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- अमित शाह ने 12 दिन...
अमित शाह ने 12 दिन चुपचाप 'ऑपरेशन' चलाकर कैसे किया तख्तापलट?
मुंबई में शनिवार सुबह नाटकीय शपथ ग्रहण समारोह के पीछे 12 दिनों की मेहनत थी। इस काम को बड़ी चुतुराई के साथ दोनों पक्षों ने अंजाम दिया। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और एनसीपी के अजीत पवार के बीच पिछले कुछ दिनों से लगातार बातचीत चल रही थी।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के महाराष्ट्र प्रभारी और विश्वसनीय सिपहसलार भूपेंद्र यादव को इसकी जिम्मेदारी सौंपी थी। सूत्रों का कहना है कि दरअसल अजीत पवार से संपर्क साधने के पीछे शिवसेना के साथ कड़वाहट बड़ी वजह रही है।
हालांकि, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के नेताओं के बीच सरकार गठन को लेकर कई दौर की बातचीत चली। लेकिन, इस दौरान बीजेपी अपना काम चुपचाप करती रही।
जैसे ही शुक्रवार शाम को शिवसेना की डील एनसीपी और कांग्रेस के साथ फाइनल हुई अमित शाह ने भूपेंद्र यादव, जो कि दिल्ली और मुंबई के बीच लगातार सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे थे, उन्हें आखिरी दौर की बातचीत के लिए निर्देश दे दिया।
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने पहले ही राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को पत्र लिखकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था। इसके बाद अजीत खुद राज्यपाल से जाकर मिले और उन्होंने जो पत्र भेजा था उसकी पड़ताल भी की।
इस बीच शाम 7 बजे यादव मुंबई पहुंचे और पहले देवेंद्र फडणवीस और इसके बाद अजीत पवार से मिलकर डील को लॉक कर दिया। उधर, शुक्रवार शाम तक बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने थोड़ा हिंट दे दिया था कि महाराष्ट्र में बीजेपी 100 परसेंट सरकार बनाएगी।
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि बीजेपी ने 10 नवंबर को राज्यपाल को सूचित करने के बाद ही अपने ऑपरेशन में जुट गई थी। पार्टी ने जैसे ही स्वीकार किया कि शिवसेना के बगैर वह सरकार नहीं बना सकती, उसके बाद ही कवायद चुपचाप शुरू कर दी गई थी। इस दौरान पहली बार था जब भूपेंद्र यादव मुंबई पहुंचे।
एक बीजेपी नेता ने बताया कि हमारे पीछे हटने के साथ ही एनसीपी के एक धड़े से हमें रोजाना जानकारियां मिलने लगी थीं। बीजेपी ने एक हफ्ते पहले तक बाहर से यह दिखाने की कोशिश करती रही कि शिवसेना के साथ उसका विकल्प खुला हुआ है। सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र के नेताओं को शाह की तरफ से निर्देश था कि "उन्हें (ठाकरे, पवार, कांग्रेस) उनका खेल खेलने दो।" इस दौरान उन्होंने दूरी भी बनाए रखी।
अजीत पवार को दिए गए ऑफर पर बीजेपी नेता ने कहा, सभी जानते थे कि एक स्थिर सरकार केवल भाजपा के साथ ही संभव हो सकती है। ऐसे में अजीत पवार एक लड़खड़ाई हुई सरकार का हिस्सा क्यों बनेंगे, जबकि, उन्हें वो सारी चीजें एक स्थिर सरकार में मिल रही हैं? गौरतलब है कि अजित और शाह के बीच एक बैठक भी आयोजित की गई थी ताकि यह आश्वस्त किया जा सके कि इस पहल पर शीर्ष नेतृत्व का भी साथ है।
इस पूरे सियासी खेल में अजीत और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बीच का तनाव बीजेपी के काम आया। दरअसल, शरद पवार सरकार गठन के समझौते में शिवसेना के पांच साल तक के सीएम की शर्त को मान गए थे। जबकि, अजीत पवार चाहते थे कि एनसीपी कम से कम आधे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हो। अजीत के एक करीबी सहयोगी ने कहा, उन्हें लगता है कि पार्टी के भीतर उन्हें लगातार उच्च पद से दूर रखा गया था। एनसीपी आसानी से ढाई साल के कार्यकाल का मोलभाव कर सकती थी।