नई दिल्ली: अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा है कि 'भारत माता की जय' कहने में किसी भी भारतीय को परहेज़ नहीं होना चाहिए। हेपतुल्ला ने कहा कि जब भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय लोगों ने ये फ़ैसला कर लिया कि उन्हें कहाँ रहना है, तब फिर इस पर बहस का कोई मतलब ही नहीं रह जाता।
उन्होंने कहा, मुझे इससे परहेज़ क्यों होगा? लोग समझते नहीं हैं, क्योंकि फ़ारसी में मादरे-वतन का यही मतलब होता है, यानी वतन हमारी माता है। असल में लोगों को जुबाँ ही नहीं समझ आती। नजमा का कहना था कि मुसलमान तो मरने के बाद भी इसी मिट्टी का हिस्सा हो जाते हैं और जिस मुल्क में बोलने की इजाज़त है, खुली सांस में हवा लेते हैं, तो उस मादरे-वतन की जय नहीं बोलेंगे, उसको सलाम नहीं करेंगे, तो उन्हें समझाने की ज़रुरत है।
भारत माता की जय कहने की बात पर ज़ोर देने के कुछ दिन बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि किसी से 'ज़बरदस्ती भारत माता की जय न बुलवाई जाए'। इस विवाद के खड़े होते ही दारुलउलूम देवबंद ने एक फ़तवे में कहा था कि देवी के रूप में भारत माता की वंदना करना ग़ैर-इस्लामी है। पहले महाराष्ट्र में एमआईएम के विधायक वारिस पठान को भारत माता की जय नहीं बोलने पर निलंबित कर दिया गया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत की बात पर प्रतिक्रिया देते हुए एमआईएम नेता असदउद्दीन ओवैसी ने कहा था कि उनकी गर्दन पर चाक़ू रखकर कोई उन्हें भारत माता की जय नहीं बुलवा सकता है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी कहा था कि 'भारत माता की जय' पर बहस बेमानी है। नरेंद्र मोदी सरकार के लगभग दो साल के कार्यकाल में पूरे भारत में असहिष्णुता पर छिड़ी बहस को नजमा हेपतुल्ला ने पूरी तरह से खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा, "कोई इन्टॉलरेंस नहीं है, जिन्होंने कथित असहिष्णुता के विरोध में अपने अवॉर्ड लौटाए थे, अब सभी ने वापिस भी ले लिए हैं। वो बिहार चुनाव का दौर था और भारत में पुरानी प्रथा है कि ऐेसे समय में एक नया मसला खड़ा कर दो"। पूछे जाने पर कि ऐसा क्यों है कि कई भारतीय मुसलमान मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद कथित तौर पर असुरक्षित महसूस करते हैं, नजमा हेपतुल्ला का साफ़ जवाब था, "ऐसा बिलकुल भी नहीं है"।