में दफनाने भी नहीं दिया जाता।

पिछले कुछ वर्षों से सैयदना के आदेश पर समाज के प्रत्येक व्यक्ति (नवजात बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक) का परिचय पत्र तैयार किया जाने लगा है। आधार कार्ड की तर्ज पर कंप्यूटर से बनाए जाने वाले इस आईटीएस (इदारतुल तारीफ अल शख्सी) कार्ड के जरिये ही हर व्यक्ति समाज की मस्जिद, जमाअतखाना, मुसाफिरखाना, कब्रस्तान आदि स्थानों पर प्रवेश कर सकता है। इस कार्ड के जरिये एक तरह से समाज के हर व्यक्ति की हर सामाजिक गतिविधि की निगरानी की व्यवस्था की गई है। जिस किसी भी व्यक्ति की कोई भी गतिविधि धर्मगुरू वर्ग की कसौटी पर जरा भी संदेहास्पद पाई जाती है, उसका आईटीएस कार्ड ब्लाक कर दिया जाता है। कार्ड ब्लाक हो जाने पर उस व्यक्ति का समाज की मस्जिद, जमाअतखाना, मुसाफिरखाना कब्रस्तान आदि जगहों पर प्रवेश स्वत: ही निषिद्ध हो जाता है। सैयदना की ओर से यह किसी व्यक्ति के सामाजिक बहिष्कार की आधुनिक व्यवस्था ईजाद की गई। उदयपुर, मुंबई, पुणे, सूरत, गोधरा आदि शहरों में सैकडों बोहरा परिवार इस समय सामाजिक बहिष्कार का शिकार होकर सैयदना की धर्मांध सत्ता से संघर्ष कर रहे हैं।

सैयदना से जुडी इन तमाम शिकायतों का हवाला देते हुए सुधारवादी बोहरा आंदोलन के नेता इरफान इंजीनियर ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें सैयदना जैसे विवादास्पद धर्मगुरू के कार्यक्रम में शिरकत करने से बचना चाहिए। उन्होंने अपने पत्र में सैयदना और उनके प्रतिनिधियों द्वारा समुदाय के लोगों पर की जाने वाली ज्यादतियों का भी विस्तार से जिक्र किया था। लेकिन सवाल है कि प्रधानमंत्री ने सैयदना से मिलने के लिए जब अपनी ही सरकार के खुफिया तंत्र की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया तो फिर वे इरफान इंजीनियर के पत्र को क्यों तवज्जो देने लगे?

साभार अनिल जैन का लेख

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