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मोदी जी काम कीजिए देश को प्रयोगशाला मत बनाइए

Special Coverage News
30 Oct 2018 6:49 AM GMT
मोदी जी काम कीजिए देश को प्रयोगशाला मत बनाइए
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शिशिर सोनी

पांच सालों तक मोदी सरकार ने देश को क्या दिया इसपे बहस कम। इसपे बहस ज्यादा हो रही है कि देश को भाजपा ने प्रयोगशाला बना दिया। पहले नोटबंदी का असफल प्रयोग किया। फिर चूरन चटनी टाइप के नोट बाजार में उतारे। नोटबंदी से जनता उबरती उससे पहले जीएसटी की मार थोप दी। अर्थव्यवस्था भरभरा गयी। अच्छी भली जिनकी नौकरियाँ चल रही थीं उनकी छटनी हो गयी। नयी नौकरियाँ बन्द हो गईं। कुछ की नोटबंदी ने जाने लीं कुछ ने छटनी के कारण आत्महत्या की। दावा किया गया कि नोटबंदी से कालाधन बाहर आएगा। रिज़र्व बैंक ने बताया दिया कि लगभग सभी प्रचलित कैश उस दरम्यान बैंकों में जमा हुए। मतलब कालेधन की मूल सोच ही गलत निकली। दावा किया गया कि नक्सल, आतंकवाद की कमर टूटेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आतंकवादी इन्हीं के राज्य में, इन्हीं के शासन में जम्मू कश्मीर में आम आदमी को तो छोड़िए हर रोज़ पुलिसकर्मी को मार रहे हैं। सीमा पार से एक सिर के बदले दस सिर लाने की फुटानी करने वाले लोग अपने देश में ही एक बदले दस नहीं मार पा रहे हैं। उसपर अंकुश लगाना तो दूर की बात। नक्सलियों के हौसले कितने बुलंद हैं इसी से अंदाज़ा लगाइये कि छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद जाते उससे पहले वहाँ हत्याओं का सिलसिला शुरू होता है। डर के मारे मंत्री भाग खड़े होते हैं। मैसेज ये गया कि राज्य की भाजपा सरकार अपने मंत्रियों को भी सुरक्षा कवच नहीं दे पा रही है। 15 सालों से राज कर रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह दावा करते रहे कि नक्सलियों को खदेड़ दिया है और नक्सली बस्तर से सैकड़ों किलोमीटर दूर उनके शहरी चुनाव क्षेत्र राजनांदगाँव तक आ धमकते हैं। जंगलों से निकलकर शहरों में घुस आते हैं।

संसद लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए बहस मुबाहिसों के माध्यम से पालिसी फ्रेम करने का सशक्त माध्यम है मगर केंद्र सरकार बहस के बजाए, विरोध या वोटिंग में हार के डर से हर विधेयक को आर्डिनेंस का रूप दे रही है ताकि कानून बनाने में विधायी प्रक्रिया अपनाने के बजाये एग्जीक्यूटिव आर्डर से संसद को अनदेखा कर कानून बना दिया जाये। ये सर्वथा अलोकतांत्रिक व्यवस्था है। आर्डिनेंस के रास्ते का गलत उपयोग हो रहा है।

संवैधानिक संस्थाओं का हाल देखिये - चुनाव आयोग को चुनाव की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री के भाषण का इंतज़ार करना पड़ता है। जिन्हें भ्रष्टाचारियों को पकड़ने की हमने जिम्मेदारी दी है उनके खुद ही घूस खाने के आरोप सामने आ रहे हैं । आरोप बाहर वाले नहीं भीतर वाले ही लगा रहे हैं ऐसी देश की सर्वोच्च संस्था सीबीआई, सीवीसी की करतूतों पे देश भौंचक है। विश्व हँस रहा है। जिनसे देश न्याय की आशा करता है सुप्रीम कोर्ट के वही न्यायधीश देश के लोगों से न्याय की गुहार लगाते हैं। कोर्ट की दहलीज़ लांघ कर न्यायधीशों को अपनी वेदना आमजनों के समक्ष रखनी पड़ती है।

जब एक के बाद एक मूर्खतापूर्ण निर्णयों की हद हो गई और जब रिज़र्व बैंक को लगा उसकी भद्द पिट रही है तो उसने पहली बार केंद्र सरकार की बांह मरोड़ी। केंद्र सरकार के पेमेंट रेगुलेटर बनाने के मश्विदे का अपनी वेबसाइट पे खुलेआम मुखालफत किया। बैंकों का ब्याज दर घटाने की बात हो या फिर एनपीए से निपटने का फार्मूला या फिर ILNFS संकट की बात हो केंद्र और आरबीआई से अब लगातार मतभेद गहरा रहे हैं। हालात ये हो गए कि रिज़र्व बैंक के कर्मचारी संगठनों को केंद्र के खिलाफ खड़ा होना पड़ रहा है।

देश ने आपको बड़े मनोयोग से प्रचंड बहुमत से सत्ता में बिठाया था। आपमे कुछ कर गुजरने का जज़्बा लोगों ने देखा था। कुछ करिए या मत करिए देश को प्रयोगशाला मत बनाइये।

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