मुम्बई

महिला पुलिसकर्मी जो करती हैं परायों का अंतिम संस्कार कोरोना काल में भी, इसको जरुर शेयर करें ताकि हौसलाअफजाई हो

Shiv Kumar Mishra
26 May 2020 12:00 PM GMT
महिला पुलिसकर्मी जो करती हैं परायों का अंतिम संस्कार कोरोना काल में भी, इसको जरुर शेयर करें ताकि हौसलाअफजाई हो
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दरअसल, संध्या शाहू नगर पुलिस थाने में एक्सिडेंटल डेथ रिपोर्ट या ADR का काम संभालती हैं.

"मैडम ये जो वर्दी है ना ये बहुत ताक़त देती है." ये आपको किसी फिल्म का डॉयलाग ही लगेगा लेकिन जब आप संध्या शिलवंत से बात करने लगते हैं तो अपने आप विश्वास होने लग जाता है कि वो न केवल दिलेर हैं बल्कि एक सकारात्मक सोच वाली महिला भी हैं.

मुंबई पुलिस में नायक के पद पर कार्यरत संध्या शिलवंत हाल के दिनों में खूब प्रशंसा बटोर रहीं हैं. राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी उनकी तारीफ़ करते हुए ट्वीट किया, ''शाहूनगर पुलिस स्टेशन की कॉन्स्टेबल संध्या शिलवंत ने एक दिन में चार लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया. आज तक इस तरह से उन्होंने छह लोगों के अंतिम संस्कार किए हैं. अगर आपके मन में सोशल कमिटमेंट हो तो हर तरह के भय के दरवाज़े बंद हो जाते हैं''- उनके ये शब्द सिर्फ़ पुलिस विभाग के लिए ही नहीं सभी के लिए प्रेरणादायक हैं. दरअसल, संध्या शाहू नगर पुलिस थाने में एक्सिडेंटल डेथ रिपोर्ट या ADR का काम संभालती हैं.

एक दिन में चार शव का अंतिम संस्कार

कोविड-19 के दौर में उन्होंने एक दिन में चार शवों का अंतिम संस्कार किया जिसमें से एक कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. वे बताती हैं कि 14 मई के दिन चार शव और 24 अप्रैल को 2 शव का मैंने अंतिम संस्कार किया और 26 मई को दो और शवों का करूंगी. इन शवों का अंतिम संस्कार ऐसे समय में हो रहा है जब कोरोना वायरस का पूरा देश सामना कर रहा है.

वे गृह मंत्री की तारीफ़ के लिए उनका आभार प्रकट करती हैं और हंसते हुए कहती हैं, "आपको लगेगा कि मेरी प्रशंसा हो रही है इसलिए मैं ऐसा कह रही हूं पर ये मेरी ड्यूटी है और समाज के प्रति मेरी ज़िम्मेदारी भी है जो निभानी पड़ती है. मैं अपने विचारों को सकारात्मक रखती हूं. बस!" मैं जिस विभाग में हूं इसके लिए मुझे लोकमान्य तिलक अस्पताल जाना ही पड़ता है. वहां हर तरह के केस आते हैं जिसमें कोविड के भी होते हैं और संक्रमित होने का डर रहता है.

संध्या बताती हैं कि महाराष्ट्र में केस बढ़े हैं. ऐसे में हम पुलिसकर्मियों के भी टेस्ट करवाए गए जिसमें कई पुलिसकर्मियों में टेस्ट पॉजिटिव आया है और जब मेरा टेस्ट हुआ तो वो निगेटिव आया. मैंने दिमाग़ में आने ही नहीं दिया कि मुझे कोरोना हो सकता है.

अब जब पुलिसकर्मियों में मामले सामने आ रहे हैं, इससे स्टाफ़ की कमी भी हो रही है ऐसे में अगर मैं डर जाऊंगी और ऑफ़िस आना बंद कर दूंगी तो कैसे चलेगा?

जब मैंने कहा कि आपके बच्चे छोटे हैं तो संध्या ने कहा कि वो अपने बच्चों से अपने काम के बारे में कोई बात नहीं करतीं और जब मैंने पूछा कि अख़बारों में तुम्हारी फोटो आई तो तुम्हारी 13 साल की बेटी को पता ही चल गया होगा कि जिन चार शवों का अंतिम संस्कार तुमने किया था उसमें से एक कोविड पोजिटिव था. इसके जवाब में संध्या ने कहा कि बेटी ने उन्हें ''कांग्रेट्स'' कहा.

वे बताती हैं कि उनके पिता और ससुर दोनों पुलिस में काम कर चुके हैं इसलिए उनकी मां और सास भी उनके काम को समझती हैं. क्योंकि ये कोविड का दौर हैं तो घर जाने के बाद साफ़ सफ़ाई का भी विशेष ख्याल रखती हूं.


संध्या जानकारी देती हैं, ''मैं दो साल से एडीआर का काम संभाल रही हूं. अब तक करीब 20 शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हूं. मेरे लिए ये एक पुण्य का काम है. शायद पिछले जन्म का कुछ होता है तभी आपको ये सौभाग्य मिलता है. नहीं तो जिन लोगों का कोई नहीं होता आप उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं जो किसी पुण्य के काम से कम नहीं होता.''

एडीआर विभाग में कार्यरत व्यक्ति का काम लापता, गुमशुदा या अज्ञात लोगों की मौत हो जाने के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के साथ शुरु हो जाता है. संदिग्ध परिस्थिति में मौत होने से कई बार शरीर के अंगों को फोरेंसिक लेबोरेटरी भेजा जाता है. संध्या बताती है कि उनका काम फेफड़े, हार्ट जैसे अंगों को लेबोरेटरी तक ले जाने का होता है. जांच के बाद वे फाइनल पोस्टमार्टम रिपोर्ट अधिकारियों के समक्ष सौंपती हैं. इस बीच कई बार मृत के परिजन आ जाते हैं और शव ले जाते हैं.

संध्या के मुताबिक जिन मृतकों के शव को लेने कोई नहीं आता उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. लेकिन कोविड-19 के कारण हमें तुरंत शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए कहा जा रहा है लेकिन कई केस में शव हम लंबे समय तक भी रखते है जहां जांच की ज़रुरत होती है.

वो कहती हैं कि वो अपने रिश्तेदारों की मौत के दौरान कभी श्मशान घाट नहीं गई क्योंकि हिंदू समाज में महिलाएं श्मशान जाती भी नहीं है लेकिन ''अब ये मेरी ड्यूटी है.''

जहां कोविड-19 के दौरान काम कर रहे फ्रंटलाइन वर्कर की प्रशंसा हो रही थी वहीं ख़बरें ऐसी भी आईं कि कुछ मामलों में परिवारों ने कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति का शव लेने से इंकार कर दिया या उनको अपने इलाक़े में दफ़नाने का विरोध भी किया.

इसमें तमिलनाडु के एक डॉक्टर साइमन हरक्यूलिस का मामला मीडिया में काफ़ी उछला भी था. जिनके शव को दफ़नाने आई एंबुलेंस पर इलाके में रह रहे लोगों ने हमला कर दिया और फिर पुलिस सुरक्षा में उनका अंतिम संस्कार दूसरे इलाक़े में हुआ था. वहीं संध्या शिलवंत जैसे लोग भी हैं जिनके लिए सबसे पहले फर्ज़ है जिससे वे किसी भी हाल में गुरेज़ नहीं करना चाहते.

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